Tuesday, October 15, 2024
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दिलीप कुमार की कहानी – ख़ुदा और विसाले सनम

वो लंबेलंबे कश खींच रहा था मगर उसकी खांसी बदस्तूर जारी थी। सिगरेट पीने की उसकी आदत सिगरेट से गम गलत करने की उसकी ख्वाहिश पर भारी पड़ रही थी। खांसते खांसते हुये लार उसके चेहरे पर लिपट गयी और आंखे लाल हो गयीं। उसके साथ का चिलमची डर गया कि अगर किसी ने उन दोनों को साथ देख लिया तो चिलमची पर आफत जायेगी। शाम का धंुधलका बढ़ रहा था। सामने की धीरज हाइट्स की आठ मंजिला बिल्डिंग की लाइटें जगमगाने लगी थीं। तभी अजान हुई। उस जगह पर बज रहे गानों के स्वर धीमें पड़ गये।
ईसा की नमाज का वक्त हुआ तो दुकान  गुज्जू ने कहा ‘‘कसूरी भाई, नमाज का वक्त हो गया। नशाŸाी छोड़ो। अल्लाह की बारगाह में जाओ शायद कोई राह निकले। मस्जिदों में इबादत से वो तमाम मुकदमें हल हो जाते हैं जिन्हें दुनियावी अदालतें ठीक नहीं कर पाती’’ सहानुभूति के फाहे मिले तो मन के घावों की टीस कुछ कम हुई। कसूरी ने हाथ मुंह धोया, खुद को पाक साफ किया और इस बात की तस्दीक की, कि उस पर कोई नशा तारी तो नहीं है।
नशा हुआ भले ही था मगर नशा किया तो था कसूरी ने भले ही गम गलत करने की नीयत से। उसकी अन्तरात्मा ने उसे धिक्कारा कि वो पाक मुसलमान नहीं है फिलवक्त नमाज के लिये……….. पाक मुसलमान, मुसलमान, मुसलमान यही तो वो लफ्ज था जिसने इस वक्त उसके किरदार को मथ कर रख दिया था। उसका सिर चकराने लगा। उस मुस्लिम बहुल बस्ती बेहरामबाग पाड़ा में वो अजान के वक्त सड़क पर दिखकर खुद की किरकिरी नहीं कराना चाहता था। सो वो उठकर दुकान के पिछले हिस्से में चला आया। वहीं शीशे के पार उसने देखा कि तमाम पैर मस्जिद की तरफ मुड़ रहे थे। बेहरामबाग की मस्जिद में नमाजियों के लिये जगह कम पड़ पाया करती थी सो तमाम लोग मस्जिद के सामने वाली सड़क पर नमाज अता किया करते थे। 
बेहराम बाग की घनी बस्ती, बहुत सारे मुसलमानों के घर, घाटी, मराठी, गुज्जू, भैय्या, बिहारी हर किस्म के मुसलमान। लेकिन सबके मसले जुदाजुदा। अस्सलाम वालेकुम के अलावा उनमें कोई चीज साझी थी। साझा था तो पहले अपना फायदा देखना फिर अपना प्रांतवाद। दिलचस्प है मुम्बई शहर यहाँ बाहर से आने वाले लोग इस शहर की सलाहियतों के तो कायल हैं मगर दिन भर बातें अपने मुलुक (गांव) की किया करते हैं। कसूरी हारकर अपने घर पहुँचा तो उसकी बड़ी बेटी राबिया ने दरवाजा खोला और दरवाजा खोलते ही बेसाख्ता बोली ‘‘अब्बू, आप इस वक्त यहाँ? नमाज पढ़ने नहीं गये, फिर अपने ही शब्दों को चबाकर बोली ‘‘अब तो बहुत देर’’ तब तक वहाँ रेशम गयी।
