होम कविता हितेश सिंह की कविता – और भी हैं राहें कविता हितेश सिंह की कविता – और भी हैं राहें द्वारा हितेश सिंह - April 4, 2021 210 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet लकीर का फ़कीर अब बनना नहीं, और भी हैं राहें। उस मंज़िल को गले लगाना, खड़ी है जो फैलाए बाहें। उसको खोने का डर कैसा, पाकर जिसको ख़ुशी न आए। बंधन सारे तोड़ है देना, जिसमें मन बंधना न चाहे। होंठों पर वो धुन लानी है, जिससे गीत नया बन जाए। हमको ऐसी ख़ुशबू बनना, जो पूरे जग को महकाए। एक इबारत ऐसी लिखनी, सदियों तक जो मिट न पाए। कश्ती ऐसी एक बनानी है जो सागर के पार लगाए। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं चंद्र मोहन की तीन कविताएँ सूर्यकांत शर्मा की कविता – कोई समझा नहीं कुसुम पालीवाल की कविता – आओ ! सूरज से आँख मिलाएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.