Saturday, July 27, 2024
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तोषी अमृता के तीन मुक्तक

1
जब-जब भी याद आती है, आँख छलछलाती है
दर्द उठता है सीने में, साँस लड़खड़ाती है।
भुलाना भी नहीं चाहूं, निधि हैं यादें जीवन की
हंसाती हैं रुलाती हैं, तनहाई के साथ गुनगुनाती हैं।
2
उस नशीली रात की मीठी थकन नशा ख़ुमार
देर तक बजते रहे मन वीणा के तार।
मदहोश कर गया संदली साँसों का स्पंदन
यौवन की पहली अंगड़ाई, पहली छुअन का प्यार।
3
यह जो तेरी महफ़िल में रंग नया आया है
किसने मस्त आँखों से जाम छलकाया है
भड़क उठे हैं शोले हर सू, हर एक दिल में
शायद कहीं पैमाने से पैमाना टकराया है।
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