होम कविता हितेश सिंह की कविता – और भी हैं राहें कविता हितेश सिंह की कविता – और भी हैं राहें द्वारा हितेश सिंह - April 4, 2021 189 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet लकीर का फ़कीर अब बनना नहीं, और भी हैं राहें। उस मंज़िल को गले लगाना, खड़ी है जो फैलाए बाहें। उसको खोने का डर कैसा, पाकर जिसको ख़ुशी न आए। बंधन सारे तोड़ है देना, जिसमें मन बंधना न चाहे। होंठों पर वो धुन लानी है, जिससे गीत नया बन जाए। हमको ऐसी ख़ुशबू बनना, जो पूरे जग को महकाए। एक इबारत ऐसी लिखनी, सदियों तक जो मिट न पाए। कश्ती ऐसी एक बनानी है जो सागर के पार लगाए। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं वंदना यादव की कविता – आज मुझे दर्शक दीर्घा से कुछ लोग दिखे रेखा भाटिया की कविता – लैंप पोस्ट के पास सरोजिनी पाण्डेय की कविता – जीवन का पाथेय Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.