हे सांप, क्या बात है!
तुम भी हो गए टेक्नोसेवी,
मान लिया,
है तुम्हारा अपना बिल
दुनियाँ की चकाचौंध में
कहाँ लगे उसमें दिल
इसलिए तुम भी हो गए टेकनोसेवी
चट्टानों में लगे गर्मी
दलदलों की नरमी
झाड़ीयॉं हैं काँटेदार
रेंगना है दुशवार
इसलिए तुम भी हो गए टेक्नोसेवी
कायर तुम नहीं
कि
छुपो ऊँची लम्बी घासों में
दरख़्तों पे चढ़ना
है न तुम्हें स्वीकार
इसलिए तुम भी हो गए टेक्नोसेवी
फ़न फैलाकर देखते हो जब
शहरों की इमारतें
पहुँचे कैसे काले इरादों का विष
किया जाए कैसे किस
दरारें हैं नदारद
करते हो मिस
वो अपना धूर्त हिस
इसलिए तुम भी हो गए टेक्नोसेवी
मिल जाए गर इक मौक़ा
दे देते हो तेज़ तरार्र दिमाग़ों को धोखा
हा हा हा
हींग लगे न फटकरी रंग भी आए चौखा
इसलिए तुम भी हो गए टेक्नोसेवी.
सुन्दर कटाक्ष
अच्छी वक्रोक्ति है, सामन्यतः साँप को उसी दृष्टि से देखा जाता है जिस दृष्टि से आपने ने देखा। लेकिन मेरा अपना व्यक्तिगत विचार साँप को धूर्त और दुष्टता का प्रतीक नहीं मान पाता है।विष साँप का नैसर्गिक भाग है। हाथ पाँव आदि हर अंग से हीन बेचारा, ज़मीन पर रेंगने वाला जीव अपनी रक्षा कैसे करे, इस लिए प्रकृति ने विष दिया। साँपों को करीब से देखा है। दो बार तो पैरों के ऊपर से गुज़रे हैं। पर जब तक आक्रमण का अंदेशा नहीं होता, साँप कुछ नहीं करता। हमारे धर्मग्रंथों में साँप को सम्मान से देखा गया है। इस किए साँप का उपयोग इस कटाक्ष के लिए किया जाना मुझे रुचिकर नहीं लगा। यूँ लिखा अच्छा है, ध्वनि भी पुरजोर है।