कैलाश बुधवार केवल एक व्यक्ति नहीं थे। वे एक चलती फिरती संस्था थे। ब्रिटेन के हिन्दी पत्रकारिता जगत का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने कैलाश बुधवार से कुछ सीखा ना हो। उनका सकारात्मक रवैया सभी को अपनी ओर आकर्षित कर लेता था। वे शायद ब्रिटेन के हिन्दी जगत के एकमात्र ऐसी शख़्सियत हैं जिनसे कभी किसी को कोई शिकायत नहीं हुई। उनके चाहने वालों में राजनीतिज्ञ, डिप्लोमैट, पत्रकार, मीडियाकर्मी एवं साहित्यकार सभी शामिल थे। उनकी मुस्कुराहट, हंसी और रिश्तों में लोकतन्त्र सभी के दिलों में उनके प्रति चाहत पैदा करते थे। मेरे पास उनके स्नेह और अपनेपन की लम्बी और गहरी यादें हैं। वे मेरे पारिवारिक गार्जियन ही नहीं बल्कि हमारी संस्था कथा यू.के. के अध्यक्ष भी थे। उनके नेतृत्व में कथा यू.के. ने ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ़ कॉमन्स एवं हाउस ऑफ़ लॉरड्स में बहुत से कार्यक्रमों का आयोजन किया। कैलाश जी एवं विनोदिनी भाभी के साथ बहुत सी शामें हंसते बतियाते बीतीं। उनके निधन से लगता है कि एक बार फिर मेरे सिर से पिता का साया उठ गया हो। कैलाश जी को ब्रिटेन के पूरे हिन्दी जगत की ओर से श्रद्धांजलि।
तेजेन्द्र शर्मा एम.बी.ई.
संपादक – पुरवाई।
Kailash Budhwar was a great journalist, a man of taste and culture and a dear friend. In his life he lived by simple mantras, to tell the truth, to treat others as you be treated to remain humble. His humility did him much credit, because in a career spanning more than 50 years, he had more effect on the journalistic landscape of this country than may be any of his peers. 
I have known Kailash since 1982, halfway through his time at the BBC. He was notable for his span at the BBC, rising to head of the BBC, and after he left the BBC as a commentator and community leader. He had an eye for news, and knew his craft inside out, and all that worked with him remembered him as an inspiring presence. It was always a joy to work with him, offer thoughts and analysis on political developments and elections, his insight was never less than extraordinary.
The great love in Kailash’s life was art, and his appreciation for all forms, art, literature, poetry, theatre and dance gave him so much joy and filled him with energy. It was always a real pleasure to see him after a performance, and to hear his thoughts on what we had just seen.
His family was of course the other thing that drove him, and my thoughts and condolences are with his wife Vinodini, his three daughters and one son.
Virendra Sharma MP
Member of Parliament for Ealing Southall
House of Commons, London SW1A 0AA
यह अत्यंत दुखद है कि श्री कैलाश बुधवार अब हमारे बीच नहीं रहे. उनका निधन न केवल ब्रिटेन के हिंदी रेडियो प्रसारण जगत के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतीय साहित्यिक और सांस्कृतिक समुदाय के लिए अपूरणीय क्षति है. इस अपार दुःख की घड़ी में मैं भारत के उच्चायोग, लंदन की ओर से शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूँ  और ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ  कि वह दिवंगत आत्मा को चिर शांति प्रदान करे और शोकाकुल परिवार को इस दुःख को सहन करने की शक्ति और धैर्य दे.
मनमीत सिंह नारंग
मन्त्री समन्वय – भारत का उच्चायोग
लंदन
कैलाश जी आप तो रिश्तों को बहुत ख़ूबसूरती से निभाना जानते थे… आप अपने कुछ प्लैन्स दोस्तों से भी डिस्कस किया करते थे। किताबें लिखना शुरू करने जा रहे थे तो वो भी शर्मा जी से ज़िक्र किया…. भारत चले तो वो भी खुश हो हो कर बताया कि “इस बार कोशिश रहेगी कि सभी रिश्तेदारों  से मिल सकूं”… तो फिर आप अब कैसे और क्यों उठे और चले गए…!
