आज भी तेरे गीत ग़ज़ल,
नज़्म शेर अशआर सदा देते हैं।
जैसे फिर कोई अब्दुल हई,
सदा सुनता हो,
जबीन ए नियाज़ की।
जैसे कोई वालिद
सुने सदा औलाद की।
मासूम, मज़लूम की भी
पुकार है,
तेरे तरन्नुम में
फौलाद सी।
इबादत सी मुहब्बत है
शोखी है रूमानियत है,
सोज़ है, तेरी हर ग़ज़ल
अमृता की याद सी।
ज़िंदगी की तल्ख़ियां हैं,
बीते ज़माने की परछाइयां हैं,
अगरचे कि
बादे सबा है
बहिश्त ए दहर की।
तेरे दामन से सदा फूल
बिखरे,
कलाम में जा निखरे।
फिज़ा में गूंजे गीत,
दोस्ती के वफ़ा के,
और पैग़ाम उभरे।
इबादत से, दुआ से,
वालिदा सरदारी बेगम से।
आज भी झूमें है ज़माना,
सुन सुन तेरे अफसानों
का खज़ाना।
आज भी शैदाई है,
साहिर का,
ये नया ज़माना
आज भी शैदाई है,
साहिर का,
ये नया ज़माना।