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व्यस्त हूँ मैं जिंदगी की
पेचीदीकियाँ सुलझाने में
दर्द के साथ लय बनाने में
और टूटे रिश्तों को एक माला में पिरोने में .
व्यस्त हूँ मैं हर बार दिलासा देने में
कई बार वह जो किया ही नहीं
गुनाह मानने में
जानते हो क्यों ?
टूटे रिश्तों को एक माला में पिरोने में .
व्यस्त हूँ मैं मेकअप की परत में
गम छिपाने में
और सूखे दुःख से भरे लबों पर
मुस्कराहट की चलिपस्टिक लगाने में .
व्यस्त हूँ मैं खुद को तराशने में
बिखरे हुए सपनों को संजोने में
वक्त ही कहाँ है तेरा- मेरा कहने और
करने का
पता है क्यों ?
कव्यस्त हूँ मैं यूँ ही बेबजह ग़मों को कर धता मुस्कराने में
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चढ़ता सूरज और डूबता सूरज
बस समय का फेर है
उगते दोनों ही और डूबते भी हैं
समय की देर सबेर है .
धारण करके धैर्य और विश्वास
कर लो थोड़ा इन्तजार
जिस दिन कदम चूम लेगी कामयाबी
बदल जाएगा दुश्मनों का व्यवहार .
आज अँधेरा घाना है उदासियों का
दूर दिख रहा किनारा
जिस दिन थाम लोगे पतवार विशवास की
मिट जाएगा हर भ्रम तुम्हारा .
जिंदगी कागजों में लिखी हुई कोई
कहानी जैसी ही है
जिस दिन पूरी हो जायेगी यह किताब
रुखसत इस जहां से करना होगा .
अनगिनत ख्वाब और अनगिनत
यह तृष्णाएं
जीवन का सकूं चचुरा लेती हैं
बना देती हैं पाकीजा जिंदगी को शमशान .