नव वर्ष पर राजस्थानी एसोसिएशन यूके गैलेक्सी ऑफ़ स्टार में कवि कलरव राजस्थानी कवि सम्मेलन किया गया ।यह कवि सम्मेलन अपने आप में एक ऐतिहासिक जलसा रहा जिसमें राजस्थानी भाषा संस्कृति साहित्य और परंपरा से जुड़े सभी कवियों ने सभी रसों से अलंकृत अपनी कविताएँ ,गीत, ग़ज़ल , छंद,मुक्तक आदि प्रस्तुत किए। यह जलसा दो दिवसीय रहा।
प्रथम दिन के मुख्य अतिथि श्रीमान ओंकार सिंह जी लखावत तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष भगवान लालजी सोनी थे इतने व्यस्तता के बावजूद तीन घंटे पूरी सक्रियता के साथ जुड़ने के लिए इन दोनों का बहुत बहुत धन्यवाद ओंकार सिंह जी लखावत ने हमें नव वर्ष के ये समाचार देकर प्रफुल्लित कर दिया कि राजस्थानी शब्दकोश ऑनलाइन शुरू हो गया है इससे हम बहार बैठे सभी प्रवासी भी राजस्थानी भाषा के शब्दों से लाभान्वित हो सकेंगे। उन दोनों के सानिध्य में बहुत सी ज्ञान की बातें सुनने को मिली
कार्यक्रम के संचालक संयोजक और सूत्रधार जिन्होंने पूरे तीन घंटे इस सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई वो है हमारे डॉक्टर साहब गजादान जी चारण। जिनके पास पास लगता है शब्दों का एक बहुत बड़ा शब्दकोश है जिसमें सरल से लेकर क्लिष्ट प्रत्येक प्रकार के शब्द देख सकते हैं और उनके ओजस्वी वाणी के तो कहने ही क्या एक बार राह में चलता व्यक्ति भी उनकी वाणी सुनकर उनकी रचनाओं को सुनने के लिए ठहर जाये।
कवि कलरेवरो की प्रस्तुति ने इस कार्यक्रम में जान डाल दी-
श्रीमान प्रह्लाद सिंह सा झोरड़ा – एक मोटीयार पण शब्दों रा धणी
श्रीमान गिरधारी दान सा रामपुरिया – ज़ेसाणे री शान
श्रीमान हिम्मत सिंह सा भरोड़ी – कार्यक्रम मैं उज्ज्वल दीप जला दिया सा
श्रीमान नरपत सा आसिया – अविश्मरणिय व अद्भुत
श्रीमान कैलाश सा जाड़ावत – आभार आपरे जोश ने सा
श्रीमान वीरेंद्र सा लखावत – कही प्यार हूँ चूँटिया भरो सा आप
श्रीमान राजेन्द्र सा स्वर्णकार – शब्द शिल्पी व मधुर वाणी रा स्वर्णकार है सा
श्रीमान मोहन सिंह सा रतनू – admin साहब री आभा ही निराली है सा
श्रीमान जोगेश्वर गर्ग साहब – एक व्यवस्थित जीवन के बाद भी जो आप शौक़ पूरा करो वो सही मैं प्रेरणा योग्य है।सभी हमारे कवि रत्नों ने एक से बढ़कर एक कविता पाठ कर साहित्य सरिता की जो निर्मल नीर बहाए थी उसका हम सभी ने रसास्वादन का अवसर मिला।
तीन जनवरी को इस सम्मेलन की दूसरी पारी प्रारंभ की गई जिसमें छैल सिंह जी हमारे कार्यक्रम के संयोजक, संचालकऔर सूत्रधार बने। छैलसिंह जी के द्वारा कार्य का प्रारंभ करणी वंदन के साथ बहुत ही सुन्दरता के साथ प्रदर्शित किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रोफ़ेसर हाकम दान जी चारण तथा कार्यक्रम के अध्यक्ष राजेंद्र जी रत्नू रहे।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए छैल सिंह जी ने सर्वप्रथम सुरेश सोनी को आमंत्रित किया ।जिन्होंने वेद विद्या द्वारा अपनी प्रस्तुति प्रारंभ की उन्होंने “राजनीति का रंग”व्यंग्यात्मक कविता तथा ओज रस से ओत प्रोत चेतक की कविता द्वारा चेतक को श्रद्धांजलि अर्पित की। हमारे दूसरे कवि डिंगल रा डकरोल महेन्द्र सिंह जी छायण जिन्होने -उण्डा खाडा खोदण आला
