होम कविता हरिहर झा की कविता – राह अपनी खो गया हूँ कविता हरिहर झा की कविता – राह अपनी खो गया हूँ द्वारा हरिहर झा - January 29, 2023 50 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet झुँझला रहा इधर उधर भटक रहा हूँ मैं पथिक हूँ, राह अपनी खो गया हूँ। डराती कठिनाइयाँ है सर्प रूपा चादर बिछा दी, सत्य की आभा छुपा छलावे पाषाण बन अटके तनिक घबरा गया हूँ मैं पथिक हूँ राह अपनी खो गया हूँ। मिलेगी मंजिल मुझे आश्वस्त हूँ मैं उपहास के गरल का अभ्यस्त हूँ मैं अपमान के तीक्ष्ण काँटे, चुभन से सँवर गया हूँ मैं पथिक हूँ, राह अपनी खो गया हूँ। मार्ग में कुछ फूल भी, कंटक सभी ना आस मेरी छोड़ झुंझलाओ कभी ना बिकने न दो दिल के उजाले ले किरन आ गया हूँ मैं पथिक हूँ, राह अपनी खो गया हूँ। जल टपकता, शास्त्र का निचोड़ जितना उमड़ घुमड़ते ज्वार में आनन्द कितना शब्द छूंछे रह गये हैं, धार में मैं बह गया हूँ मैं पथिक हूँ, राह अपनी खो गया हूँ। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रश्मि बजाज की कविता – आमार सोनार बांग्ला हरदीप सबरवाल की कविताएँ अरविन्द यादव की दो कविताएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.