हम सभी परेशान हैं कि आप के बगैर एक वैक्यूम जो हो गया हे उसकी पूर्ति कैसे हो पाएगी? आपके पास हर समस्या का एक पॉज़िटिव हल होता था। इतने लम्बे अर्से में आपके मुंह से किसी की बुराई नहीं सुनी… सबकी तारीफें करते रहना और मुस्कराते रहना यही तो आपका व्यक्तित्व था। आप सिर्फ़ हम लोगों ही को नहीं बल्कि हज़ारों चाहने वालों को तन्हा छोड़ गए हैं। सिर्फ कैलाश बुधवार नहीं गया है एक दोस्त, एक भाई, एक बाप, एक दानिश्वर, और एक अच्छा इंसान चला गया है… हम सब आपको हमेशा हमेशा याद रखेंगे और आपकी इतनी ख़ूबसूरत यादों के साथ सिर्फ़ मुस्कुरा लिया करेंगे… वही मुस्कराहट जिसकी मिठास आप सबके जीवन में घोल दिया करते थे…
काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी
Councillor for Colindale, Barnet
वरिष्ठ साहित्यकार, लंदन।
श्री कैलाश बुधवार का निधन ब्रिटेन में न केवल हिंदी रेडियो प्रसारण जगत के लिए बल्कि सम्पूर्ण भारतीय साहित्यिक और सांस्कृतिक समुदाय के लिए एक युग के अवसान के समान है. उन्होंने न केवल रेडियो को एक नई आवाज दी बल्कि अपने गहन चिंतन और रचनाशीलता से प्रवासी हिंदी साहित्य को भी समृद्ध किया. वे एक रेडियो प्रसारक और मंचीय कलाकार होने के साथ-साथ एक सहृदय और संवेदनशील इंसान के रूप में भी लोगों के दिलों के करीब थे. उनका निधन मेरे लिए निजी तौर पर भी एक बड़ी क्षति है. इस अपार दुःख की घड़ी में मैं शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदना प्रकट करता हूँ और दिवंगत आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ.
(तरुण कुमार) 
अताशे (हिंदी व संस्कृति)
भारत का उच्चायोग, लन्दन
कैलाश बुधवार से मेरी पहली मुलाक़ात 1982 में दिल्ली के इंपीरियल होटल के कमरा नंबर 109 में हुई थी, जहां मुझे बीबीसी के साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था। किसी पाँच सितारा होटल में इंग्लैंड आए एक बड़े व्यक्ति के सामने जाना एक छोटे से शहर के नौजवान के लिए एक भयभीत करने वाला अवसर था।  पसीने से लथपथ जब मैं उनके कमरे में दाखिल हुआ तो ज़बान सूख रही थी। उन्होंने मुझे अपने हाथ से एक गिलास पानी दिया। फिर चाय मँगवाई और फिर पूछने लगे घर का हाल। इंटरव्यू कब शुरू हुआ और कब ख़त्म पता ही नहीं चला। 
यही थी कैलाश बुधवार के विशाल व्यक्तित्व की सबसे बड़ी विशेषता, उनके  सानिध्य में कोई भी असहज नहीं रह सकता था। वो स्वयं तो बहुत नापा तुला बोलते थे लेकिन हम युवाओं को अपनी बात कहने और बहस करने की पूरी आज़ादी देते थे। ये हम भारत से आने वालों के लिए एक अचंभे की बात थी जहां बॉस बोलता कम था और सुनता ज़्यादा था। 
बीबीसी के भीतर वो अक्सर अपने अंग्रेज़ अफ़सरों से हिन्दी की लड़ाई लड़ा करते थे, लेकिन पूरी शालीनता के साथ। न कभी स्वर ऊंचा हुआ; न कभी शब्दो में कड़ुवाहट आई। अँग्रेजी के अलावा बुश हाउस से दुनियाँ की तैंतालीस भाषाओं में प्रसारण होते थे। ऐसा लगता था कि कैलाश जी ने बीबीसी से प्रसारित विदेशी भाषाओं में हिन्दी को सबसे आगे ले जाने के लिए अपने अन्तर्मन में दृढ़ प्रतिज्ञा की हुई थी। 
जिस दिन श्रीमती इन्दिरा गांधी की हत्या हुई उस दिन अपनी एक रिपोर्ट के अंतिम वाक्य में मैंने लिखा कि जिन अंगरक्षकों को श्रीमती गांधी के जीवन रक्षा की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी उन्होंने ही उनकी हत्या कर दी और इस प्रकार भारत के इतिहास में कुछ और जयचंदों का नाम जुड़ गया। 
