होम ग़ज़ल एवं गीत रेखा राजवंशी की तीन ग़ज़लें ग़ज़ल एवं गीतफीचर रेखा राजवंशी की तीन ग़ज़लें द्वारा रेखा राजवंशी - February 9, 2020 232 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet 1 कितने अरमाँ पिघल के आते हैं लोग चेहरे बदल के आते हैं अब मिरे दोस्त भी रकीबों से जब भी आते, संभल के आते हैं जब कोई ताज़ा चोट लगती है मेरे आंसू मचल के आते हैं आज कल रात और दिन मेरे तेरी यादों में ढल के आते हैं दिल में जब टीस उठती है कोई चंद मिसरे ग़ज़ल के आते हैं मुद्दतों इंतिज़ार था जिनका मेरी मय्यत पे चलके आते हैं 2 आज मैं फिर से माहताब बनूँ तू मुझे पढ़ तेरी किताब बनूँ शबनमी रात की ख़ुमारी में तू मुझे पी, तिरी शराब बनूँ पूछे कितने सवाल ये दुनिया उनकी हर बात का जवाब बनूँ तू भी बन जाए गुल मिरा हमदम मैं भी महका हुआ शबाब बनूँ तू सहर लाने का तो कर वादा तेरी खातिर मैं आफ़ताब बनूँ 3 चलो कुछ तो हुआ, आगाज़ हुआ अपनी बातों का भी बयाज़ हुआ क़तरा–क़तरा बिखर गई खुशबू नग़्मा–नग़्मा ये दिल का साज़ हुआ कुछ न कहके भी बात कह देना मुख़्तसर उनका ये अंदाज़ हुआ चाँद तारों की फुसफुसाहट से सब पे ज़ाहिर हमारा राज़ हुआ किसी के आने की आहट आई कोई हमदम, कोई हमराज हुआ (*बयाज़ -a poet’s note-book) संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं डॉ. यासमीन मूमल की ग़ज़ल – दर्द मेरे थे जितने सभी मेरे दिल में निहाँ हो गए निज़ाम फतेहपुरी की दो ग़ज़लें नॉटिंघम में हिन्दी साहित्य का सम्मान Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.