Saturday, October 12, 2024
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शील निगम का कोरोना के नाम पत्र

माननीय कोरोना जी,
आप ‘वुहान’ से निकल कर पूरे संसार में विचरण करने लगे। नारद मुनि की तरह ‘नारायण नारायण’ न कह कर सारे विश्व में जनता-जनार्दन द्वारा ‘त्राहिमाम त्राहिमाम’ की गूँज मचवा दी। घोर संकट की परिकल्पना के बीच समझ में आया कि आपको ‘कोविड 19’ की उपाधि दी गई।आप सर्वशक्तिमान जो ठहरे!
लोग जिसे मामूली सर्दी-ज़ुकाम समझते थे उसे आपने जानलेवा बीमारी बना डाला?जिसका न कोई इलाज न वैक्सीन! लोग भुगतते रहे, मरते रहे।फिर भी आपके सम्मान में भारत तथा अन्य देशों में  महीनों लॉकडाउन लगा रहा ताकि आपकी राजसी सवारी सूनी सड़कों में निर्बाध हर जगह अपना कहर बरपाती रहे।यद्यपि हर घर के दरवाज़े आपके लिये बंद थे फिर भी पूरे भारत में आपके सम्मान के लिये शंख, थाली-कटोरी और घंटियाँ बजाई गयीं।दीपमालाएँ सजाई गयीं।
हम भारतवासी मुँह ढाँप कर सोते रहे और सारे काम ठप्प पड़ गये आप रक्तबीज की तरह दिन दूने चार चौगुने अपना रूप विस्तृत कर-कर के मौत और बीमारी का तांडव मचाते रहे।कुंभकरण की तरह छह महीने की नींद से उठ कर हर कोई केवल मास्क रूपी हथियार ले कर आपसे दो दो हाथ करने को सड़कों पर निकल आया।जम कर पटाखेबाजी की।एक बार फिर से दीवाली मनायी।
आगे का हाल तो आप जानते ही हो।अपनी मंशा भी खूब पहचानते हो।जिस तरह ‘मानव-गंध मानव-गंध’ कह-कह कर राक्षस चिल्लाता था वैसे ही तुम भी मानव गंध सूँघ ही लेते हो और मेले-ठेले में गाँव-शहर के बाज़ारों में अपने शिकार को ढूँढ ही लेते हो।
अब बस भी करो।बहुत हुआ।लगभग सभी देशों में अपना रौद्र रूप दिखा कर ब्रिटेन में दोबारा एक नये स्ट्रेन के रूप में आ कर तबाही मचा रहे हो।हमारी ज़रा सी असावधानी से  भारत के कुछ शहरों में भी दस्तक दी तुमने। तुम्हारे बारे में जितनी ज्यादा जानकारी मिलती है उतना ही दिल बेहाल हुआ जाता है, दिमाग का तो पंचर ही हुआ समझो। अस्पताल भरे पड़े हैं मरीज़ों से।ऐसा लगता है एलियंस के शहर बन गये हैं सारे अस्पताल!
अब और क्या कहें?
थोड़े लिखे को बहुत समझना।हो सके तो अपनी सवारी के घोड़ों को किसी और ग्रह की ओर दौड़ा देना नहीं तो मानव जाति ने अब वैक्सीन तो बना ही ली है। इससे पहले कि वह तुम्हारा सर्वनाश कर दे तुम स्वयं ही  भू मंडल को छोड़ कर कहीं और निकल लो।अब तो वुहान भी तुम्हें वापस नहीं लेगा।
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