Wednesday, October 16, 2024
होमकविताबर्मिंघम से डॉ. कृष्ण कन्हैया की कविता - अनाथ

बर्मिंघम से डॉ. कृष्ण कन्हैया की कविता – अनाथ

अपनी संस्कृति को
ओछा बताकर
गोरों को समृद्ध,
ऊँचा दिखाकर
कुछ ऐसे लोग हैं-
जो अपने आप को
कौवों की जमात में
हंस बताते हैं !
और
विदेशी तर्ज़ पर
हुँआ-हुँआ कर
रँगे सियार- सा
घने जंगलों से
भगाये जाते हैं
आधुनिक छद्म वेश
तज नहीं पाते
अपनी संस्कृति
परख नहीं पाते
दोनों परिवेशों में
लताड़े जाते हैं
कहीं नकारे,
कहीं दुत्कारे जाते हैं।
परिस्थितियों में सामंजस्य
बिठा नहीं पाते हैं लोग !
इसीलिये तो-
“अनाथ” कहाते हैं लोग!!
RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Most Popular

Latest