दोनों ने एक दूसरे को देखा कसूरी ने रेशम को प्यार और हसरत भरी नजरों से और रेशम ने कसूरी को कहर भरी नजरों से। ‘‘जाओ यहाँ से’’ ये कहते हुये रेशम अंदर चली गयी और उसने अंदर के कमरे के दरवाजे को भड़ाक से बंद करके चिटकनी लगा दी। पस्ती के आलम में थके कदमों से कसूरी एक बावर्चीखाने पर चला गया। वो वहाँ खाने बैठा तो उसे लगा सब उसी को घूर रहे हैं। बमुश्किल उसने दो निवाले हलक से नीचे उतारे और वहाँ से चल पड़ा। अपने घर से दो गली छोड़कर उसकी एक और आठ बाई आठ की खोली थी जिसमें वो जाकर अकेले लेटा। वो लेटा तो उसकी आंखे नम थीं और उसका अतीत सिनेमा के फ्लैशबैक की तरह उसके सामने गया। याद आया उसे वो गोरखपुर का अपना गुजरा वक्त, सुंदर कसा हुआ शरीर, दूधिया गोरा रंग, घंुघराले बाल लोग कहते थे और वो खुद मानता था कि वो अभिनेता शशि कपूर जैसा दिखता था। गोरखपुर शहर से कुछ दूरी पर स्थित बघनी गांव शुद्ध और उच्च कुलस्थ ब्राहम्णों का था। दरिद्र मगर इज्जतदार परिवार था उसका। तब उसका नाम शेष शिरोमणि दूबे हुआ करता था। उसके कुल के लोग खुद को इतना श्रेष्ठ समझते थे कि वे अपने नाम के आगे शिरोमणि लगाते थे उनकी शुद्ध आचरण की मिसालें दी जाती थीं। पुजारी पिता के देहांत के बाद शेष शिरोमणि दूबे ने अपनी तीन बीघे की खेती, पुजारी की गद्दी और अपनी बूढ़ी मां चचेरे भाइयों की तका करके बम्बई की राह ली।
बम्बई तब भी इतनी ही दिलफरेब थी जितनी आज दिलकश है। ऐसे सुंदर चमचमाते चेहरे तो बम्बई की गलीगली हर नुक्कड़ हर चैराहे पर थे। कुछ महीनों में ही शेष शिरोमणि दूबे की जमा पूंजी स्वाहा हो गयी। हीरो बनना तो बड़ी दूर की बात एकस्ट्रा तक का भी रोल मिलना नसीब नहीं हुआ। एकस्ट्रा का रोल करने के लिये उसकी यूनियन से कार्ड बनवाना पड़ता था और कार्ड बनवाने के लिये जिस पैसों की दरकार थी वो शिरोमणि के पास नहीं थे। पहले नाकामी मिली फिर भूख से अतड़ियां ऐंठी और उसने घर वापस होने की सोची। मगर ऐसे कैसे हो जाती वापसी। यही तो मुम्बई की अनूठी बात थी यहाँ हर कामयाबी के पीछे किस्से हैं संघर्षों के अनथक दास्तानों की। यहाँ नाकामी जितनी बड़ी लोग उसको उतनी ही बड़ी कामयाबी की दिलफरेब हसरतें पालने को ताकीद करते हैं। उन्हीं दिनों एक छोटे से ढाबे पर उधारी बढ़ी जाने के कारण गुल्लक सेठ ने शिरोमणि को धक्के देकर ढाबे से बाहर भगा दिया था।
भूख, पस्ती, नाकामी और बेबसी से परेशान था शिरोमणि। उसने तजबीज से पता लगाया कि दोपहर में गल्ले पर रेशम बैठा करती थी। रेशम एक बेपनाह कश्मीरी हुस्न जो कि मुम्बई की इस गंदी बस्ती में भी अपने शबाब पर था। रेशम के पुरखे कश्मीरी के हुजां घाटी के थे जो दुनिया में सबसे खूबसूरत लोगों के पैदाइश की जगह मानी जाती थी अब वो हिस्सा पाकिस्तानी कश्मीरी में है मगर गमे रोजगार ने फिलवक्त गुल्लक सेठ को मुम्बई के जोगेश्वरी उपनगर के बेहराम बाग पाड़ा में पनाह दी थी। फिर एक दिन जब भूखे और बेबस शिरोमणि रेशम के सामने गिड़गिड़ाया कि उसे वो अपने ढाबे पर कुछ दिन उधार भोजन करते दे तो वो संुदर स्त्री द्रवित हो उठी। बाप की ताकीद उसे याद थी सो अपने उधार भोजन देना तो मना कर दिया मगर उधार पैसे देना जरूर कुबूल कर लिया। 