देश विदेश के कई सिक्ख संगठनों ने टेलीग्राम भेजकर बीबीसी के डाइरेक्टर जनरल से मेरी शिकायत की। कैलाश बुधवार मेरे ऊपर ढाल बन कर खड़े हो गए थे क्योंकि मैंने उस रिपोर्ट में एक बार भी सिक्ख शब्द का प्रयोग नहीं किया था। मैंने हत्यारों को सिर्फ अंगरक्षक कहा था, सिक्ख नहीं। जहां भी सफ़ाई मांगी गयी वहाँ वे स्वयं गए । 
मेरा और उनका 38 वर्षों का साथ था, मैंने उन्हे कभी किसी की आलोचना करते हुए नहीं सुना। हिन्दी प्रसारकों के भीष्म पितामह की विनम्रता, आत्मविश्वास और स्वाभिमान को शत-शत नमन।
डॉ. विजय राणा
पूर्व बीबीसी प्रसारक

कैलाश बुधवार ब्रिटेन में हिंदी के सबसे बड़े स्तम्भ थे। इसका मुख्य कारण तो निश्चय ही उनका बीबीसी हिंदी सेवा का अध्यक्ष  होना था  लेकिन हिंदी के प्रति उनका स्नेह और सम्मान भी कम नहीं था। उनके साथ हिंदी विभाग में तब ओंकार नाथ श्रीवास्तव भी थे जिन्हे हिंदी साहित्य के क्षेत्र में काफी जाना जाता था। कैलाश जी की बात ही  कुछ और थी। हिंदी भाषा के मामले में वह किसी को भी टक्कर दे सकते थे। और वह स्वयं भी काफ़ी लोकप्रिय प्रसारक थे।
दरअसल कैलाश बुधवार की बड़ी विशेषता यही थी कि अपनी मेहनत से अपने से बड़े ताक़तवर व्यक्ति के सामने टिक जाते थे। 1979 में  गोरों को पछाड़ कर वह हिंदी सेवा के पहले अश्वेत अध्यक्ष चुने गए, उस समय ऐसी कल्पना भी संभव नहीं थी। लेकिन उनकी परीक्षा तो अभी बाक़ी थी। गोरे अफ़सर उनसे चिढ़ते थे और उन्हें उतना समर्थन नहीं देते थे जिसकी उन्हें अपेक्षा थी। शुरू में हिंदी सेवा के भी कुछ साथी उन्हें पर्याप्त सहयोग नहीं देते थे और कुछ तो अंग्रेज़ों के साथ ही ज़्यादा उठते बैठते थे। लेकिन कैलाश जी ने कभी इसकी शिकायत नहीं की। अपनी गरिमा बनाये राखी और अपना काम  मेहनत से करते रहे। कैलाश बुधवार के नेतृत्व में बीबीसी की श्रोता संख्या 4 करोड़ तक पहुँच गयी थी जो किसी भी भाषा में बीबीसी का एक रिकॉर्ड था। कैलाश जी की स्मृतियों को नमन
नरेश कौशिक
बी.बी.सी. लंदन
Passing away of Kailash Budhwar was a great shock for me who knew him since 1969. His demise undoubtedly is a great loss to the world of Asian broadcasting in the UK. He was a thorough gentleman. A generous smile on his face made him popular instantly among his colleagues. He was not only a great broadcaster, but was a successful head of Hindi and Tamil service of the BBC. I felt proud when Kailash became the first Indian to head any BBC section. His past experience as an Actor at Prithivi Theatres helped him to reach great heights in the field of broadcasting. I was greatly impressed by his knowledge and understanding of current affairs in BBC editorial meetings which I attended on behalf of Urdu Service. Surely, he was a great teacher for young broadcasters who joined BBC Hindi Service during its golden years from 1969 to 1992. I will miss him enormously. My thoughts and sympathies are with Vinodini Budhwar at this sad juncture.
