पत्तों ने ली अंगड़ाई
कलियों पर भी तरुणाई छाई
आमों पर भी बौर आई
कोयल की मधुर तान भी दी सुनाई
क्या बसंत की बहार आई
चिड़िया भी चहचहाई
कौओ ने भी पांखे खुजलाई
मंद पवन भी धीरे से मुस्काई
भौरों की भी दी गुंजार सुनाई
क्या बसंत की बहार आई
प्रकृति भी नव रूप में दी दिखाई
जैसे नई दुल्हन घर आई
ओस की बूंदों ने भी
फिर शहनाई बजाई
चारों तरफ खुशहाली छाई
क्या बसंत की बहार आई