वो मुसलसल शिरोमणि को उधार देती रही। शिरोमणि संघर्ष झेल चुका था काफी कुछ जान भी गया था। पेट भरा तो उसका आत्मविश्वास लबरेज हो गया उसने फिर से प्रयास करने शुरू कर दिये। टेलीविजन उद्योग उन दिनों अपने पैर फैला रहा था घरघर सीरियल रहे थे। ये इक्कीसवीं सदी और किक्रेट में सौरव गांगुली की कप्तानी के शुरूआती साल थे। शिरोमणि को तमाम टी0वी0 धारावाहिकों में एक आध दिन का काम मिलने लगा। जोगेश्वरी का बेहरामबाग पाड़ा अब शिरोमणि के लिये तीर्थ था वहीं तमाम फिल्म और टी0वी0 प्रोडक्शन कम्पनियों के दफ्तर थे।
सुबह शाम वो गुल्लक सेठ के होटल पर अपना पेट भरता और श्री जी होटल पर दिनरात आडिशन देता रहता। शिरोमणि अब अपने खर्चे आसानी से निकाल लेता था। सिनेमा एक ऐसी फंसाती है जो सबको अपनी तरफ खींचती है इस मोह माया से रेशम भी बच सकी। स्त्री जिससे सहानभूति रखती है अमूमन प्रेम भी उसी से करती है। रेशम को बीते हुये कल का भुखमरा शिरोमणि आने वाले कल का हीरो नजर रहा था। उसे सहानभूति हुई, सहानभूति से संवेदना, संवेदना से आकर्षण और आकर्षण प्रेम में बदल गया। मुम्बई में अब चमत्कारिक प्रेम नहीं होते जहाँ कोई किसी को समग्रता से चाहे, दोनों के समीकरण थे और दोनों को एक दूसरे से उम्मीदें नजर रहीं थीं।
एकएक दिन के बंधुआ मजदूर की तरह काम से उकताकर शिरोमणि अब अपना पोर्टफोलियो बनवाकर फिल्मों के लिये प्रयास करना चाहता था। फिल्मों में काम पाने के प्रयास के दौरान वो चाहता था कि उसे रोजमर्रा के खर्चों की चिन्ता हो और छोटेमोटे रोल करने पड़े। इसके लिये गुल्लक सेठ का ढाबा और उसकी दो तल्ला खोली शिरोमणि के लिये वरदान साबित हो सकती थी। इसके अलावा रेशम का बेपनाह हुस्न भी उसे चैन से जीने नहीं देता था। मगर रेशम तो मुसलमान है मांसमछली सब खाती है और ठहरे ठेठ पंडित। ये और बात थी कि अब वो जनेउ और चोटी वाले पंडित नहीं थे मगर उनके मन में कहीं कहीं ये बात जरूर थी कि वो एक पुजारी का अंश हैं। वाह रे बंबई नगरिया कहते हैं यहाँ हर सपने की एक कीमत होती है सो वो भी कीमत चुकायेंगे उन्होंने अपने रक्त में पेवस्त हिन्दुत्व के ज्ञान को टटोला तो ये पाया कि कन्या की कोई जात नहीं होती, शादी के बाद जो पति का धर्म और जाति वही सब कुछ कन्या को स्वतः प्राप्त हो जाता है। शिरोमणि ने खुद को तसल्ली दी कि वो शादी के बाद रेशमा को हिन्दू धर्म के तौरतरीके सिखा देंगे और उनका खुद का हिन्दुत्व भी बचा रहेगा। ये शिरोमणि के मंसूबे थे।
उधर रेशमा कुछ और सोचे बैठी थी वो मानती थी कि उसके ढाबे पर खाना खाने वाले लोग आम शहरी थे कल को वो किसी फिल्मी हीरो की बीवी हो गयी तो इस सोच से ही उसके शरीर में खुशी और रोमांच का सिहरन दौड़ जाया करती थी। वो दोनों मिलते और इस रिश्ते की उंचनीच पर गुफ्तगु करते, हलकान होते मगर उनकी आंखे ख्वाबों के जुगनुओं से चमकती रहती थीं। इन फंतासियों को यथार्थ का धरातल दिखाया गुल्लक सेठ ने। गुल्लक सेठ जो हिन्दुस्तानी कश्मीर के बांशिदे थे मगर आतंकवाद के कारण उनको अपने कुनबे के साथ अपना घर छोड़ना पड़ा था, मुसलमान होने के बावजूद। उसी आतंकवाद की भेंट चढ़ गयी थी गुल्लक सेठ की बीवी।