Mr. Asaf Jilani
Former Head, BBC Urdu Section

पत्रकारिता के अंतर्राष्ट्रीय मंच पर मैंने पाँव रखा ही था कि बी॰बी॰ सी हिंदी विभाग के मुखिया, आचार्य बुधवार जी के वरद हाथों के स्पर्श ने मुझे आशीर्वाद के प्रसाद से मालामाल कर दिया। कैलाश बुधवार जी से किसी न किसी साहित्यिक या सांस्कृतिक कार्यक्रम में भेंट हो जाती और उनके स्नेह-आशीष का झरना फूट पड़ता। मैं चरण छूने को झुकता और वे बीच में ही रोक कर गले लगा लेते। मैं हीन भावना का शिकार अपने प्रोग्राम के विषय में बात टालने की कोशिश करता तो वे सामने से वही प्रोत्साहन बरसा देते “रवि भाई बहुत अच्छा कर रहे हो, मै कभी-कभार सुन पाता हूँ”।  मैं समझ जाता “जो बालक करे तौतरि बाता, मुदित होय सुनी पितु  अरु माता”। आचार्य जी वात्सल्य धर्म निभा रहे थे। इस प्रकार कितने ही लोगों को उन्होंने उँगली पकड़ के चलना सिखाया। हरियाणा के तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा को भारत-भवन लंदन में कैलाश बुधवार जी से मिलवाते हुए मैंने कहा “ये हमारे आचार्य जी हैं” तो हुड्डा जी तपाक से बोले “तुम से पहले हमारे भी आचार्य हैं भाई, मैं कुंजपुरा सैनिक स्कूल में इनका शिष्य रहा हूँ। 
11 जुलाई को उनके आकस्मिक निधन की सूचना पर विश्वास नही हुआ। कैलाश जी ब्रिटेन में हिन्दी  पत्रकारिता जगत के पितामह कहे जा सकते हैं। रेडियो प्रसारण, हिन्दी भाषा, ओजस्वी वाणी एवं तेजस्वी व्यक्तित्व के कारण कैलाश जी हमारे दिलों में बसे रहेंगे। परमात्मा में विलीन पुण्यात्मा को शत शत नमन!
रवि शर्मा
लाइका रेडियो, लंदन।

बीबीसी बुश हाऊस के कॉरीडोर में कैलाश भाई (बुधवार) से स्टूडियोज़ से आते जाते दिन में कई मरतबा मुलाक़ात होती थी। और हर बार वो कुछ ना कुछ कहते ज़रूर, “हाँ भाई कैसी हो दुर्दाना?” हमेशा चेहरे पर मुस्कुराहट, कमान जैसी भंवें उचका कर जब वे अपने गरजदार मगर नर्म लहजे में बात करते तो मुझे ‘पृथ्वीराज कपूर’ की आवाज़ का सा गुमान होता। जब भी तारीख़ में उनका ज़िक्र आएगा, तो हम कह सकेंगे कि हम कैलाश बुधवार के हम आसरों में से हैं। ऐसी हस्तियाँ बार बार जन्म नहीं लेती हैं मगर अपनी छाप हर ज़माने में छोड़ जाती हैं। उनका नाम हमेशा अच्छे लफ़्ज़ों में याद रखा जाएगा। और मेरे अलावा कितने ही चाहने वालों के दिलों में उनके शफ़क़त से भरे क़हक़हे ज़िन्दा रहेंगे।
दुर्दाना अन्सारी
पूर्व बीबीसी उर्दु विभाग
OBE Hon Cdr RN

कैलाश बुधवार का जाना बीबीसी हिंदी के स्वर्ण युग का अवसान है…
1980 के दशक में एक शांत बौद्धिक शहर इलाहाबाद और तहज़ीब के मरकज़ लखनऊ से मुझे लंदन खींच लाने की कहानी भी उन्हीं से जुडी है। स्तरीय प्रसारकों, पत्रकारों, अकादमिक और सांस्कृतिक रुझान के लोगों को पह्चानने की उनकी परख ने ही 1980 के दशक में बीबीसी हिंदी को एक ऐसी ऊंचाई दी जो भारत के लिए एक कसौटी बनी। यह वो ज़माना था जब भारत में प्रसारण की दुनियां आकाशवाणी और दूरदर्शन तक महदूद थी।
