कौन?
चीरता धारदार सन्नाटे को उभरा मां भारती का व्यथित स्वर
भ…भा…भारती   म्…म….मैं…. डायर
जनरलू डायर? विस्फारित नयनों में….उभरा आक्रोश
क्यों आये हो आज?
बीत चले 104 वर्ष  / रिसते हुए मेरे घावों को
नासूर बन चुके अब मेरे जखम
कुरेदने आए हो उन्हें ? या देने  घाव नए ?
गर्क हो जाओ डायर…हत्यारे….विदेशी
फुफकारी / गरजी सिंहनी भारती।
भारती… मुझे माफ कर दो
क्षमा कर दो मेरे गुनाह को,
मैं भटक रहा वर्षों से,… नहीं सो सका सौ सालो से
कोंचती है…. नोचती है मुझे लाशें…. चीखें
चीत्कारें….सिसकिंयां…. रूदन…. आहे… बद्दुआएं।
वो बेकसूर मासूम रुकती सांसों / डूबती पुतलियों की नफरत
आख़री दम तक घूरती मुझे निर्दोष आंखे..
बाग में फैले चिथड़े…. खून… मांस के लोथड़े
कुंए में समाती रूहे… वो पवित्र निर्दोष रूहे
मंडराती हैं मेरे आस पास, सर्द-जर्द
ताकती है अपलक मुझे, घेरती हैं , घूरती है,
परन्तु मरने नहीं देती… भागने नहीं देती… सोने नहीं
देती… नहीं आने देती सकून मेरी रूह का…
भारती… मैं अपराधबोध से खण्डित हूँ…. थक गया हूं…
मरना चाहता हूँ… मुक्ति चाहिए मुझे.. हाथ जोड़े थर थर
कांप रहा मरने को आतुर… जनरल डायर।
माफ़ कर दो मुझे भारती…. सदगति दे दो.. मोक्ष दिला दो…
मैं अभी तक बंद हूँ यही, जल्लियां वाला बाग़ में !
यह रूहे मुझे बाहर निकलने नहीं देती..
जकड़े हुए हैं मेरे काल को ..
भारती.. दया कर…. पाव पकड़ता हूं तेरे
क्षमा याचना करता… दिन.. निशि दिन तड़पता गिड़गिड़ाता
मुझे मुक्त करा दो मेरे ज़मीर की केद से… ज़िल्लत से…
मैं….मैं….मैं…. तेरा अपराधी.. तेरे बच्चों का हत्यारा..
मुआफी के लायक नहीं मैं…. भारती… पर
…मुझे माफ़ कर दो…!!!!!?
डायर … सुन… श्मशान घाट की नीरवता
को तोड़ती आवाज आयी,
देख दशा डायर की ऐसी… भारत माता पास आयी।
तिरस्कृत भाव… आग उगलता स्वर
मोक्ष चाहता है तू ??  – मिलेगा,
माफी चाहता है तू? – दूंगी..
कर दूगी माफ मैं खून तुम्हें मेरे बेकसूर निहत्थे बच्चों का
पर !!!!
पर!!!    पर     क्या भारती?   बोलो। कहो भारत मां??
एक आस जगी.. स्वर में डायर के।
मैं तुम्हारा अपराधी… तेरे बच्चों का क़ातिल,
तेरै कदमों में नतमस्तक …मानूंगा आदेश तुम्हारा,
मोक्ष दिला दे मुझ को बस,  संत्रास सहा नहीं  जाए
मरना चाहूँ… इसी बाग में ..तब मन मुक्ति पाए।
डायर… तू था अलग कौम का।
तूने मुझे ठगा.. लूटा… बेचा… रौंदा
मुझे मेरे भगत सिंह, करतार, सुखदेख, शेखर ने बचाया
खुद पी गये शहादतों के जाम..मुझ पर आंच न आने दी ..
पर आज ..मेरा  सौदा कर रहे मेरे ही अपने..
कुछ,  तथाकथित रखवाले।
दलाल…. भेडिए…. नालायक… नशेड़ी…बाजीगर
कहने को मेरे अपने.. .. लोकतंत्र की आड़ में बिछाते हैं बिसा
और चलते है चालें
मोहरे बना कर सुरा/सुन्दरी के, दण्ड/भेद के, आटे/दाल के।
जीतते हैं / खरीदते हैं सत्ताएं..
आतंक/बारूद से, नोट से खरीदे वोट से!!
कुपात्र बने प्रतिनिधि..
आते हैं, सत्ता के गलियारों में
बनाते है कानून।.. अपनी सुविधा से..
करते हैं तैनात प्रहरी अन्धे-बहरे-निर्वस्त्र-निरस्त्र!
बेचते हैं मुझे, करते हैं जलील
रौंदते है अथखिली कलिपा, श्रमी को करते दंडित
मजबूर करती ..फंदा गले में डाल लटक जाने को
या कीटनाशक पी कर
कर्जा मुक्त हो जाने को।
ला बिठाते हैं मेरी छाटी पर
रक्त पिपासू नर पिशाचों को
जो पहचाने जाते हैं मेरे नाम से और.. और
मैं उन्हें बिल्कुल  भी नहीं जानती नहीं पहचानती।
मेरे नाम के पहचान क्रमांक जेब में डाल
वह दरिन्दे सानते है मेरी ही जमीन  मेरे अपनों के खून से
और पैशाचिक अट्टहास कर छुप जाते हैं..
अपने निर्वाचित आकाओं के,
तहखानों में.. बनियानो में,..सदनो में।
जा, डायर जा …जाकर कर एक और नर संहार..
मैं आदेश देती हूँ / नहीं नहीं / प्रार्थना करती हूँ
डायर ..!
करवा एक बार फिर  फायरिंग…
डायर ।
न कौरव रहें न पांडव।
अब न हो रोजाना महाभारत।
दिला मुझे भी मोक्ष.. फिर…
हम दोनों चलेंगे तृप्त…. मोक्ष के द्वार
‘डायर मैं बख्श दूंगी तुम्हे यह संहार ।।

 

किरण खन्ना
संपर्क – kirankhanna517@gmail.com
राष्ट्रीय एवम अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में आलेख, शोध-पत्र, शोधालेख कहानी, समीक्षा, कविता, लघुकथाएँ, प्रहसन इत्यादि प्रकाशित। हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़ा हिन्दी संगोष्ठी कवि दरबार आयोजनों में पंजाब नेशनल बैंक, जीवन बीमा निगम, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति भारत सरकार, भविष्य निधि विभाग इत्यादि कार्यालयों में मुख्य वक्ता, मुख्यातिथि, और मुख्यनिर्णायक के स्तर पर निमंत्रित और सम्मानित एवं सहभागिता। लगभग 55 राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सैमिनार संगोष्ठी वेबिनार में शोधपत्र वाचन। अंतर्राष्ट्रीय टीवी चैनल डी डी वन से प्रबुद्ध साहित्यिक कार्यक्रम ‘बोलते शब्द’ के अन्तर्गत सात बार विषय विशेषज्ञ के रूप में परिसंवाद/साक्षात्कार/इंटरव्यू प्रसारित।

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