ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने बहुत से मुद्दे एक साथ उभर कर आ रहे हैं। उनकी गृह सचिव सुएला ब्रेवरमैन ने पाकिस्तानी मूल के युवाओं पर ब्रिटिश बच्चियों के यौन शोषण का आरोप लगाया है। भारतीय उच्चायोग पर खालिस्तान समर्थक तत्व हिंसात्मक रवैया अपना रहे हैं। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और दोनों देशों के रिश्ते कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। ऐसे में ब्रिटेन के स्कूलों में यदि हिन्दू बच्चों पर इस तरह के नफ़रती हमले होंगे तो ऋषि सुनक को बहुत से जवाब खोजने होंगे। मुख्य सवाल तो यही है कि – ऐ ऋषि तेरी धरती पर राक्षसी घटनाएं कब तक घटती रहेंगी!
लगता है कि ब्रिटेन के स्कूलों में एक बार फिर ब्रिटिश राज के दिनों की वापसी हो गई है। एक लगभग हैरान करने वाली रिपोर्ट सामने आई है जिसमें यह दावा किया गया है कि ब्रिटेन के स्कूलों में हिन्दू छात्रों के विरुद्ध नफ़रत का माहौल बनता जा रहा है।
ब्रिटिश संस्था हेनरी जैक्सन सोसायटी के लिये शॉर्लट लिटलवुड ने एक सर्वे करवाया जिसमें 988 हिन्दू अभिभावकों, बच्चों और शिक्षकों से बातचीत की गई। उनके अनुभवों को एकत्रित कर के ‘एंटी हिन्दू हेट इन स्कूल्स’ रिपोर्ट तैयार की गई। इस रिपोर्ट के अनुसार 51 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि उनके बच्चों को स्कूलों में हिन्दू होने के कारण नफरती टिप्पणियों का सामना करना पड़ा है। याद रहे कि ब्रिटेन के स्कूलों में 16 साल की उम्र तक धार्मिक शिक्षा अनिवार्य है।
इस रिपोर्ट में ब्रिटेन के कुछ स्कूलों में हिन्दू छात्रों पर जुल्म की दास्तान बयां की गई है। रिपोर्ट ने खुलासा किया कि ब्रिटिश स्कूलों में हिन्दू विरोधी गालियां आम हैं। इन स्कूलों में देवताओं की पूजा करने वाले हिन्दू बच्चों का मज़ाक उड़ाया जाता है और ज़ाकिर नाइक के वीडियो देखने और सुनने का दबाव बनाया जाता है। ब्रिटिश बच्चों द्वारा हिन्दू छात्रों को ‘पाकी’ कहा जाता है और भारत में जाति व्यवस्था और सामाजिक बुराइयों के लिए हिन्दुओं को दोषी ठहराया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार एक परिवार ने बताया था कि ब्रिटेन में पढ़ाई जाने वाली धार्मिक शिक्षा में हिन्दू धर्म का उपहास उड़ाया जाता है। परिवारों का कहना है कि ‘भारत में 200 साल के ब्रिटिश शासन के बावजूद, ब्रिटिश लोगों में हिन्दू धर्म के ज्ञान की भारी कमी है। वे हमारे देवताओं को नहीं समझते हैं और इससे हमारे बच्चों को स्कूल में परेशानी होती है। एक अन्य परिवार ने कहा ‘हिन्दू बच्चों को शाकाहारी होने और उनकी धार्मिक प्रथाओं का भी मज़ाक उड़ाया जाता है।’
सर्वेक्षण में शामिल केवल 19 प्रतिशत हिन्दू माता-पिता का मानना था कि स्कूल हिन्दू-विरोधी घृणा की पहचान करने में सक्षम थे। रिपोर्ट में बच्चों के प्रति हिन्दू-विरोधी घृणा के व्यथित करने वाले विवरणों का खुलासा किया गया है। इसमें एक माता-पिता के साथ हिन्दू-विरोधी गालियों का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि उसकी बेटी को स्कूल में धमकाया गया और क्योंकि वह एक हिन्दू थी, इसलिए क्लासमेट द्वारा उस पर गोमांस फेंका गया। एक अन्य माता-पिता ने बताया कि मेरा बच्चा अपने माथे पर तिलक लगाकर स्कूल गया था। उसे धमकाया गया फिर वो ह स्कूल नहीं जाना चाहता था। इन वर्षों में, हमें पूर्वी लंदन में तीन बार उनका स्कूल बदलना पड़ा है।
हिन्दू बच्चों को न केवल हिन्दू विरोधी अपशब्दों का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें स्कूलों में भी ज़ेनोफोबिक और नस्लवादी गालियों का सामना करना पड़ता है। इन बच्चों द्वारा डराने-धमकाने का संकेत तब सामने आया जब माता-पिता ने खुलासा किया कि कैसे ब्रिटिश बच्चों ने हिन्दू बच्चों को गैंग बनाकर दरकिनार कर दिया। रिपोर्ट में एक माता-पिता के हवाले से कहा गया है कि मेरे बच्चे को कई मौकों पर विशेष रूप से भारत में पीएम मोदी के उदय के बाद और अनुच्छेद 370 को रद्द किए जाने के बाद अन्य बच्चों से बदमाशी का सामना करना पड़ा है। इसके अलावा, उन्हें ‘काफ़िर’ ‘ के रूप में लेबल किया गया था, और धर्मांतरण या नरक में जाने की बात कही जाने लगी।
ब्रिटेन में यह रिपोर्ट सूचना की स्वतंत्रता के तहत देशभर के 1,000 स्कूलों से मांगी गई जानकारी और स्कूली बच्चों के अनुभव के बारे में 988 माता-पिता से की गई बातचीत पर आधारित है। रिपोर्ट जारी करने से संबंधित कार्यक्रम में सांसद संदीप वर्मा ने कहा कि इस रिपोर्ट ने एक अहम मुद्दे की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
