कितने दिन और कितनी रातें जाग जागकर बीत रहे
हाँ हमने इनकी खातिर ही दोहे,मुक्तक,गीत कहे…!
लोगों को लगता है लेकिन लिखना यह आसान नहीं
मोल-भाव कर घर ले आयें, यह कोई सामान नहीं
अनुभव के सागर में गहरे गोते खाने पड़ते हैं
पल में हँसना, पल में रोना,भाव जगाने पड़ते हैं
हार हार कर इक-इक लम्हा, इक-इक दिन को जीत रहे
हाँ हमने इनकी खातिर ही दोहे,मुक्तक,गीत कहे….
कितने दिन और कितनी रातें…..
मैंने अपने इन गीतों में सब एहसास निचोड़े हैं
जितने जितने भाव उमड़ते,उतने लगते थोड़े हैं
जाने कितनी बार अश्रु का , बांध भी मैंने तोड़ा है
सिमटी-बिखरी सी यादों को इक धागे से जोड़ा है
कभी दर्द ने तपन बढ़ाई, कभी-कभी सब शीत रहे
हाँ हमने इनकी खातिर ही दोहे,मुक्तक,गीत कहे….
कितने दिन और कितनी रातें….
युगों युगों तक दोहे,मुक्तक जग से प्रीत निभाएंगे
हम माटी में मिल जायें पर लोग इन्हें दोहराएंगे
जब-जब नफ़रत फैलेगी मैं प्रेम भरा संदेश लिखूँ
धरती,अम्बर,सागर,पर्वत,सबसे पहले देश लिखूँ
अंतिम बेला भी जीवन में, मातृभूमि से प्रीत रहे
हाँ हमने इनकी खातिर ही दोहे,मुक्तक,गीत कहे…
कितने दिन और कितनी रातें…..!!
बहुत अच्छा, शुभकामनाएँ– भोलानाथ कुशवाहा, बाँकेलाल टंडन की गली, वासलीगंज, मिर्जापुर-231001(उ.प्र.)
मो- 91-9335466414 ,
91-9453764968
E Mail- bnkmzpup@gmail.com