हां मैं अपनी फेवरेट हूं …क्यो?

बताती हूं….

वह इसलिए कि मुझे मेरे जैसा कोई मिला ही नहीं है।

मिला पर पूरी तरह नहीं

क्योंकि मैं निश्चल हूं, कर्मठ हूं, ईमानदार हूं, अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित हूं ।

अब आप कहोगे कि यह तो कोई ऐसे बहुत बड़े गुण नहीं हैं,

 जो किसी और में ना हो।

 परंतु इसी के साथ विचारों का मिलना भी बहुत जरूरी है।

 दुनिया में अच्छे इंसानों की कमी नहीं है,

 पर मेरी दुनिया बहुत छोटी है।

 मेरे आसपास मुझे अपने जैसा कोई नहीं मिला।

सब झूठ और फरेब से भरे हुए हैं।

ऊपर से कुछ और और अंदर से कुछ और हैं।

 जताते कुछ और हैं, करते कुछ और हैं।

 यही सब नहीं है पसंद मुझे।

 ईश्वर की सुंदर दुनिया में क्यों इतने फरेबी  लोग  हैं?

क्यों इतना धोखा देते हैं?

 क्यों इतना छल करते हैं?

 क्यों इतना रुलाते हैं?

 क्यों इतना सताते हैं?

 किसी की भावनाओं को क्यों नहीं समझ पाते हैं?

 पर क्या किया जाए….

 अभी ईश्वर ने मुझे ऐसा बनाया है तो इसमें मेरा क्या कसूर है?

 पर मैं इसीलिए अपनी ही दुनियां में मस्त रहना चाहती हूं।

 मैं किसी को कुछ कहना नहीं चाहती

 और यह उम्मीद करती हूं कि मुझे भी कोई कुछ ना कहें।

 मैं अपनी फेवरेट इसलिए हूं क्योंकि मैं किसी का बुरा नहीं करती।

 किसी का बुरा नहीं चाहती

और सिर्फ यह चाहती हूं कि शांति और सद्भाव बना रहे

क्योंकि श्रीकृष्ण भी कहते हैं कि –

‘शांति किसी भी मोल पर मिले तो सस्ती है, उसे ले लेना चाहिए।

 बस इसीलिए उसे ही बनाए रखती हूं,

 खरीदती  रहती हूं शांति

  जिसके लिए चुकाती हूं  अनमोल  चीजों की कीमत

 इस कीमत में मेरे अरमान, मेरी इच्छाएं है,

 मेरे सपने ,मेरे हौसले  हैं।

कई बार खुद को मारकर ही  खरीद लेती हूं शांति

 क्योंकि किसी भी मोल पर मिले यह सस्ती है ,

अनन्त, आनंद का उद्गम स्त्रोत यही तो है…….

इसीलिए, सिर्फ इसलिए क्योंकि इसे खरीद पाना सभी के बस में नहीं है।

 इसलिए  मैं अपनी फेवरेट हूं।

  क्योंकि समझौता करती हूं पग- पग पर ,

अपने आप से,

 रिश्तो से।

 कहां है अपनापन?

 कहां है वह खुशी ?

कहां है वह आत्मीयता?

 कहां है वह समर्पण ?

कुछ नहीं है

 फिर भी रहना है एक छत के नीचे

सहना है बहुत कुछ अभी…

 इसकी कोई सीमा नहीं है,

 शायद जब तक सांस है,

  तब तक सहना है।

 आने वाले पलों के लिए,

 सिर्फ सपने हैं मेरे पास ,

उन सपनों को साकार रूप देकर

 जीना सीख रही हूं।

 इसीलिए अपनी ही सानिध्य को,

अपनी ही सोहबत को आंनदमय करती हूं

 क्योंकि उसमें छल कपट नहीं है ।

जो भी है साफ़ है, आईने की तरह

 पवित्र है भावनाओं की तरह

 जो है… सामने  है,

पीछे से नहीं दिखाई देता है।

 अंदर कुछ नहीं है।

 इंसान की तरह

कब पलट जाए यह भी डर नहीं है।

 मेरे साथ है मेरी परछाई

मेरा अपना अस्तित्व है

जो मुझे सही राह दिखाता है

 मेरा अपना है,

 मेरे साथ है,

 मेरे हर पल में ,

जो कोई सवाल नहीं करता,

 कोई ताना नहीं देता,

 कोई उंगली नहीं उठाता।

 बस चुपचाप मेरे साथ है

मेरे पास है… हर पल ।

इसीलिए उसी के साथ रहना चाहती हूं क्योंकि वह बदले में कुछ मांगता नहीं है।

 इसीलिए अपनी फेवरेट हूं मैं क्योंकि मैं किसी को परेशान नहीं करती।

 किसी की भावनाओं को नहीं छलती।

  बस अपने साथ रहना चाहती हूं,

 अपने पास रहना चाहती हूं।

 परंतु कई बार यह संभव नहीं हो पाता

 हमें समाज में रहना पड़ता है ,

किसी के साथ रहना पड़ता है,

 दिखाने के लिए ,

दूसरों को बताने के लिए

 कि देखो हम सब साथ हैं,

 हम सब खुश हैं ,

परंतु वास्तविकता बहुत अलग है,

 बहुत दु:खद है।

 फिर भी रहना है,

 सहना है ,

कहना है,

 दिखाना है,

 क्या करें… दुनिया है।

 पर इस दुनिया में मुझे अच्छा नहीं लगता।

 यह बनावटी है,

 दिखावटी है,

 दु:ख भरी है।

 इसलिए मैं रहना चाहती हूं

अपने बच्चों वाली नि:श्छल दुनियां में,

 जहां जो जैसा है,

वैसा ही दिखाई देता है,

 उसी में मैं खुश हूं,

 क्योंकि मैं अपनी फेवरेट हूं,

 हमेशा के लिए ,

हमेशा की तरह,

 मैं अपने आपसे बहुत प्यार करती हूं,

 क्योंकि मैं अपनी फेवरेट हूं।

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