सोचने की बात यह है कि अगर हमारे बच्चे स्कूल जाने से डरने लगे, तो उनकी शिक्षा का क्या होगा… ब्रिटिश समाज का क्या होगा। हमारे बच्चों को शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता भले ही वह किसी भी आस्था में विश्वास रखते हों।
मार्च में, लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में कानून में मास्टर डिग्री के लिए अध्ययन कर रहे एक भारतीय छात्र करण कटारिया ने आरोप लगाया कि स्कूल में महासचिव के पद के लिए अपने अभियान के दौरान उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा।
कटारिया ने कहा, “उनके लॉ स्कूल में एक अकादमिक प्रतिनिधि के रूप में चुने जाने के बाद, मुझे महासचिव पद के लिए चुनाव लड़ना था। अभियान के दौरान, मेरे हिन्दू होने के खिलाफ एक अभियान चलाया गया था। यहां यह बताना जरूरी है कि करण कटारिया का मामला काफी विवादास्पद है। उन्हें छात्र यूनियन ने गलत तरह से वोटिंग के लिए प्रभावित करते हुए पकड़ा था। जिसके सीसीटीवी फुटेज मौजूद हैं। यूनियन ने करण कटारिया के भेदभाव के आरोपों को उसी समय खारिज कर दिया था।
भारत के विदेश मंत्रालय ने ब्रिटेन के स्कूलों में संस्थागत नस्लवाद के प्रचलन संबंधी मीडिया रिपोर्टों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि हम हर प्रकार के भेदभाव के खिलाफ हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को पत्रकार-वार्ता में कहा कि हमने लंदन की एक संस्था हैनेरी जेकसन सोसाइटी की सर्वे रिपोर्ट पर गौर किया है, जिसमें हिन्दू छात्रों के साथ भेदभाव और उन्हें धार्मिक नज़रिये के कारण परेशान किए जाने की बात कही गई है। प्रवक्ता ने कहा कि इस बात की जानकारी नहीं है कि किसी भारतीय ने लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग में शिकायत की है।
शॉर्लट लिटिलवुड ने कहा, “हमने जो पाया वह यह था कि शिक्षक समस्या के साथ खेल रहे थे, जिसमें रिडक्टिव को कवर करना और कुछ स्थानों पर हिन्दू धर्म के पूर्वाग्रही विचार शामिल थे. वहीं एक माता- पिता ने बताया कि हमारे बच्चों को धर्म परिवर्तन करने के लिए लगातार कहा जा रहा है. उनसे से कहा जा रहा है कि हिन्दू धर्म का कोई का मतलब नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार हिदूंओं देवताओं की पूजा की गलत धारणा बनाई जा रही है. उन्होंने ये भी कहा कि ब्रिटेन में अन्य धर्मों को समारोहों के लिए छुट्टी दी जाती है। लेकिन अक्सर हिन्दू त्याहौरों पर अवकाश नहीं दिया जाता।
यह देखा गया है कि वर्ष 2022 यानी कि पिछले साल सितम्बर में लेस्टर और बर्मिंघम में हिन्दू पूजास्थलों पर मुस्लिम युवाओं ने हिंसात्मक प्रदर्शन किये थे। इन प्रदर्शनों में हिन्दू देवी-देवताओं का मज़ाक भी उड़ाया गया। इन दंगों के बाद ही स्कूलों में हिन्दुओं के विरुद्ध ऐसी नफ़रत भरी हरकतें देखने को मिली हैं। लेस्टर दंगों के बाद 55 लोगों को गिरफ़्तार भी किया गया था।
दरअसल भारत में हिन्दुओं के विरुद्ध एक ऐसा माहौल बन गया है जैसे हिन्दू होना कोई अपराध हो। समय-समय पर राजनीतिक नेता कुछ न कुछ ऐसा कह देते हैं जिससे स्पष्ट हो जाता है कि वे तथाकथित अल्पसंख्यकों के वोट पाने के लिये किसी स्तर पर गिर कर कुछ भी कह सकते हैं।
कर्नाटक कांग्रेस के कार्यकारी राज्य अध्यक्ष सतीश जरकीहोली तो यहां तक पूछते हैं कि हिन्दू शब्द कहां से आया ? ये फारसी का शब्द है। ईरान, इराक कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान से आया। भारत का क्या संबंध है? आपका नहीं है वह शब्द। इसका अर्थ समझेंगे तो आपको शर्म आएगी। हिन्दू का अर्थ बहुत गंदा है।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक के सामने बहुत से मुद्दे एक साथ उभर कर आ रहे हैं। उनकी गृह सचिव सुएला ब्रेवरमैन ने पाकिस्तानी मूल के युवाओं पर ब्रिटिश बच्चियों के यौन शोषण का आरोप लगाया है। भारतीय उच्चायोग पर खालिस्तान समर्थक तत्व हिंसात्मक रवैया अपना रहे हैं। भारत ने इस पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है और दोनों देशों के रिश्ते कठिन दौर से गुज़र रहे हैं। ऐसे में ब्रिटेन के स्कूलों में यदि हिन्दू बच्चों पर इस तरह के नफ़रती हमले होंगे तो ऋषि सुनक को बहुत से जवाब खोजने होंगे। मुख्य सवाल तो यही है कि – ऐ ऋषि तेरी धरती पर राक्षसी घटनाएं कब तक घटती रहेंगी!
