दिल में उड़ती अधूरी ख़्वाहिशों की डोरें हैं आसमान में नहीं, ईंट के मकानों में कैद वो कागज कोरे हैं हवा का झौंका कब आएगा स्याही-भरी-कलम हाथ में लिए लिखना चाहता हूँ कुछ पल सुकून से रहने दो अब मैं उड़ना चाहता हूँ हर मोड़ पर यहाँ दुष्टों का बसेरा दिल काले हैं पर चेहरे पर सवेरा बादलों से बरसती बारिश का दीदार कब होगा उन चेहरों से मखौटे उतरने दो अब मैं आगे बढ़ना चाहता हूँ कुछ पल सुकून से रहने दो अब मैं उड़ना चाहता हूँ मंज़िल दूर है पर रास्ते का पता नहीं सफर खूबसूरत है पर राह पर अकेला नहीं कब तक घिरा रहूँगा इन सन्नाटों में अब मैं चाँद की चाँदनी से रूबरू होना चाहता हूँ कुछ पल सुकून से रहने दो अब मैं उड़ना चाहता हूँ
बहुत खूब,अद्भुत।
बहुत खूब, अद्भुत