यह आप सोचिये कि क्या होगा
जब स्याही सूख जाएगी
सारे रंग बदल जाएंगे
एक स्याह से अंधेरे में ।
जब धरती की दरारें चौड़ी हो जाएंगी
यह आप सोचिए
कि सूरज कब तक देगा रोशनी ?
चांद कब तक बिखेरेगी चाँदनी ?
यह सब मैं क्यों सोचूं ?
मेरा अनुबंध केवल मेरे अपने समय से है
और हाँ, मैं सूखने नहीं दूंगा स्याही
रंगों को सजाने ,
बिखेरने का सिलसिला चलता रहेगा
सूरज को रोशनी देना ही होगा
चांद भी मन को छूता रहेगा ।
अपने समय का अनुबंध मैं स्वयं करूंगा-
जल धरती अग्नि वायु और आकाश के साथ