In your Editorial of today you have pointed out how young Hindu school children are unfortunately being abused by their peers n are wrongly being labeled as fundamentalists n racialists and even ‘ Kafirs’.
Even at graduate level Hindu students are being discriminated against during college elections.
As if there is a Hindu hate campaign going on there.
A grave matter indeed.
As you say,we also hope Sunak takes due cognizance of the matter n gets it resolved.
Regards
Deepak Sharma
नमस्कार। ब्रिटेन को हम न्याय और औचित्य के पुरोधा के रूप में देखते हैं। अगर वहाँ हिन्दू विरोधी गतिविधियां चल रही हैं तो यह निश्चय ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
आपके लेख से से स्पष्ट है कि ये गतिविधियां मुस्लिम समाज द्वारा संचालित हैं। उनका तो एक ही एजेण्डा है और पूरा संसार उससे अवगत है। ईसाइयों का खानपान उनसे मिलता जुलता है। इसलिए वे शाकाहारी और गोपूजक हिन्दुओं की तुलना में, कम से कम ईसाई बहुल समाज में लाभ की स्थिति में हैं।
ऋषि सुनक इसमें शायद ही कुछ कर पाएं।
हिन्दुओं को वहाँ अपने स्कूल खोलने चाहिए। या सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों के लिए अलग वर्ग की माँग करनी चाहिए। लेकिन उससे भी पहले हिन्दुओं को आपसी जातिवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद से ऊपर उठना होगा। ब्रिटिश हिन्दू भारत से यह बीमारी अपने साथ ले तो गये ही होंगे।
आदरणीय संपादक महोदय ,
यह संपादकीय पढ़ते हुए जो पहली प्रतिक्रिया मन में आई वह क्रोध और प्रतिशोध की थी। परंतु जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई भय और शोक हृदय में व्याप्त हो गया।
धर्म, जिसकी कल्पना मानसिक शांति और सामाजिक व्यवस्था के लिए की गई होगी , वह अशांति और उपद्रव का कारण बने इससे बढ़कर हृदय को व्यथित करने वाली बात और क्या हो सकती है! मन अशांत हो गया है!
दुखद स्थिति यह है कि हिंदू धर्म किसी का धर्म परिवर्तित करके अपने में सम्मिलित करने की प्रथा नहीं पालता!
इतना सहनशील धर्म शायद दुनिया में कोई और नहीं है जो यह कहे कि ईश्वर ‘एक है बुद्धिमान लोग उसे कई नामों से पुकारते हैं’,
इस ‘हिंसक -धर्मांधता’ का उपाय क्या हो सकता है? ,इसकी प्रतीक्षा रहेगी!
दुनियाभर में यह बहुत बड़ा मामला है। धर्म, जाति, क्षेत्रीयता के आधार पर कितने ही जुल्म कर दिए जाते हैं। जब हमारे पास विचारों के आदान-प्रदान के माध्यमों की सुविधा नहीं थी तो ऐसे प्रसंग दबे रह जाते थे। आपने जितनी बातें बताई हैं, उनसे तो यह स्पष्ट है कि लंदन भले ही बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर पर बड़े सेमिनार आयोजित कर ले, पर वहाँ भी हिंदुओं और भारतीयों की स्थिति अच्छी नहीं है। हमारे बच्चे दो तरफ से परेशान किए जाते हैं, ब्रिटिश के द्वारा और मुसलमानों के द्वारा भी। प्रधानमंत्री श्री ऋषि सुनक जी को इन समस्याओं के निदान के लिए संसद् में चर्चा करनी चाहिए, ताकि ब्रिटिश अपने बच्चों को मानवता का पाठ पढ़ा सकें।
भारत के टेलीविजन चैनलों पर भी यही खबर कुछ दिनों से चल रही है । वैश्विक चिंता का विषय है ये ,लगता है जैसे सबके अपने अपने घार्मिक स्थल (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च हैं वैसे ही अब अपने अपने स्कूल, कॉलेज, बाजार क्लब होने की दिशा में प्रगति होगी ।
सोनिक जी समस्याओं में घिर गए हैं ,ये सत्य है ।
जो हो रहा है वह उचित नहीं है। सनातन धर्म हज़ारों साल पुराना है लेकिन उसने किसी को अपनी आस्थाओं में जाने को मजबूर नहीं किया लेकिन कुछ सदियो पहले आए इस्लाम और ईसाई धर्म ने 50 से अधिक देशों का इस्लामीकरण और ईसाई करण कर लिया।
आप स्वयं समझदार हैं कि agendas क्या है
ब्रिटेन में भारतीय बच्चों को धर्म के आधार पर नीचा दिखाया जाना गंभीर चिंता का विषय है। यह किसी की धार्मिक आस्था व राष्ट्रीयता को नीचा दिखाने का कुप्रयास है। भारत सरकार को इसे गंभीरता से लेते हुए ब्रिटेन की सरकार से बात करनी चाहिए और यथाशीघ्र न सिर्फ इसे रोकनी चाहिए बल्कि इससे हुए मानसिक क्षति की भरपाई भी करनी चाहिए। ताकि इस तरह की दुर्भावना फिर से पैदा न हो। यह तो हुआ सरकार का काम।
साथ हीं हम समस्त हिन्दूओं को चाहे वे विश्व भर में कहीं भी रहते हों। शैव शाक्त वैष्णव सनातन सहित हजारों मत मतांतरों में से किसी भी मत को मानते हों। धर्मनिरपेक्ष विचारों के हीं क्यों न हो। इस घटना की जड़ का पता लगाना चाहिए। ब्रिटेन में फैली स्कूली बच्चों के प्रति हिन्दू धर्म विरोधी इस घृणा का मूल कारण क्या है। ताकि उन कारणों की उचित समीक्षा करके उस कारण का निवारण किया जा सके।
लगभग नौ वर्ष पहले जब भारत में हिन्दू हितैषी सरकार बनी थी तो समुची दुनिया में यह संदेश प्रेषित हो रहा था कि विदेशों में भारत एवं भारतीयों की प्रतिष्ठा रातोंरात बढ गई है। तो अचानक लगभग एक दशक के बाद वह प्रतिष्ठा और बढने के बजाय ऐसा क्या हो गया जो घटकर वहाँ भी न रहा जहाँ था। उससे भी नीचे नफरत घृणा और जिल्लत में बदल गया। विशेषकर धर्म के आधार पर स्कूली बच्चों का अपमान। कौन है इसका दोषी
हमारा कोई शत्रु? हमारा कोई ईर्ष्यालु?
