दिनांक 3 जनवरी 2021 को प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय ‘सात महीने से चीन में फंसे हैं भारतीय नाविक’ पर संदेश के माध्यम से प्राप्त तीन पाठकीय प्रतिक्रियाएं।
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प्रो. सविता सिंह, पुणे
बहुत गंभीर प्रश्न उठाया है आपने संपादकीय में। मुझे भी अनुभव है सुषमा स्वराज जी का.. जबरदस्त महिला थीं.. अब कोई नहीं उनका स्थान ले सकता है। मुझे आज भी याद है कि बड़ी संवेदना से हर मसले को उन्होंने अपने कार्यकाल में संभाला था। रामराज्य की स्थापना कर दी थी। अब तो संभव नहीं है लेकिन फिर भी दुआएं कर सकते हैं कि जल्द से जल्द भारतीयों के लिए हित में कोई कार्यवाही हो।
मैंने टिप्पणी कॉलम में लिखी थी लेकिन पता नहीं कैसे आगे टाइप करते समय लास्ट लाइन ही गायब हो गई। सोचा इस पर ही आपको मैसेज कर दूं।
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डॉ. तारा सिंह अंशुल, गोरखपुर
पुरवाई के संपादक महोदय तेजेंद्र शर्मा जी द्वारा लिखी संपादकीय, जिसका शीर्षक है, ‘सात महीने से चीन में फंसे हैं भारतीय नाविक’. अभी कुछ वक्त पहले पढ़ा। संपादक महोदय ने मानवीय दृष्टिकोण के मद्देनजर इस बार अपनी पैनी दृष्टि डाली है…एक अहम मुद्दे पर… लंबे अंतराल तक सरकार और भारतीय जनमानस की दृष्टि से ओझल यह मुद्दा,……..संदर्भित इन 39 नाविकों की चीनी बंदरगाह जिंगतांग मैं फसी तकलीफ़े झेलती, बेबस ज़िंदगियां हैं।
देर से ही मगर दुरुस्त! आप द्वारा इन नाविकों की तकलीफों को अपनी संपादकीय के माध्यम से प्रकाशित कर, इनकी पीड़ा दूर करने के नेक इरादे से, लिखना अत्यंत उचित प्रतीत होता है।
मानवता ही सांसारिक जीवन का मूल आधार है, इसके बाद सब कुछ है। 13 जून 2020 से जिंगतांग चीनी बंदरगाह पर , सात माह से फंसे 39 भारतीय नाविक विकट परिस्थितियों में वहां फंसे हुए कितनी पीड़ा झेल रहे हैं।
संभवतः इनके कष्ट को महसूस करते हुए इस महत्वपूर्ण मुद्दे को सुलझाने की सरकार द्वारा त्वरित कोशिश नहीं की गयी।
फलस्वरूप सात महीने से ये तमाम तकलीफों से गुजर रहे हैं। उनको वहां से निकालना भारत सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए।
वैसे चीन तो पाकिस्तान का मौसेरे बड़े भाई की तरह है, झूठ बोलने में माहिर।
मुझे तो लगता है कि चीन का झूठ बोलना उसका विशेष अनुवांशिक गुण है, उसकी अपनी अवसरवादी स्वार्थ में पगे अलग किस्म की विशेषताओं में शामिल है।
झूठे पाकिस्तान की तरह चीन को भी ,ज़ेहनी तौर पर झूठ बोलने की आदत और अपनी पूर्व कही हुई बात से पलट जाने पर उसे कोई पछतावा नहीं होता है।
संपादक महोदय की मंशा के अनुरूप पुरवाई के पाठकों की बेसब्र चाहत है कि ,… जिन विकट परिस्थितियों में भारतीय नाविक वहाँ फंसे हुए हैं ,
अब ये सारा दारोमदार भारत सरकार पर है कि ,….उन्हें वहां से हर हाल में निकाल कर यथाशीघ्र मुक्त मुक्त कराने के लिए हर संभव कार्य कर कार्रवाई करे।
यहां सवाल मुश्किल में फंसी ज़िंदगियों को यथाशीघ्र ,अविलंब कार्रवाई करके सुरक्षित बचाने का है।
अतः इसमें विलंब होना कदापि उचित नहीं कहा जा सकता।
सच में मानवता के तक़ाजे के अनुरूप संपादक महोदय आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी द्वारा 39 ज़िंदगियों से से जुड़े , बहुत ही संवेदनशील मुद्दे को उठाया गया है। जो संपादकीय पढ़ने वाले अपने सभी पाठकों का ध्यान बरबस आकर्षित करता है।
मैं कह सकती हूं कि इस संवेदनशील मुद्दे को प्रकाश में लाए जाने के कारण यह संपादकीय आलेख बहुत ही सराहनीय है, जिसके लिए पुरवाई के संपादक तेजेंद्र शर्मा जी बधाई पात्र हैं।
मेरी असीम शुभकामनाएं उन्हें नववर्ष 2021 की मंगल कामनाओं के साथ मैं प्रेषित करती हूं।
जय हिंद ,जय भारत , वंदे मातरम!
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उषा साहू, यूके