हर दरख़्त गुलमोहर का,
क्यों खींचता है अपनी ओर |
हर वृक्ष अमलतास का,
क्यों करता है दिल में शोर |
तुम्हारी सप्तवर्षीय योजनाओं का
यादों में बदल जाना,
तुम्हारा अस्तित्व,
मांँ के आंँचल में सिमट जाना,
तुम्हारा प्यार तुम्हारी डांँट ,
तुम्हारा मौन,तुम्हारा गर्व,
तुम्हारा लक्ष्य,तुम्हारे सपने,
सब अब है मेरे अपनें |
मैंने यादों के संदूक में ताला नहीं डाला,
समय – समय पर हर एक याद को निकाला |
कभी प्रत्यक्ष-कभी परोक्ष तुम्हें महसूस कर,
हर सपने के ताने-बाने को,
मंद गति से धीरे-धीरे बुनाऔर मौन रहकर,
तुम्हारी उस चिरसंगिनी को समर्पित किया,
जो आज भी तुम्हारे उस लम्बे कद के
गर्व से गौरवान्वित होती है|
तुम्हारा हांँथ पकड़ टहलने जाना।
गुलमोहर /अमलताश की टहनियांँ
पकड़ा कर,
उनके पुष्पों को गिनाना l
हमें व्यस्त कर थकान
के एहसास से बचाना ,
इमामबाड़ा,रीजेंसी जैसी
ऐतिहासिक इमारतें दिखा ,
जीवन की क्षणभंगुरता का मर्म समझाना |
समय का महत्व समझा,
समय से पहले स्वयं दूर चले जाना l
इन सबने बना दिया हमें
आत्मनिर्भर,स्वावलंबी,समझदार,
जैसा तुमने चाहा,
पर आज भी तुम्हारे “अंतिम शब्द”
“न पाकर रोना नहीं ”
मुझे रोने नहीं देते,
आंँसुओं से मुझे कमज़ोर होने नहीं देते |
वो सहजता जो खो दी हमने
कायरता के डर से,
शब्दों,भावों ,एहसासों से
इस विशेष को सामान्य बनने नहीं देते |
तुम्हारे न होने का दुख नहीं,
क्योंकि तुम दिल ,दिमाग से
दूर कहांँ थे ,कहांँ हो ?
जब हथेली आज भी अपनी देखती हूंँ कभी,
तुम्हारे हाथों का एहसास होता है l
ऐसे में नज़रों के सामने,
कभी गुलमोहर मुस्कुराता है,
तो कभी अमलताश लहराता है,
और बड़ी से बड़ी थकान का एहसास,
खुद – ब – खुद मिट जाता है||
डॉ गीता द्विवेदी
पीएचडी, एम ए, बी एड (हिन्दी)
प्रवक्ता कानपुर
विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कहानी, कविता लेख एवं दोहो का प्रकाशन| प्रकाशित साझा उपन्यास- “हाशिये का हक़” शिवना प्रकाशन; प्रकाशित साझा कहानी संग्रह – “आरेंज पिघलती रही ” प्रलेक प्रकाशन| विविधा – श्रीहिंद पब्लिकेशन; पल पल दिल के पास ( विभूति झा ); TheSoup2- The Hope Publication शैली साझा कविता संग्रह (नेपाल)| संपर्क – [email protected]
बहुत भावपूर्ण, मर्मस्पर्शी कविता