हमारी कोई अपनी कमी? या फिर कौन?
हमें उसे ईमानदारी पूर्वक पहचानना होगा और उसका कोई उचित व बौद्धिक समाधान ढूँढना पड़ेगा। जिससे हमारा सम्मान पुनर्प्रतिष्ठित हो। हिन्दू सिर्फ एक धर्म का नाम नहीं है बल्कि यह शब्द भारतीयता का प्रतीक भी है।
ये सनातन परंपरा है कि विदेशी विद्यार्थियों को इस देश में उचित सम्मान एवं स्नेह मिलता है, उदारमना होकर स्वागत किया जाता है लेकिन दुखद है कि विदेशों में हिंदू धर्म का पालन करने वाले विद्यार्थियों का सामुहिक अपमान किया जा रहा है। क्या मोदीजी के समूचे विश्व में बढ़ते प्रभाव, कद, सम्मान का ये विपरीत प्रभाव है, जो उनसे नफ़रत करते हैं? ऐसे लोगों की विषैली मानसिकता हिन्दू धर्म की आड़ में बहुत तीव्रता से फैल रही है, जिसका दुष्परिणाम वहाँ के विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। इस गम्भीर विषय पर एक विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है, खासकर सोशल मीडिया के पटल पर।
आदरणीय भाई..आपके संपादकीय ने मन को बहुत व्यथित और आशंकित कर दिया है..धर्म. जाति. पाँति. वर्ग भेद के वर्षों पुराने विवाद आज पूरे विश्व को अपनी परिधि में समेट रहे हैं..पीढियां गुजर गयीं पर ये आपसी वैमनस्यता नहीं गयी..घृणा का यह व्यवहार और आचरण यदि नयी पीढी और हमारे नौनिहालों की मानसिकता तक पहुंचा तो स्थिति भयावह हो सकती है..ब्रिटेन जैसे देशों में हिंदू धर्म और समुदाय के प्रति अनैतिक व्यवहार कदापि उचित नही है.घृणा की ये दीवारें सारी मानवता को शर्मसार कर रही हैं..वसुधैव कुटुंबकम् की मान्यता वाले भारत ने कभी ऐसा घृणित और अभद्र व्यवहार किसी भी देश के प्रति नहीं किया है.जरा सोचें.यदि दूसरा पक्ष भी इसी आचरण पर उतर आये तो क्या हो…आपका संपादकीय आँखे खोलता है.एक चेतावनी है उन सिरफिरे पथभटके लोगो के लिए..हार्दिक बधाई और आभार.
आज पुरवाई ने रोंगटे खड़े कर दिए।आप ने संपादकीय के माध्यम से बहुत से प्रश्नों को उजागर किया है। ब्रिटेन में ऐसी स्थिति देखकर अत्यंत दुख हुआ। आपने प्रत्येक पहलू को बड़ी सूक्ष्मता से उजागर किया है।
महत्वपूर्ण सम्पादकीय। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को इस विषय को गंभीरता से लेना चाहिए। भारतीय छात्रों को सुरक्षा देना चाहिए और उन पाकिस्तानी छात्रों की पहचान कर जो आपराधिक मामलों में लिप्त हैं,देश निकाला।
सुनक भारतीय नहीं तो क्या भारतीय मूल के तो हैं।कमसे कम इतना तो उन्हें करना चाहिये कि जिस धर्म को वे मानते हैं, उसे बदनाम न किया जाए और भारतीयों को यह त्रासदी ना झेलनी पड़े। इतनी जानकारी नहीं थी । यह मुद्दा महत्वपूर्ण है।
हमेशा की तरह इस अच्छे सम्पादकीय के लिए आपको धन्यवाद, तेजेन्द्र जी
आपकी शुभेच्छु
ब्रिटेन में हिंदू छात्रों के साथ इतना घृणित और क्रूर व्यवहारिक हो रहा है यह पढ़कर मन बहुत उद्वेलित है, हिन्दू धर्म जितना उदार भाव रखता है उतना ही उसके साथ ज्यादती होती रहती है और दुनिया मूक दर्शक बनी रहती है, हमारे तथाकथित बुद्धिजीवि ऐसे विषयों पर बात तक नहीं करते।
सर! आपने अपने संपादकीय में बहुत ही ज्वलंत विषय उठाते हुए और साहसिक कदम बढ़ाया है।
ब्रिटेन की स्थिति को सविस्तार साझा करने के लिए हार्दिक धन्यावाद। पढ़ कर बहुत दुःख हुआ, साथ ही क्रोध भी आया। सबसे सहिष्णु और उदार हिन्दू धर्म को बदनाम करना, इसाइयों और मुसलमानों का परम उद्देश्य है।
जिस असहिष्णुता और भेदभाव का झूठा आरोप यह अंग्रेज, हिन्दू धर्म पर लगाते हैं, वह तो दिखता नहीं। लेकिन मुसलमानों और ईसाइयों की असहिष्णुता की घोषणा यह घटनायें कर रही हैं।
