होम कविता इंदु बारोठ की कविता – कैसे अपनों की पहचान करूँ कविता इंदु बारोठ की कविता – कैसे अपनों की पहचान करूँ द्वारा इंदु बारोट - January 10, 2021 199 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet ढूंढू बिना स्वार्थ का वो रिश्ता, जिससे अपनी बात करूँ ! पहन मुखौटा घूम रहे सब, कैसे अपनों की पहचान करूँ ! कपट भरी इस दुनिया में ,किसका मैं विश्वास करूँ ! किससे कहूँ व्यथा अपनी,किस पर अब मैं आस करूँ ! दो धारी तलवार यहाँ सब ,किससे मन की बात करूँ ! छलने बैठा हर कोई यहाँ किससे निज एहसास करूँ! मैं तो हर क्षण हर पग नई नीति का आभास करूँ ! खाती हर रोज हूँ धोखे ,फिर भी नित नया प्रयास करूँ ! किससे कहूँ व्यथा अपनी किस पर विश्वास करूँ नहीं कोई ऐसा ,जिसे मैं अंतर्मन संवाद करूँ ! रोज टूटता ह्रदय है मेरा , कैसे मैं ये घाव भरूँ ! इस क्षत विक्षत हुये ह्रदय से, कैसे आगे पाँव धरूँ ! ख़ुद को देती ढाँढस, ख़ुद से ही बस आस करूँ ! किससे कहूँ व्यथा मैं अपनी, किस पर मैं विश्वास करूँ ! संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – फुदकती चिड़िया कुसुम पालीवाल की कविता – चाँद को देखूँ या देखूँ रोटियाँ ज़मीन पर सरोजिनी पाण्डेय की कविता – फागुनी धूप कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.