Saturday, July 27, 2024
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प्रदीप गुप्ता की कविता – युद्ध

मैं वेस्ट मिनिस्टर संसद के भीतर
ठीक विंस्टन चर्चिल के बुत के सामने खड़ा हूँ
बुत के चेहरे पर अतिशय क्रोध के भाव
मूर्तिकार ने ज्यों के त्यों उकेर दिए हैं .
जिस दिन नाज़ी विमान ने
ब्रिटिश संसद के डोम पर
बम गिराया था ,
चर्चिल ने ठान लिया था
इस युद्ध में नाज़ी हुकूमत को नेस्तनाबूद करके छोड़ेंगे
फिर चर्चिल ने देश की सम्पदा,
अपने उपनिवेशों के फ़ौजी, संसाधन सब झोंक दिए थे
जीत मिली
किस क़ीमत पर
फ़ौजियों की शहादत, उजड़े परिवार, ध्वस्त भवन
और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था
विश्व युद्ध फ़तह करने और युद्ध नायक
होने के वावजूद ब्रिटिश जनता ने नहीं चुना
अगली बार अपना नेता .
विंस्टन चर्चित नेपथ्य में चले गए
और इतिहास की पुस्तकों में
एक टिप्पणी के रूप में दर्ज हो गए .
यह याद रखने की बात है
युद्ध में कोई विजेता नहीं होता
क्योंकि युद्ध की जीत
हमेशा  योद्धाओं की शहादत ,
विधवाओं और अनाथ बच्चों के क्रंदन की क़ीमत पर होती है
लुढ़की अर्थव्यवस्था का दंश
विजयी राष्ट्र को भी साल दर साल झेलना पड़ता है.
पर युद्ध पिपासु अपने अलग ही नशे में रहते हैं
ओर उनकी सनक की क़ीमत कई पीढ़ियों को चुकानी पड़ती है
प्रदीप गुप्ता
प्रदीप गुप्ता
Freelance Media Journalists' Combine के प्रमुख हैं. संपर्क - [email protected]
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