उत्कृष्टता हासिल करने का कैलाश जी का मंत्र था अपने सहयोगियों का आदर। उनकी इसी सदाशयता से बीबीसी प्रसारकों की एक टीम उपजी जिसने बीबीसी हिंदी सेवा को एक ऐसी साख़ दी जो दूर तलक  गयी। उन्होंने कभी किसी की ग़लती की चर्चा स्टाफ़ मीटिंग में नहीं की। क्यूबिकल में ही उन्होंने सबको आईना दिखाया कि किससे प्रसारण में कहाँ चूक हुई। 
रिटायरमेन्ट के बाद मेरी सिनेमाई संस्था एस.ऐ.सी.एफ और सांस्कृतिक संस्था सान्निध्य में सबसे ज़्यादा उपस्थिति उन्हीं की रही। सारी उपलब्धियों के बाद भी कैलाश जी मूलतः और अंततः एक इन्सान रहे। पिछले 32 वर्षो के लंदन प्रवास में मुझे कोई ऐसा व्यक्ति नहीं मिला जिसकी नज़र में कैलाश जी की तस्वीर कुछ अलग रही हो।  और जहाँ तक बीबीसी हिंदी सेवा की कहानी है कैलाश बुधवार निःसंदेह उसके पहले और अंतिम नायक थे।
ललित मोहन जोशी
कवि, लेखक, फ़िल्म इतिहासकार, वृत्त फ़िल्मकार 

यह कहना ग़लत ना होगा कि कैलाश (बुधवार) जी ने मुझे बीबीसी हिन्दी से जोड़ा। उन्होंने बीबीसी प्रमुख का पद उस समय संभाला जब भारत में बीबीसी के प्रति रोष था। भारतीय जनता को कुछ ऐसा लगता था कि बीबीसी का झुकाव पाकिस्तान की ओर रहता है। कैलाश जी के नेतृत्व में बीबीसी ने भारतीय श्रोताओं का विश्वास जीता। और धीरे धीरे बीबीसी की प्रमाणिकता पर भारतीय श्रोताओँ को इतना विश्वास हो गया कि बीबीसी को सच्ची और विश्वसनीय ख़बरों का प्रयाय माना जाने लगा। कैलाश जी एक लोकप्रिय एवं कुशल प्रसारक तो थे ही, उस पर उन्होंने हिन्दी सेवा की बागडोर संभाल कर उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया कि वे एक कुशल प्रशासक भी हैं। उनके नेतृत्व में मुझे क़रीब दस वर्ष तक काम करने का मौक़ा मिला। ढेरों मधुर स्मृतियाँ हैं। आज वे हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन अगर कैलाश जी की ही शब्दावली में कहूं तो, “जाओ दोस्त, लेकिन याद रखना, हमारे दिलो दिमाग़ में बसे रहोगे।
भारतेन्दु विमल
पूर्व बीबीसी पत्रकार, उपन्यासकार एवं ग़ज़लकार। 

कैलाश जी का जाना… जैसे ब्रिटेन के हिंदी परिवार के ऊपर से पिता का साये का उठना है। हिंदी का कोई प्रतिष्ठित साहित्यकार हो या साधारण कार्यकर्ता, कैलाश जी सभी को एक पिता की ही तरह स्नेह और आशीष देते रहे हैं। हिंदी के किसी भी आयोजन में, छोटे या बड़े,  कैलाश जी की उपस्थिति उसे विशेष बना देती थी। वे कभी इस बात की परवाह नहीं करते कि उन्हें विशेष अतिथि, अध्यक्ष या वक्ता के रूप में बुलाया गया है या साधारण दर्शक के रूप में; कैलाश जी अधिक से अधिक आयोजनों में आते रहे। और कभी किसी कारण  ना आ पाने की स्थिति में वे सदैव फ़ोन कर कार्यक्रम की शुभकामनाएँ देना नहीं भूलते थे। कैलाश जी जैसे बड़े आदमी की इतनी सहज सादगी उन्हें जनप्रिय बनाती है। कैलाश