यदि ब्रिटिश नेतागण भी जातीय विद्वेष की बातें कर रहे हैं तो स्वयं के संकीर्ण चरित्र की प्रदर्शनी कर रहे हैं।
आपने सही कहा है कि जो बोया है वो काटना भी पड़ेता। ब्रिटेन ने सारे विश्व में यह वैमनस्य बोया है। जिस देश पर शासन किया उसके धर्म, परम्परa और संस्कृति की आलोचना और अपने को उदार, महान और सुसंस्कृत बताया है। अब उनके भुगतने के दिन आ रहे हैं।
अच्छा है, ऐसी घटाओं के कारण, जाति और संप्रदायों में बँटे या राजनीतिक स्वार्थ से बाँटे गये हिन्दू संगठित हो रहे हैं। समय की माँग भी यही है।
हिन्दू धर्म या मानव धर्म के विरोध मात्र से जन्मे इसाई और मुस्लिम अपने को महान मानने के अहंकार से ग्रस्त हैं। इसाई मिशनरी वाले तो नरभक्षी जान जातियों को इसाई बनाने के लिए निकले और मारे गये। ऐसी घटनाओं के बाद भी यदि कुछ लोग अंग्रेजों को न्याय और नैतिकता का पुरोधा मानता है तो इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है?
जरूरत है कि विश्व भर में फैले हिन्दू संगठित होकर अपने शिक्षण संस्थान बनायें और वैश्विक स्तर पर व्याप्त इस जातीय विद्वेष का प्रत्युत्तर दें।
आज का आपका संपादकीय पढ़कर क्रोध भी आया और दुःख भी हुआ। हिन्दू या हिन्दू धर्म से कुछ लोग इतनी नफरत क्यों करते हैं, समझ में नहीं आता। स्कूलों में बच्चों बच्चों के बीच धर्म के आधार पर नफ़रत के बीज रोपना…इससे घृणित कार्य तो हो ही नहीं सकता।
वास्तव में हिन्दू धर्म जिंदगी जीने का तरीका बताता है। अपनी बातें किसी पर जबरदस्ती लादता नहीं है। हिन्दू धर्म वसुधेव कुटुंबकम का सन्देश देने के साथ अतिथि देवो भवः की धारणा भी जन समाज को देता है। वह मनाता है ईश्वर एक है। हिंदु धर्म मानता है कि स्त्री पुरुष दोनों ही समाज की धुरी है। इसलिए पुरुष शक्ति के रुप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को स्थापित करता है वहीं स्त्री शक्ति के रुप में दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी जी को मान्यता देता है। आम हिन्दू इतना सहनशील और लचीला है कि वह मजारों पर शीष नवाने के साथ गिरजाघरों में जाने से नहीं हिचकता। शायद हिन्दुओं की सहनशीलता तथा अन्य धर्मों के प्रतियोगिता उसकी सद्भावना उन्हें उसकी कमजोरी लगती है।
कर्म को पूजा बताने वाला धर्म शायद ही कोई अन्य हो किन्तु कुछ लोगों को हिन्दू फोबिया शायद इसलिए है क्योंकि भारत को तोड़ने की हर कोशिश के बावजूद वे नाकाम रहे हैं। आपने सच कहा कि ‘हस्ती मिट्टी नहीं हमारी’
आप क संपादकीय सोचने पर विवश करता है l आखिर इतना भय क्यों है ? ये कैसी व्यवस्था है जो बच्चों के मन में यह विष बो रही है l स्कूल में तो और भी ज्यादा जरूरी है कि किसी धर्म को छोटा या कमतर दिखने की जगह सभी धर्मों के प्रति सम्मान की शिक्षा बच्चों को दी जाए l कच्ची स्लेट पर निशान बहुत मजबूत लगते है l उम्मीद है कि ब्रिटिश सरकार इस ओर ध्यान देगी l इस मुद्दे पर ध्यान दिलाने के लिए आपको धन्यवाद l
In your Editorial of today you have pointed out how young Hindu school children are unfortunately being abused by their peers n are wrongly being labeled as fundamentalists n racialists and even ‘ Kafirs’.
Even at graduate level Hindu students are being discriminated against during college elections.
As if there is a Hindu hate campaign going on there.
A grave matter indeed.
As you say,we also hope Sunak takes due cognizance of the matter n gets it resolved.
Regards
Deepak Sharma
Thanks so much Deepak ji for such a quick response.
