सूर्य भी मांद, बीमार है
नदी, झरने समुद्र
सब उसके
हुक्म की अवहेलना
पर तुले हैं…
हर ओर कोहरा मुंह
चिढ़ा रहा है
बयार तेज़ अट्टहास
लगा के
इठला के भागी
जा रही है…
लोगों को सूरज की
बेबसी कानों
में फुसफुसा के
बताकर बेहद ख़ुश है…
दोपहर को
तरस आ रहा है
सूरज की इस हालत पर
वो हाथों में
फूल बूटे सजाये
रस भरे फलों
से दिनकर का
उपचार कर रही है…
सूर्य अपलक
निहारता है
दोपहर को
और एक आंख के
इशारे से
धन्यवाद कर रहा है…
हर ओर सर्दी की
हरियाली
देख कर
सूर्य अनमना होकर भी
बेहद ख़ुश है।
फ़िज़ा से
कह रहा है
आनन्द लो खूब सर्दी का
मैं मकर संक्रांति
को स्वस्थ होकर
जश्न मनाऊँगा
सर्दी मुबारक।

1 टिप्पणी

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.