किसी भी अवार्ड वापसी गैंग का कोई केस सुप्रीम कोर्ट जाता है तो कपिल सिब्बल और सिंघवी काला कोट पहन कर वहां पहुंच जाते हैं। क्या कानून मन्त्री रविशंकर प्रसाद अर्णब गोस्वामी के मामले में अपना काला कोट नहीं पहन सकते थे? कम से कम भाजपा इस तरह अर्णब के प्रति कोई तो ढंग का का कदम उठाती दिखती। 

अर्णब गोस्वामी जेल में है और भाजपाई नेता ट्वीट-ट्वीट खेल रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार और पुलिस ने मिल कर अर्णब के विरुद्ध शिकंजा कस डाला है… तमाम लीगल इल-लीगल तरीके अपना लिये हैं औऱ भारतीय जनता पार्टी के मंत्री, सांसद और प्रवक्ता या तो ट्वीट कर रहे हैं और या फिर प्रेस कॉन्फ़्रेंस। 
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने गोस्वामी की हिरासत को प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया है। केंद्रीय मंत्री ने ट्वीट कर कहा, ‘हम महाराष्ट्र में प्रेस स्वतंत्रता पर हमले की निंदा करते हैं। यह प्रेस के साथ व्यवहार करने का तरीका नहीं है। यह हमें उन आपातकालीन दिनों की याद दिलाता है जब प्रेस के साथ इस तरह से व्यवहार किया गया था।
रेल मंत्री पीयूष गोयल ने रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक की गिरफ्तारी पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, ‘महाराष्ट्र में प्रेस की स्वतंत्रता पर इस हमले की कड़ी निंदा करता हूं। यह फासीवादी कदम अघोषित आपातकाल का संकेत है। पत्रकार अर्नब गोस्वामी पर हमला करना सत्ता के दुरुपयोग का एक उदाहरण है। हम सभी को भारत के लोकतंत्र पर इस हमले के खिलाफ खड़ा होना चाहिए।
भारत सरकार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत इस वक़्त 22 कैबिनेट मंत्री हैं। 4 नवम्बर को अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, रसायन एवं उर्वरक मंत्री सदानंद गौड़ा, सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत के अलावा हर कैबिनेट मंत्री ने अर्नब गोस्वामी की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ ट्वीट या रिट्वीट किया है।
सवाल यह उठता है कि यदि कोई राज्य सरकार अपने राज्य में इमरजेंसी जैसे हालात पैदा कर देती है तो क्या केन्द्र सरकार केवल हाय तौबा मचाती रहेगी? जो मोदी सरकार अर्णब गोस्वामी के मामले में कर रही है उसे अंग्रेज़ी में ‘लिप सर्विस’ और सरल हिन्दी में खानापूर्ती कहा जाएगा। 
ध्यान देने योग्य बात यह है कि भाजपाई ट्वीट में केवल और केवल माँ-बेटे यानि कि सोनिया गान्धी और राहुल गान्धी पर वार कर रहे हैं। उद्धव ठाकरे और शिवसेना के मामले में हैरान करने वाली चुप्पी साधे हैं। जिसे राजनीति का थोड़ा भी ज्ञान है, वह जानता है कि महाराष्ट्र में केवल और केवल शरद पवार की चलती है। उनकी मर्ज़ी के बिना महाराष्ट्र में कुछ नहीं हो सकता। यदि गृह-मन्त्री अमित शाह केवल शरद पवार पर फ़ोन के ज़रिये थोड़ा भी दबाव डालते तो महाराष्ट्र सरकार कभी भी अर्णब पर हाथ नहीं डालती। 
शक की सुई महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस और संजय राऊत की मुलाक़ात पर भी इशारा करती है। क्या उन दोनों ने मिलकर कोई खिचड़ी पकाई जिसकी वजह से अर्णब गोस्वामी को ख़मियाज़ा भुगतना पड़ रहा है? अब यदि भविष्य में भाजपा शिवसेना के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाती है तो कम से कम महाराष्ट्र की जनता के मन से भाजपा का सम्मान पूरी तरह से ख़त्म हो जाएगा। यह राजनीति का सबसे निकृष्ट कदम होगा। 
किसी भी अवार्ड वापसी गैंग का कोई केस सुप्रीम कोर्ट जाता है तो कपिल सिब्बल और सिंघवी काला गोट पहन कर वहां पहुंच जाते हैं। कानून मन्त्री रविशंकर प्रसाद अर्णब गोस्वामी के मामले में अपना काला कोट नहीं पहन सकते थे ? कम से कम भाजपा इस तरह अर्णब के प्रति कोई तो ढंग का का कदम उठाती दिखती। 
जबकि एक तरफ़ अर्णब गोस्वामी ने आरोप लगाए हैं कि पुलिस ने ज़बरदस्ती उनके घर में घुसकर उनसे मारपीट की। वहीं मुंबई पुलिस ने एक अन्य एफ.आई.आर. दर्ज की है जिसमें अर्णब पर गिरफ़्तारी के समय एक महिला पुलिसकर्मी के साथ हाथापाई का आरोप है। 
यहां एक बात अवश्य कहना चाहूंगा कि वामपन्थी पत्रकारों या फिर कांग्रेसी समर्थक पत्रकारों को लम्बा तजुर्बा है कि दक्षिणपन्थी सरकार से कैसे निपटा जाए। उन्हें शोर मचा कर अपने पक्ष में माहौल करना आता है। फिर चाहे क्षेत्र राजनीति का हो, पत्रकारिता, साहित्य अथवा कला, वे अपनों की पीठ खुजाना जानते हैं। जबकि भाजपा का समर्थन करने वाले इन्ही वामपन्थियों से अपने अपने क्षेत्र में प्रमाणपत्र पाने को लालायित रहते हैं। जबकि कांग्रेस या वामपन्थी सत्ता में आते ही अनुपम खेर और अन्य पदाधिकारियों को पल भर में बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। 
अर्णब गोस्वामी को आज अलीबाग से तलोजा जेल ले  जाया गया। पुलिस की जिस वैन में उन्हें बैठाकर ले जाया जाया गया, उस वैन की खिड़कियों पर काले कपड़े के पर्दे लगे थे। वैन के अंदर से अर्णब ने कहा कि मेरी जान को खतरा है… मुझे मेरे वकीलों से मिलने नही दिया जा रहा है। अर्णब ने यह भी आरोप लगाया कि उसे मारा-पीटा गया है।
रवीश कुमार, अजित अंजुम, प्रणव राय, राजदीप सरदेसाई, अंजना ओम कश्यप, आदि को समझना होगा कि सत्ता यदि आज अर्णब को ख़त्म करने के लिये कमर कसे बैठी है तो कल इनमें से किसी एक की बारी हो सकती है। यह समय सभी पत्रकारों को एकजुट दिखने का है। आपसी मनमुटाव को ताक पर रख कर सबको अर्णब की जान और रिहाई की तरफ़ प्रयास करने होंगे। कहीं ऐसा न हो कि बाद में हम शोक संदेश भेजते दिखाई दें।

वैसे सुब्रमण्यम स्वामी ने भी एक ट्वीट किया है कि अर्णब गोस्वामी कोई क्रिमिनल नहीं है।  केन्द्र सरकार यदि चाहे तो धारा 256 और 257 के तहत इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दे सकती है। निर्देश न मानने पर धारा 356 तो है ही।

लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

1 टिप्पणी

  1. सम्पादकीय में कहा गया सच ,आगत का यथार्थ है
    जो पत्रकारों को समझना चाहिए ।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.