Saturday, July 27, 2024
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डॉ. ममता पंत की तीन कविताएं

1-  ताकि खत्म हो सके
प्रतिभाशाली एवं गुमनाम स्त्रियां
भूत के गर्त में दबी सी
जिनमें जम गई है
गर्द की मोटी परत सी…
उनके अनगिनत
अनसुलझे सवाल
जिन्हें अनसुना कर दिया गया
वे सवाल अनायास ही नहीं उपजे
सदियों से कर रहे
अन्तर्मन में गुत्थम-गुत्था
अब आ पड़े हैं मुखर रूप धर
पितृसत्ता की झोली में
जिसका तिरपाल बिछा है पूरे विश्व में
वे सवाल
सवाल नहीं वर्चस्ववादी सत्ता के लिए
बस विषय मात्र हैं
चटखारे का
ताकि खत्म हो सके
स्त्री की बुद्धिमत्ता
कुचला जा सके
उसकी गंभीरता को
और उसकी जिज्ञासा को भी!
2 – वह…
जब तर्क करे वह
तो तुम्हारे पास
नहीं होता ज़बाब कोई
सिवाय कलंकित करने के
क्यों करते हो तुम ऐसा?
शायद उत्तर है मेरे पास
भयग्रस्त हो तुम
उसकी बुद्धिमत्ता से
उसके स्वभाव से
उसके ममत्व से
तुम डरते हो कि
ये स्त्रीवाची जीव
तुम्हें पछाड़
आगे न निकल जाए कहीं
जबकि वह
करती है विश्वास
सहभागिता पर
जिसके दम पर बढ़ती है आगे
और तुम
मौका नहीं छोड़ते
एक भी
उसे लज्जित करने का
कलंकित करने का !
3 – स्टेटस
मां ने कहा
“लड़का खानदानी है मिल लो
समझ न आए तो मना कर देना”
“मना कर देना ” वाक्य महत्वपूर्ण था
तो मैं आ गई मिलने तुमसे
तुम कहते हो
“मेरे स्टेटस की बात है
तुम्हें अपना स्पैक्ट्स हटा लैंस लगाना होगा…”
नहीं पसंद तुम्हें
मेरे चेहरे पर चश्मा
पर मेरी पसंद का क्या !
मेरी आंखों में लगा चश्मा
पहचान है मेरी
मुझे इससे एक अनूठा लगाव है
तुम्हें सहेजना होगा
मेरे लगाव को
मेरी पसंद को
और मेरी चाहतों को…
मैं आंखों की सर्जरी करूं
ये मुझे मंजूर नहीं
मैं तुम्हें शायद सुंदर लगूं बिना स्पैक्ट्स के
पर मेरी सुंदरता मेरे चश्मे से है
जिसके कारण
सक्षम हूं मैं
जीवन के अंधेरे कोनों को भी झांक पाने में
मैं कोई गाय-बैल नहीं
जिसे तुम बांध सको
पसंद की खूंटी से अपनी
इसलिए करती हूं रिजैक्ट तुम्हें
मुझे तलाश है
जीवनसाथी रूप में ऐसे सखा की
जो मन की बात को समझ
परख सके उसकी सुंदरता को
ऐसे अदद मित्र की तलाश
जो बुरे वक्त में खड़ा हो साथ मेरे
और कह सके कि
“तुम परेशान क्यों हो मैं हूं ना”
जो तुम कदापि नहीं हो सकते
तुम्हें तो प्रिय है
अपना स्टेटस!
डॉ. ममता पंत
डॉ. ममता पंत
डॉ. ममता पंत असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा पुस्तकें - आधा दर्जन के करीब पुस्तकें प्रकाशित व प्रकाशनाधीन. सम्मान - राष्ट्रभाषा सेवा रत्न पुरस्कार 2021-22; Daughter of Uttarakhand Award 2021-22. ईमेल - [email protected] मोबाइल - 9897593253
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1 टिप्पणी

  1. बहुत बेहतरीन रचनाएं, लेकिन कहीं न कहीं एकपक्षीय लगती हैं ? समाज में दो-चार महिला विरोधी मानसिकता वाले पुरूषों की वजह से तमाम पुरूषवर्ग को टारगेट करना कहां तक और कब तक उचित है ? जबकि हकीकत यह है कि महिलाओं के शोषण में कहीं न कहीं महिला ही अधिक जिम्मेदार होती है, इसे महिलाएं स्वयं स्वीकार करती हैं।

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