जी के साथ मेरी अनेक स्मृतियाँ हैं जो सदैव मुझे प्रोत्साहन और प्रेरणा देती रहेंगी। कैलाश जी की सादगी, उनका व्यक्तित्व, स्वभाव, साहित्य.. सम्पूर्ण जीवन हम सबके के लिए प्रेरणा है। मैं समझता हूँ कि कैलाश जी के व्यक्तित्व का 10 प्रतिशत भाग भी यदि हम अपने जीवन में ग्रहण कर सकें तो ऐसे महान व्यक्ति का जीवन सार्थक हो सकता है। मैं तहे दिल से कैलाश जी की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करता हूँ। 
पद्मेश गुप्त, वरिष्ठ साहित्यकार
ऑक्स्फ़र्ड, यू.के
हम सबके माननीय एवं प्रिय कैलाश बुधवार जी के निधन की ख़बर सुनकर बहुत दुःख पहुंचा। उनके प्रभावशाली एवं स्नेहपूर्ण व्यक्तित्व से हमेशा मित्रता की झलक दिखाई देती थी। बीबीसी हिन्दी सेवा में उनका कार्यकाल स्वर्णिम युग था। उनकी आवाज़ के माध्यम से ही हमारा परिचय बीबीसी हिन्दी सेवा से हुआ। उनकी धीर गंभीर आवाज़ से हिन्दी के प्रसारण भी गौरवान्वित हो जाते थे। उनका श्रोता वर्ग दूर दूर तक फैला हुआ था। उनकी लोकप्रियता समाज की हर पीढ़ी के साथ लगभग समान ही थी। कैलाश जी ने एक वाक्या मुझे और मेरे पति डॉ. वर्मा को बताया था कि एक बार वे कानपुर रेल्वे स्टेशन की टिकट खिड़की पर टिकट के बारे में कुछ मालुमात कर रहे थे कि एक सज्जन एकदम पूछ बैठे, “आप कैलाश बुधवार हैं क्या?” कैलाश जी ने जवाब दिया, “जी हां, लेकिन मैंने आपको पहचाना नहीं।” उस सज्जन ने कहा, “जी पहचानेंगे कैसे। मैं तो आपको पहली बार मिल रहा हूं। मगर मैं आपकी आवाज़ को अच्छी तरह पहचानता हूं।” कैलाश जी एक कर्मयोगी थे। उनकी बीबीसी हिन्दी की अनवरत सेवा और उनका दोस्ताना अन्दाज़ हमेशा याद रहेगा। उनके आकस्मिक चले जाने से हिन्दी जगत का एक सितारा जैसे ग़ायब हो गया हो। उनकी यादें हमेशा हमारे साथ रहेंगी। उनकी आत्मा की शांति के लिये परमात्मा से प्रार्थना करती हूं। 
जय वर्मा
वरिष्ठ साहित्यकार एवं अध्यक्ष – काव्यरंग (नॉटिंघम)

कैलाश जी से मेरा रिश्ता बहुत पुराना है। अपनी अंतिम ई-मेल में उन्होंने मुझे लिखा था, प्रिय दिव्या, तुम्हारे ई-पत्र के लिए धन्यवाद, ओंकारनाथ श्रीवास्तव के कार्यक्रम में मैं बेशक कुछ कहना चाहूंगा, मुझे कार्यक्रम का प्रारूप आदि भेज दो, फिर जैसा तुम कहो, मुझे स्वीकार होगा। आदर सहित, कैलाश। 
उनके क़रीबी दोस्तों से पता लगा कि उनकी तबीयत नासाज़ थी; हमने अपना कार्यक्रम जुलाई-अगस्त के लिए स्थगित कर दिया। उनके कार्यक्रम में भाग लेने वाले सम्मानित जनों की होड़ को देखते हुए मुझे लग रहा था कि एक कार्यक्रम से काम नहीं चलने वाला; वह सभी को समान रूप से प्रिय थे। मैं किसी को भी निराश नहीं करना चाहती थी इसलिए तय किया गया कि कैलाश जी की उपलब्धियों पर निर्मित डॉ निखिल कौशिक की फ़िल्म को दिखाने के बाद हम श्रोताओं को उनसे जी भर कर बात करने का मौक़ा देंगे किन्तु क्या जानती थी कि अगला कार्यक्रम हमें उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए आयोजित करना पड़ेगा।  
