विद्यालय में जादू दिखाया जाना था ।सभी बच्चों को। पांच से दस पैसे देने थे । मैंने मां से कहा – ” मां ! कल स्कूल में जादू दिखाया जायेगा । मुझे भी देखना है … पैसे दो ।” मां उस वक़्त बर्तन मांज रही थी । उसने कहा – “बाबूजी की जेब से ले लो ।”
मैं खुशी से उछलता हुआ बाबूजी के कमरे में गया और उनके कुर्ते की जेब में हाथ डाल दिया । यह ऊपर वाली जेब थी, लेकिन उसमें पैसे नहीं थे । फिर बगल वाली जेब में हाथ डाला तो एक में रुमाल मिला । किंतु जब दूसरी जेब टटोला तो दस पैसे मिले ।
पैसे निकाल कर मैं मां के पास गया और बोला – “मां! इसमें केवल दस पैसे हैं । “
तभी बाबूजी आ गये । वे बगल में ही सब्जी की क्यारियों में पानी देते हुए हम मां-बेटे की बातें सुन रहे थे । इसलिए आते ही बोले -” आजाद बेटा ! तुम दस पैसे ले जाओ , इसमें से जादूगर को दे देना और पांच पैसे वापस ले आना । “
“जी, पिता जी !” मैंने कहा और खुशी-खुशी स्कूल चला गया ।  तब मैं पांचवीं कक्षा का छात्र था । उन दिनों मेरे  परिवार में हम दो भाई-बहन , चाचा-चाची, दादा-दादी सभी एक साथ थे , लेकिन  एक मात्र मेरे पिताजी कमाने वाले सरकारी कर्मचारी थे । उन्हीं पर पूरा परिवार आश्रित था । इस बात की थोड़ी-थोड़ी समझ मुझे थी । इसलिए पिताजी को पांच पैसे लौटाने हैं यह बात, मेरे ध्यान में थी ।
 विद्यालय में वर्ग शिक्षक जादू के पैसे जमा लेने लगे । वे सबका नाम लिखते और उसके सामने जो जितना पैसा देता , लिख देते । मैं भी अपने साथियों के झुंड में वहां पहुंच गया । वहां जब मेरे साथी दस-दस पैसे देने लगे तो मैं असमंजस्य की स्थिति में आ गया। तभी मेरे साथियों में से एक ने कहा – ” आजाद, तुमने पैसे दे दिए ? ”  ” नहीं…..” कहकर मैंने अपनी मुट्ठी खोल दी । उसने मेरे हाथ से दस पैसे लेकर मेरा नाम लिखवा दिया ।
    धीरे-धीरे सारे छात्रों के पैसे जमा हो गए और शिक्षक महोदय, उठकर कार्यालय की ओर चल दिए। मैं धीरे-धीरे सहमा-सा उनके पीछे-पीछे चलने लगा ।जब शिक्षक ने मुझे अपने पीछे आते देखा तो पूछ बैठे -” क्या बात है , आजाद ? “
“महोदय पिताजी ने मुझे पांच पैसे ही दिए थे । मैं अपने साथियों के सामने बोल नहीं पाया, इसलिए मुझे पांच पैसे वापस कर देते तो अच्छा होता “
शिक्षक महोदय बोले – ” मैं तुम्हारी स्थति समझ रहा हूं बेटा ! लेकिन जरा सोचो, तुम्हारे ही साथियों के सामने मैंने तुम्हारे नाम के आगे दस पैसे लिखा है । अब यदि दस को पांच करता हूं तो ,उनलोगों को ये सारी बातें बतानी होगी । यदि नहीं बताता हूं तो वे लोग मुझे चोर समझेंगे । बोलो,यह उचित होगा ? चिंता मत करो। सारी बातें सच -सच पिता जी को बोल देना,वे समझ जाएंगे । “
मुझे थोड़ी सांत्वना मिली और मैं अपने साथियों के साथ जादू देखने में मस्त हो गया । जादू समाप्त होते-होते शाम हो गई और उसके बाद छुट्टी हो गई । सभी अपने-अपने घर लौटने लगे। मैं भी घर की ओर चल पड़ा । किंतु चलने में मेरे पांव धीमे हो गये थे । मुझे फिर से पांच पैसे की चिंता सताने लगी थी । मेरे साथी रास्ते भर जादू की चर्चा करते रहे और मैं पांच पैसे की सोच में डूबा रहा । घर आना था सो आ गया ,पर छुपते -छुपाते कि कहीं पिता जी की नज़र न पड़ जाए ।
    मैंने देखा पिता जी आ गये हैं और कमरे में बैठे हुए हैं पर मां वहां नहीं है । इसलिए दरबाजे की ओट में छिप गया और मां का इंतजार करने लगा । तभी मेरी परछाई ने चुगलखोरी कर दी और पिता जी की नज़र मुझ पर चली गई। बोले -“वहां क्यों खड़े हो ? “
            मैं अपने को रोक नहीं पाया, मुझे रोना आ गया । पिता जी मुझे पकड़ कर पलंग के पास ले गए और बोले -” क्या बात है ? क्यों रो रहे हो ? “
मैंने रोते-रोते सारी बातें उन्हें बता दी । मेरी बातों को सुन उनकी आँखों से टप-टप आँसू गिरने लगे ।उनका रोना देख , मैं हतप्रभ हो गया । मेरी आंखें सूख गई क्योंकि पहली बार मैंने उन्हें इस अवस्था में देखा था । तब तक मां आ गई । इस दृश्य को देख एक बार तो किंकर्त्तव्यविमूढ़ सी हो गईं । पुनः अपने को संभालते हुए,स्नेह से मेरे सर पर हाथ फेर बाहर जाने को कहा । बाहर जाते-जाते मैंने सुना, पिता जी कह रहे थे – ” आजाद की मां ! ऐसा उसूल किस काम का जो, अपने बच्चे को दस पैसे न दे सकूं …।”
“नहीं ! ऐसा नहीं सोचते। आपका उसूल ही तो आपके बच्चे की नींव को मजबूत करेगा और वह भी आप जैसे पक्के उसूल वाला बनेगा।” पिता जी चुप हो गए थे और शायद ख़ुश भी ।

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