नमस्कार। ब्रिटेन को हम न्याय और औचित्य के पुरोधा के रूप में देखते हैं। अगर वहाँ हिन्दू विरोधी गतिविधियां चल रही हैं तो यह निश्चय ही दुर्भाग्यपूर्ण है।
आपके लेख से से स्पष्ट है कि ये गतिविधियां मुस्लिम समाज द्वारा संचालित हैं। उनका तो एक ही एजेण्डा है और पूरा संसार उससे अवगत है। ईसाइयों का खानपान उनसे मिलता जुलता है। इसलिए वे शाकाहारी और गोपूजक हिन्दुओं की तुलना में, कम से कम ईसाई बहुल समाज में लाभ की स्थिति में हैं।
ऋषि सुनक इसमें शायद ही कुछ कर पाएं।
हिन्दुओं को वहाँ अपने स्कूल खोलने चाहिए। या सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों के लिए अलग वर्ग की माँग करनी चाहिए। लेकिन उससे भी पहले हिन्दुओं को आपसी जातिवाद, भाषावाद और क्षेत्रवाद से ऊपर उठना होगा। ब्रिटिश हिन्दू भारत से यह बीमारी अपने साथ ले तो गये ही होंगे।
भाई सिंह साहब, इतनी गहन एवं सटीक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
आदरणीय संपादक महोदय ,
यह संपादकीय पढ़ते हुए जो पहली प्रतिक्रिया मन में आई वह क्रोध और प्रतिशोध की थी। परंतु जैसे-जैसे आगे बढ़ती गई भय और शोक हृदय में व्याप्त हो गया।
धर्म, जिसकी कल्पना मानसिक शांति और सामाजिक व्यवस्था के लिए की गई होगी , वह अशांति और उपद्रव का कारण बने इससे बढ़कर हृदय को व्यथित करने वाली बात और क्या हो सकती है! मन अशांत हो गया है!
दुखद स्थिति यह है कि हिंदू धर्म किसी का धर्म परिवर्तित करके अपने में सम्मिलित करने की प्रथा नहीं पालता!
इतना सहनशील धर्म शायद दुनिया में कोई और नहीं है जो यह कहे कि ईश्वर ‘एक है बुद्धिमान लोग उसे कई नामों से पुकारते हैं’,
इस ‘हिंसक -धर्मांधता’ का उपाय क्या हो सकता है? ,इसकी प्रतीक्षा रहेगी!
सरोजिनी जी, आपने संपादकीय के मर्म को समझा है। हार्दिक आभार।
दुनियाभर में यह बहुत बड़ा मामला है। धर्म, जाति, क्षेत्रीयता के आधार पर कितने ही जुल्म कर दिए जाते हैं। जब हमारे पास विचारों के आदान-प्रदान के माध्यमों की सुविधा नहीं थी तो ऐसे प्रसंग दबे रह जाते थे। आपने जितनी बातें बताई हैं, उनसे तो यह स्पष्ट है कि लंदन भले ही बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर पर बड़े सेमिनार आयोजित कर ले, पर वहाँ भी हिंदुओं और भारतीयों की स्थिति अच्छी नहीं है। हमारे बच्चे दो तरफ से परेशान किए जाते हैं, ब्रिटिश के द्वारा और मुसलमानों के द्वारा भी। प्रधानमंत्री श्री ऋषि सुनक जी को इन समस्याओं के निदान के लिए संसद् में चर्चा करनी चाहिए, ताकि ब्रिटिश अपने बच्चों को मानवता का पाठ पढ़ा सकें।
भाई अशोक कुमार ज्योति जी हमारे संपादकीय पर आपकी टिप्पणी महत्वपूर्ण है। हार्दिक आभार।
भारत के टेलीविजन चैनलों पर भी यही खबर कुछ दिनों से चल रही है । वैश्विक चिंता का विषय है ये ,लगता है जैसे सबके अपने अपने घार्मिक स्थल (मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, चर्च हैं वैसे ही अब अपने अपने स्कूल, कॉलेज, बाजार क्लब होने की दिशा में प्रगति होगी ।
सोनिक जी समस्याओं में घिर गए हैं ,ये सत्य है ।
Dr Prabha mishra
प्रभा जी मेरा प्रयास रहता है कि authentic और researched संपादकीय अपने पाठकों के सामने प्रस्तुत किया जाए।
जो हो रहा है वह उचित नहीं है। सनातन धर्म हज़ारों साल पुराना है लेकिन उसने किसी को अपनी आस्थाओं में जाने को मजबूर नहीं किया लेकिन कुछ सदियो पहले आए इस्लाम और ईसाई धर्म ने 50 से अधिक देशों का इस्लामीकरण और ईसाई करण कर लिया।
आप स्वयं समझदार हैं कि agendas क्या है
सही कहा आपने अनामिका जी।
ब्रिटेन में भारतीय बच्चों को धर्म के आधार पर नीचा दिखाया जाना गंभीर चिंता का विषय है। यह किसी की धार्मिक आस्था व राष्ट्रीयता को नीचा दिखाने का कुप्रयास है। भारत सरकार को इसे गंभीरता से लेते हुए ब्रिटेन की सरकार से बात करनी चाहिए और यथाशीघ्र न सिर्फ इसे रोकनी चाहिए बल्कि इससे हुए मानसिक क्षति की भरपाई भी करनी चाहिए। ताकि इस तरह की दुर्भावना फिर से पैदा न हो। यह तो हुआ सरकार का काम।
साथ हीं हम समस्त हिन्दूओं को चाहे वे विश्व भर में कहीं भी रहते हों। शैव शाक्त वैष्णव सनातन सहित हजारों मत मतांतरों में से किसी भी मत को मानते हों। धर्मनिरपेक्ष विचारों के हीं क्यों न हो। इस घटना की जड़ का पता लगाना चाहिए। ब्रिटेन में फैली स्कूली बच्चों के प्रति हिन्दू धर्म विरोधी इस घृणा का मूल कारण क्या है। ताकि उन कारणों की उचित समीक्षा करके उस कारण का निवारण किया जा सके।
लगभग नौ वर्ष पहले जब भारत में हिन्दू हितैषी सरकार बनी थी तो समुची दुनिया में यह संदेश प्रेषित हो रहा था कि विदेशों में भारत एवं भारतीयों की प्रतिष्ठा रातोंरात बढ गई है। तो अचानक लगभग एक दशक के बाद वह प्रतिष्ठा और बढने के बजाय ऐसा क्या हो गया जो घटकर वहाँ भी न रहा जहाँ था। उससे भी नीचे नफरत घृणा और जिल्लत में बदल गया। विशेषकर धर्म के आधार पर स्कूली बच्चों का अपमान। कौन है इसका दोषी
हमारा कोई शत्रु? हमारा कोई ईर्ष्यालु?