नम्रता की प्रतिमूर्ति कैलाश जी का स्वभाव अद्भुत था।  नेहरू केन्द्र, लंदन के अनगिनत कार्यक्रमों की यादें हमारी धरोहर हैं। वातायन यू.के. की ओर से मैं कैलाश जी की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना करती हूँ, प्रभु विनोदिनी जी और उनके परिवार को इस बड़ी क्षति को सहने की क्षमता प्रदान करें।  ॐ शान्ति शान्ति… 
दिव्या माथुर
वरिष्ठ साहित्यकार, अध्यक्ष – वातायन।
कैलाश बुधवार की जीवन यात्रा उस समय में हुई जिस समय टेक्नॉलॉजी का विकास हुआ, एक नई दुनिया का निर्माण हुआ, घर का एक कोना घेरने वाला रेडियो हमारी जेब में एक पेन के आकर में सिमट गया, 10-12 दिनों में पहुँचने वाला पत्र एक बटन दबाते ही दुनिया के किसी भी कोने में तुरंत पहुँचने लगा, इस परिवर्तन के साक्षी रहे हैं कैलाश जी।
कैलाश जी का मानना था कि अपने काम के प्रति निष्ठा व् लगन होना जीवन में सफलता का मूल मन्त्र है,  “देखो भाई, रेडियो पर तुम्हारी आवाज़ जिन शब्दों को श्रोता तक पहुँचाती है उन शब्दों का सही उच्चारण ही प्रसारक का मूल धर्म है” इस लगन व् निष्ठा से उन्होंने बीबीसी हिंदी सेवा को जिन ऊंचाइयों तक पहुँचाया, यह सर्व विदित है; उस छोटे से हिंदी एकांश में उन्होंने विभिन्न क्षेत्रो में गुणवान प्रसारकों की जिस टीम का गठन किया वह अद्भुत है।
कैलाश जी अब नहीं रहे, किन्तु ये कहना सही नहीं है, वे उस अवस्था में पहुंचे हैं जहाँ पहुँचने के पश्चात मनुष्य सदैव रहता है, उनके असंख्य श्रोता, उनके मित्र उनका परिवार उनकी भौतिक कमी महसूस चाहे करे किन्तु कैलाश जी को अनुपस्थित नहीं पायेगा। उनकी स्मृति को विनम्र श्रद्धांजलि।
डॉ. निखिल कौशिक
वरिष्ठ कवि, वेल्स, यू.के.

3 टिप्पणी

  1. पुरवई पत्रिका के माध्यम से श्री बुधवारा जी को साहित्यकारों के द्वारा दी गई श्रधांजलि से उनके जीवन परिचय के निकट आ गए अंजान लोगों के मन भी द्रवित हो गये । स्वर्गीय बुधवारा जी को
    पुष्पांजलि ।

  2. मैं जब भी लंदन जाती और कैलाशजी से मिलती तो वे बड़े अपनापे से कहते, ‘आओ मधु’। उनकेे अपनेपन के रुख़ की कायल रही हूं। आप सबके साथ मेरी ओर से विनम्र श्रद्धाजंलि व सादर नमन।

  3. “आत्मवत् आचरेत्”….. जिस प्रकार के व्यवहार की अपेक्षा आप दूसरों से अपने लिए करते हैं, वैसा ही व्यवहार आप दूसरों के प्रति करें। इस कसौटी पर सर्वथा खरे उतरने वाले स्वनामधन्य युगपुरुष कैलाश बुधवार जी का दर्शन करने का सौभाग्य मुझे दो बार लन्दन में मिला था। मुझे लगा जैसे उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व मानवता का एक अनोखा इतिहास रच रहा है।
    मेरी अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि। विनम्र नमन। ओम् शान्ति:।

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