सिर्फ़ शहर से था प्यार
गांव जाने में होता था  अपमान
मतलबी इंसान ! बचपन तूने कहा बिताया
बड़ा है ,तुझे खुद पर  गुमान
मत भूल तुझे किसने बनाया
उसी ग्रामीण वासी को तुमने जाहिल पुकारा
वह जाहिल पला प्रकृति की गोद मेंं
जिस शहर पर तुम करते फक्र हो
वह बना इसी गांव के बल पर
पर कोई नहीं
एक दिन तुम समझ जाओगे
लौटकर इसी गांव आओगे…
लौटकर इसी गांव आओगे
क्योंकि..
तेरा वजूद यहीं बचाएगा
और  जाहिल गंवार तेरे दर कभी नहीं जाएगा
गांव हर आपदा से उसे बचाएगा
गांव बसा प्रकृति के आँचल तले
तेरे शहर ने प्रकृति का शोषण तो बहुत किया
अपने दिखावे में तूने भी कौन सा कम किया
जिस शहर पर तुम करते रहे गुमान
वह इसी प्रकृति के विनाश पर खड़ा हुआ
तेरे मतलब का शहर खड़ा तो हो गया
पर …
तुझे  जीने को हवा,पानी और रोटी चाहिए
वह पाओगे तुम सब इसी गांव से
शायद; आज तुझे मेरी कही बातें याद आए
क्योंकि तुम शहर के ,मैं गांव का
तुम शहर के ,कैद हो घर की चारदीवारी में
मैं गांव का ;आजाद हूं गांव में,
कुछ नहीं मेरे पास करने को
मैं बैठ जाऊंगा अपने पेड़ के नीचे
फिर से प्रकृति को निहारने
तुम क्या करोगे?
क्या नया सोचोगे?
उस बंद चारदीवारी में
सोच ; यही कहता था मैं
कि तुम
कि तुम  एकदिन आओगे लौटकर इसी गांव में।।

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