भारतीय उच्चायोग के हिन्दी एवं संस्कृति अधिकारी श्री तरुण कुमार के साथ लंदन में क़रीब 4 साल का समय कैसे बीत गया, कुछ पता ही नहीं चला। उनके व्यक्तित्व की एक ख़ासियत रही है कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने ब्रिटेन की तमाम हिन्दी से जुड़ी संस्थाओं के साथ समान भाव रखे और जहां तक हो सका भारतीय उच्चायोग की ओर से सहायता जुटाने में कोई कसर नहीं रख छोड़ी। उन्होंने उच्चायोग के दरवाज़े हिन्दी प्रेमियों और विद्यार्थियों के लिये खुलवा दिये और वहां हिन्दी से जुड़े तमाम कार्यक्रमों का आयोजन किया। ब्रिटेन की कवयित्री एवं हिन्दी अध्यापक इंदु बारोट ने तरुण जी पर एक कविता लिखी है। अपने पाठकों के लिये पेश है वो कविता…. (संपादक)
अंग्रेज़ों के इस देश में हिंदी संग सभ्यता संस्कृति को सिखाया आपने हर व्यक्ति के मन में प्रेम आत्मविश्वास जगाया आपने कभी शिक्षक बनकर हिंदी का महत्व है बताया तो कभी कवि बनकर कविता पाठ है सुनाया ‘प्रवासी मन’ को हर साहित्य विद्या से क्या ख़ूब है सजाया होंगे बहुत कार्यक्रम हाई कमिशन में पर आप को नहीं पायेंगे । लगेगा मंच सूना, आपकी कमी सदा हम पायेंगे मगर क्या करें… मिलना बिछड़ना यह तो रीत पुरानी हैं इसी का ही तो नाम ज़िंदगानी है एक और नया लक्ष्य नया पथ हो गया तैयार है। नयी मंज़िल कर रही आपका इंतज़ार है
छोड़कर जो जा रहे हो यहाँ हिंदी की जलाकर यह लौ। वादा है जब भी वापस आओगे इसे ऐसे ही जलती पाओगे हर लक्ष्य हो पूरा आपका ये ही हम सबकी मनोकामना है हर पथ पर विजय हो, ह्रदय से देते हर बार यही शुभकामना है।