हमारी कोई अपनी कमी? या फिर कौन?
हमें उसे ईमानदारी पूर्वक पहचानना होगा और उसका कोई उचित व बौद्धिक समाधान ढूँढना पड़ेगा। जिससे हमारा सम्मान पुनर्प्रतिष्ठित हो। हिन्दू सिर्फ एक धर्म का नाम नहीं है बल्कि यह शब्द भारतीयता का प्रतीक भी है।
बहुत ही प्रासंगिक और कटु सत्य बताया आपने। विचारणीय मुद्दा। बच्चों को तो इन सबसे डोर ही रखना चाहिए।
धन्यवाद विदुषी जी।
भाई राजनंदन जी इस विस्तृत और गंभीर टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद।
ये सनातन परंपरा है कि विदेशी विद्यार्थियों को इस देश में उचित सम्मान एवं स्नेह मिलता है, उदारमना होकर स्वागत किया जाता है लेकिन दुखद है कि विदेशों में हिंदू धर्म का पालन करने वाले विद्यार्थियों का सामुहिक अपमान किया जा रहा है। क्या मोदीजी के समूचे विश्व में बढ़ते प्रभाव, कद, सम्मान का ये विपरीत प्रभाव है, जो उनसे नफ़रत करते हैं? ऐसे लोगों की विषैली मानसिकता हिन्दू धर्म की आड़ में बहुत तीव्रता से फैल रही है, जिसका दुष्परिणाम वहाँ के विद्यार्थियों को भुगतना पड़ रहा है। इस गम्भीर विषय पर एक विस्तृत चर्चा की आवश्यकता है, खासकर सोशल मीडिया के पटल पर।
सटीक टिप्पणी रिंकु जी। हार्दिक आभार।
आदरणीय भाई..आपके संपादकीय ने मन को बहुत व्यथित और आशंकित कर दिया है..धर्म. जाति. पाँति. वर्ग भेद के वर्षों पुराने विवाद आज पूरे विश्व को अपनी परिधि में समेट रहे हैं..पीढियां गुजर गयीं पर ये आपसी वैमनस्यता नहीं गयी..घृणा का यह व्यवहार और आचरण यदि नयी पीढी और हमारे नौनिहालों की मानसिकता तक पहुंचा तो स्थिति भयावह हो सकती है..ब्रिटेन जैसे देशों में हिंदू धर्म और समुदाय के प्रति अनैतिक व्यवहार कदापि उचित नही है.घृणा की ये दीवारें सारी मानवता को शर्मसार कर रही हैं..वसुधैव कुटुंबकम् की मान्यता वाले भारत ने कभी ऐसा घृणित और अभद्र व्यवहार किसी भी देश के प्रति नहीं किया है.जरा सोचें.यदि दूसरा पक्ष भी इसी आचरण पर उतर आये तो क्या हो…आपका संपादकीय आँखे खोलता है.एक चेतावनी है उन सिरफिरे पथभटके लोगो के लिए..हार्दिक बधाई और आभार.
