निज़ाम फतेहपुरी की ग़ज़ल
ज़ुल्म कितना तू ज़ालिम करेगा यहाँ।
जितने आए सिकंदर चले सब गए।
आग नफ़रत की मिलके बुझायेंगे हम।
बाद पतझड़ के आती बहारें सदा।
काम ऐसा करो की ख़ुदा ख़ुश रहे।
ताज़ तेरा रहा है न मेरा रहा।
संविधान आज है तो निज़ाम आज है।
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