
सांसद बॉब ब्लैकमैन की मेजबानी में संस्कृती सेंटर फॉर कल्चरल एक्सीलेंस द्वारा आयोजित, इस कार्यक्रम में 17 भारतीय भाषाओं को प्रस्तुत किया गया था, जिनमें से अधिकांश ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय प्रवासी सदस्यों द्वारा पेश की गई थीं।
कार्यक्रम में सौराष्ट्र, लद्दाखी और बिष्णुप्रिया मणिपुरी जैसी भारतीय भाषाओँ पर प्रकाश डाला गया जिन्हें ब्रिटेन में बिरले ही सुना जाता है. इन रचनाओं को प्रसिद्ध लेखकों और कलाकारों जैसे रवींद्र कोंडडा (सौराष्ट्र), रिनचेन वाचर (लद्दाख) और डिल्स लक्ष्मींद्र कुमार सिन्हा (बिष्णुप्रिया मणिपुरी)) द्वारा लिखा गया था।
इन्हें, मगही भाषा के साथ, पहली बार एक मंच पर लाने के लिए प्रस्तुत किया गया था। इस अवसर पर “इन्सेंस-काव्य सुगंध” नामक बहुभाषी रचनाओं का एक प्रकाशित संकलन जारी किया गया, जिसमें टेकरी, खुदवाड़ी, मैथिली और शारदा जैसी अनूठी लिपियाँ शामिल थीं। इस अवसर के लिए विशेष रूप से लिखी गई इन कविताओं में भाषा की सुंदरता, वर्तमान समाज में मानवीय मूल्यों, मूल भाषा के उपयोग में कमी, क्षेत्र की महान हस्तियों को श्रद्धांजलि और कई विषयों को शामिल किया गया है।

प्रतिभागी इंग्लैंड के विभिन्न क्षेत्रों से आए थे। संस्कृत केंद्र की संस्थापक रागासुधा विंजामुरी ने युवा पीढ़ी के लिए एक विरासत छोड़ने के महत्व पर जोर दिया और माता-पिता से बच्चों के बीच अपनी मातृभाषा के प्रति रुचि और उत्सुकता पैदा करने में सक्रिय भूमिका निभाने का आग्रह किया है।
डॉ विकास ने मगही में, ओडिय़ा में डॉ सहदेव स्वैन, डोगरी में मनु खजुरिया, कश्मीरी में अनुपमा हांडू, लद्दाखी में चंदा झा, हिमाचल पहाड़ी में डॉ विपिन नड्डा, पंजाबी में इंद्रपाल चंदेल, हिंदी में आशीष मिश्रा, टोन्या बरुआ चौधरी असमिया, मलयालम में लेक्ष्मी पिल्लई, सौराष्ट्र में कमलिनी कौशिक, राजस्थानी में लुम्बिनी बाफना, मैथिली में शरद झा, भोजपुरी में संगीता प्रसाद और सिंधी में भाविका रामरहीणी ने एक एक कविता प्रस्तुत की।
कार्यक्रम में तीन बच्चियों, तवीषा रोराने, श्रेया खरे और अनुष्का उपाध्याय द्वारा संस्कृत गीत मनसा सत्तम स्मरणेयम पर नृत्य, और संचिता दास द्वारा टैगोर की कविता निर्झर शोपनभंगो के गायन के साथ रागसुधा विंजामुरी की अभिनय प्रस्तुति ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस अवसर पर भाषा प्रचार के क्षेत्र में लेखिका शिखा वार्ष्णेय के प्रयासों की सराहना की गई और सांसद बॉब ब्लैकमैन ने शाल के साथ उनका सम्मान किया।