मिनख जात दिखे मैंने उणियारा “के द्वारा आज की हकीकत का चित्रण कर दिया वहीं आधुनिकता व परम्परागता का बहुत ही सुंदर चित्रण डिगंल छंद में- नेताजी राज रुलाणा में बढिया कटाक्ष प्रस्तुत किया। सिझ्ंया सुंदरी का सरस चित्रण किया
हमारी शृंगार रस की कवियित्री विमला जी ने अपनी ह्रदय स्पर्शी ओल्यूँ कविता के माध्यम से सबको भावुक कर दिया। आईदान जी भाटी मायड़ भाषा के जाने माने साहित्यकार हैं, स्तम्भ हैं।उनका केवल मात्र सानिध्य ही हमें बहुत कुछ सिखा देता हैं ।इन्होंने अपनी ओजस्वी वाणी में- मैं देख लूँ आभौ जमीन, स्वर्ग से पाताल तक तथा अपनी गजल इतरो आज अंधारो क्यूं कर, इतरो आज समंदर खारो क्यूं कर द्वारा सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।
डिंगल के युवै कवि के रुप में हिगंलाज दान जी ने मॉं करणी का मधुर तथा लयबद्ध डिंगल काव्यपाठ किया । रतन सिंह जी ने राजस्थानी ग़ज़ल प्रारम्भ कर मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई- साख सॉंचरी भरतो रहियो, अंतस में उजियारो राखो तथा आ आजादी आज देख ले ।सभी में बहुत ही सुंदर शब्दावली थी। उसके बाद क्रम में नगेन्द्र जी बाला थे, जिन्होंने मॉं करणी के दोहों से प्रारम्भ करते हुये मॉं बेटी के अनमोल रिश्ते पर कविता कर बहुत सुंदर चित्रण खींच दिया।
गिरधारी दान जी रत्नू जो कि डिंगल की परम्परा को जीवन्त रखने की मुहिम को बख़ूबी निभा रहे हैं ।”शेर हिंदथान रा द्वारा बहुत ही जोशीला छंद पाठ किया, उसके बाद प्रकृति रचना कर मेह का महत्व बताया तथा अंत में बहुत ही मर्मस्पर्शी गजल परदेस बैठे पुत्र को मॉं द्वारा लिखा पत्र प्रस्तुत की। सिलसिला चलता रहा कारवाँ बढता रहा हमारे अगले कवि श्रेणीदान जी जिनको मैं बचपन से सुनती आ रही हूँ, उनकी मधुर गायन शैली से प्रभावित हुये बिना कोई नहीं रह सकता।
नवों नवों बरस है नवीं नवीं बातां पंक्तियों से प्रारंभ करते हुये मेवाड़ के मुक्तक फिर किसानों को समर्पित कुछ छंद में अपने मधुर स्वर बिखेरे, शहीद की पत्नी का एक रिपोर्टर के प्रश्न जवाबकि आगे वह क्या करेगी। बहुत ही सुंदर और भावुक प्रस्तुती रही।
हमारे मुख्य अतिथि श्री हाकम दान जी चारण ने स्वयं को बेहतर श्रोता बताते हुये राजस्थानी भाषा के शब्द, गहराई तथा समृद्धता के बारे में विचार प्रस्तुत किये तथा डिंगल भाषा को आगे किस तरह बढाया जाये , उसके बारे में बात की। इस महामारी के काल में चारण साहब नें कई ऑनलाइन कोर्स प्रारंभ करवा एक बहुत ही अनकरणीय पहल की है, उसके लिये उनको बहुत बधाई ।
हमारे अध्यक्ष महोदय राजेन्द्र जी रत्नू ने भी कवि तथा कविताओं में रुचि दिखाते हुये प्रवासियों के लिये स्वलिखित चार पंक्तियाँ कही- अपनी धरती भलें ही छोडकर रहो,पर उनसे नाता जोडकर रहो। अपनी धरा से दूर मत अकड के रहो, अपनी जड़ों को सदा पकड के रहो। इसके माध्यम से उन्होंने बहुत कुछ कह दिया।
कविता की शक्ति बताते हुये बताया कि कविता सकारात्मकता और कलात्मकता दोनों को बढावा देती है। जाते जाते अपने कॉलेज समय की एक कविता- चश्मे की चौखट से रक्षित तेरे चंचल चक्षु से सबको अपने अपने कॉलेज समय का यादों में ले गये।
सभी को बहुत बहुत धन्यवाद इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिये, सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हमारे संचालक महोदय छैल सिंह जी की रही जिन्होंने पूरे कार्यक्रम को बांध कर रखा तथा समय समय पर अपनी कविता, छंद हम तक पहुँचाते रहे।