पद्मा बहन आपकी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
आज पुरवाई ने रोंगटे खड़े कर दिए।आप ने संपादकीय के माध्यम से बहुत से प्रश्नों को उजागर किया है। ब्रिटेन में ऐसी स्थिति देखकर अत्यंत दुख हुआ। आपने प्रत्येक पहलू को बड़ी सूक्ष्मता से उजागर किया है।
आपकी लेखनी को नमन है।
डॉक्टर मुक्ति आप तो दिल से पुरवाई से जुड़ी हैं। इस उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।
आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे पर बात की है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को इस विषय को गंभीरता से लेना चाहिए।
महत्वपूर्ण सम्पादकीय। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री को इस विषय को गंभीरता से लेना चाहिए। भारतीय छात्रों को सुरक्षा देना चाहिए और उन पाकिस्तानी छात्रों की पहचान कर जो आपराधिक मामलों में लिप्त हैं,देश निकाला।
रूप भाई बहुत बहुत धन्यवाद।
सुनक भारतीय नहीं तो क्या भारतीय मूल के तो हैं।कमसे कम इतना तो उन्हें करना चाहिये कि जिस धर्म को वे मानते हैं, उसे बदनाम न किया जाए और भारतीयों को यह त्रासदी ना झेलनी पड़े। इतनी जानकारी नहीं थी । यह मुद्दा महत्वपूर्ण है।
हमेशा की तरह इस अच्छे सम्पादकीय के लिए आपको धन्यवाद, तेजेन्द्र जी
आपकी शुभेच्छु
निर्देश आपकी टिप्पणी हमेशा हमारा उत्साह बढ़ाती है। हार्दिक आभार।
ब्रिटेन में हिंदू छात्रों के साथ इतना घृणित और क्रूर व्यवहारिक हो रहा है यह पढ़कर मन बहुत उद्वेलित है, हिन्दू धर्म जितना उदार भाव रखता है उतना ही उसके साथ ज्यादती होती रहती है और दुनिया मूक दर्शक बनी रहती है, हमारे तथाकथित बुद्धिजीवि ऐसे विषयों पर बात तक नहीं करते।
सर! आपने अपने संपादकीय में बहुत ही ज्वलंत विषय उठाते हुए और साहसिक कदम बढ़ाया है।
हार्दिक आभार जया। आपने संपादकीय का मर्म समझा है।
ब्रिटेन की स्थिति को सविस्तार साझा करने के लिए हार्दिक धन्यावाद। पढ़ कर बहुत दुःख हुआ, साथ ही क्रोध भी आया। सबसे सहिष्णु और उदार हिन्दू धर्म को बदनाम करना, इसाइयों और मुसलमानों का परम उद्देश्य है।
जिस असहिष्णुता और भेदभाव का झूठा आरोप यह अंग्रेज, हिन्दू धर्म पर लगाते हैं, वह तो दिखता नहीं। लेकिन मुसलमानों और ईसाइयों की असहिष्णुता की घोषणा यह घटनायें कर रही हैं।
यदि ब्रिटिश नेतागण भी जातीय विद्वेष की बातें कर रहे हैं तो स्वयं के संकीर्ण चरित्र की प्रदर्शनी कर रहे हैं।
आपने सही कहा है कि जो बोया है वो काटना भी पड़ेता। ब्रिटेन ने सारे विश्व में यह वैमनस्य बोया है। जिस देश पर शासन किया उसके धर्म, परम्परa और संस्कृति की आलोचना और अपने को उदार, महान और सुसंस्कृत बताया है। अब उनके भुगतने के दिन आ रहे हैं।
अच्छा है, ऐसी घटाओं के कारण, जाति और संप्रदायों में बँटे या राजनीतिक स्वार्थ से बाँटे गये हिन्दू संगठित हो रहे हैं। समय की माँग भी यही है।
हिन्दू धर्म या मानव धर्म के विरोध मात्र से जन्मे इसाई और मुस्लिम अपने को महान मानने के अहंकार से ग्रस्त हैं। इसाई मिशनरी वाले तो नरभक्षी जान जातियों को इसाई बनाने के लिए निकले और मारे गये। ऐसी घटनाओं के बाद भी यदि कुछ लोग अंग्रेजों को न्याय और नैतिकता का पुरोधा मानता है तो इससे बड़ी विडम्बना क्या हो सकती है?
जरूरत है कि विश्व भर में फैले हिन्दू संगठित होकर अपने शिक्षण संस्थान बनायें और वैश्विक स्तर पर व्याप्त इस जातीय विद्वेष का प्रत्युत्तर दें।
शैली जी इस गंभीर, सार्थक और विस्तृत टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
आज का आपका संपादकीय पढ़कर क्रोध भी आया और दुःख भी हुआ। हिन्दू या हिन्दू धर्म से कुछ लोग इतनी नफरत क्यों करते हैं, समझ में नहीं आता। स्कूलों में बच्चों बच्चों के बीच धर्म के आधार पर नफ़रत के बीज रोपना…इससे घृणित कार्य तो हो ही नहीं सकता।
वास्तव में हिन्दू धर्म जिंदगी जीने का तरीका बताता है। अपनी बातें किसी पर जबरदस्ती लादता नहीं है। हिन्दू धर्म वसुधेव कुटुंबकम का सन्देश देने के साथ अतिथि देवो भवः की धारणा भी जन समाज को देता है। वह मनाता है ईश्वर एक है। हिंदु धर्म मानता है कि स्त्री पुरुष दोनों ही समाज की धुरी है। इसलिए पुरुष शक्ति के रुप में ब्रह्मा, विष्णु, महेश को स्थापित करता है वहीं स्त्री शक्ति के रुप में दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी जी को मान्यता देता है। आम हिन्दू इतना सहनशील और लचीला है कि वह मजारों पर शीष नवाने के साथ गिरजाघरों में जाने से नहीं हिचकता। शायद हिन्दुओं की सहनशीलता तथा अन्य धर्मों के प्रतियोगिता उसकी सद्भावना उन्हें उसकी कमजोरी लगती है।
कर्म को पूजा बताने वाला धर्म शायद ही कोई अन्य हो किन्तु कुछ लोगों को हिन्दू फोबिया शायद इसलिए है क्योंकि भारत को तोड़ने की हर कोशिश के बावजूद वे नाकाम रहे हैं। आपने सच कहा कि ‘हस्ती मिट्टी नहीं हमारी’
आज के संपादकीय के लिए साधुवाद।
आप क संपादकीय सोचने पर विवश करता है l आखिर इतना भय क्यों है ? ये कैसी व्यवस्था है जो बच्चों के मन में यह विष बो रही है l स्कूल में तो और भी ज्यादा जरूरी है कि किसी धर्म को छोटा या कमतर दिखने की जगह सभी धर्मों के प्रति सम्मान की शिक्षा बच्चों को दी जाए l कच्ची स्लेट पर निशान बहुत मजबूत लगते है l उम्मीद है कि ब्रिटिश सरकार इस ओर ध्यान देगी l इस मुद्दे पर ध्यान दिलाने के लिए आपको धन्यवाद l