होम कविता बर्मिंघम से डॉ. कृष्ण कन्हैया की कविता – अनाथ कविता बर्मिंघम से डॉ. कृष्ण कन्हैया की कविता – अनाथ द्वारा डॉ. कृष्ण कन्हैया - March 28, 2021 416 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet अपनी संस्कृति को ओछा बताकर गोरों को समृद्ध, ऊँचा दिखाकर कुछ ऐसे लोग हैं- जो अपने आप को कौवों की जमात में हंस बताते हैं ! और विदेशी तर्ज़ पर हुँआ-हुँआ कर रँगे सियार- सा घने जंगलों से भगाये जाते हैं आधुनिक छद्म वेश तज नहीं पाते अपनी संस्कृति परख नहीं पाते दोनों परिवेशों में लताड़े जाते हैं कहीं नकारे, कहीं दुत्कारे जाते हैं। परिस्थितियों में सामंजस्य बिठा नहीं पाते हैं लोग ! इसीलिये तो- “अनाथ” कहाते हैं लोग!! संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं वंदना यादव की कविता – आज मुझे दर्शक दीर्घा से कुछ लोग दिखे रेखा भाटिया की कविता – लैंप पोस्ट के पास सरोजिनी पाण्डेय की कविता – जीवन का पाथेय Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.