बिना बीवी के दुधमुँही बच्ची बम्बई में गुल्लक सेठ ने कैसे पाला था ये बात या तो वे जानते थे या उनका खुदा। फुटपाथ पर रेहड़ी लगाकर ये खोली और होटल उन्होंने कैसे बनाया था, ये सब याद करके वो सिहर जाते थे। अपनी बच्ची रेशम से उन्हें इतनी मुहब्बत थी कि उन्होंने दूसरा निकाह नहीं किया कि सौतेली माँ से कहीं बच्ची के लाड़प्यार में कोई कमी रह जाये। आज अपनी इस खूनपसीने से कमाई गयी दौलत यूं एकदम से हिन्दू को सौंप देना उन्हें हर्गिज गवारा था। बेशक उन्हें बेटी की पसंद का एहतराम था मगर वो थी तो बेटी ही। 
आज गुल्लक सेठ जिंदा है तो रेशम की देखभाल है कल को वो जिन्दा रहें तो रेशम के साथ कुछ भी हो सकता है हो सकता है, उसे कोई चेरी या लौंडी बनाकर रखे। गुल्लक सेठ फिल्म और टी0वी0 वालों के किरदार से हर्गिज मुतमइन थे जो कपड़ों की तरह अपने हमसफर बदल दिया करते थे। मगर वो बेटी की जिद के आगे बेबस थे। बेटी भागकर शादी कर ले तो वो क्या कर लेंगे। सो उन्होंने अपना मास्टर स्ट्रोक चला। बेटी को दीनदुनिया ऊँचनीच समझायी कि जिस इश्क की दुहाई शिरोमणि दे रहा है अगर वो इश्क सच्चा है तो उसे इस बात से कोई एतराज नहीं होना चाहिये कि लड़की हिन्दू क्यों बने लड़का मुसलमान क्यों बन जाये। ये बात रेशमा के दिमाग में घर कर गयी।
फिर उसने बचपन से ही अपने माहौल में हिन्दुओं के बुरे होने के जो किस्से सुन रखे थे उसे अपनी उन धारणाओं से भी पार पाना था। वैसे भी स्त्री प्रेम संबंध और धन की चाबी अपने पास ही रखना चाहती है उसके पास जो भी होता है उसे बटोरे रहना, मुट्ठी में सहेजे रहना स्त्री का स्वप्न होता है, जबकि पुरूष अकल्पनीय पर ज्यादा ध्यान देता है। संबंधो की रस्साकस्सी चलती रही, कस्मेंवादें, वास्ते, दुहाइयां दी गयीं मगर सब कुछ गड्मगड्ड ही रहा। गुल्लक सेठ टस से मस हुये, उनका निशाना ठीक बेटी के मर्म पर था रेशमा को भी उनकी बात जंची हुई थी कि अगर इश्क है तो कैसा भेद।
शिरोमणि को गांव से कोई सलाहमश्विरा नहीं करनी थी। किसी शिरोमणि ब्राह्मण का धर्म परिवर्तन कर मुसलमान बनना भी उस गांव में अकल्पनीय था। जिस गांव के वो शिरोमणि ब्राह्मण थे यानी कि सर्वोच्च वे निम्न कोटि के ब्राह्मणों से रोटीबेटी का रिश्ता नहीं रखते थे। उस गांव के निवासी शिरोमणि को मुसलमान बनने की सोच ही सिहरा देती थी। मुम्बई आये हुये उसे पांच साल हो चुके थे। उसने अपनी वापसी के सारे रास्ते खुद बन्द कर दिये थे। उसकी माँ उसके चेचेरे भाइयों से कई साल तक उसकी खैर ख्वाह के लिए खत लिखवाती रही थी मगर उसे गोरखपुर की वापसी अपने सपनों का कत्ल लगती थी अब जबकि वो अपने मंजिल के इतने करीब था।
वापस जाकर उसे अपने भाइयों की तरह मट्ठीमुट्ठी भर अनाज इकट्ठा नहीं करना था। यहाँ वो था उसके सपने थे, फिर माँ को कब तक जीना था? उसे अपने सपनों की कीमत अपनों को खोकर चुकानी थी सो उसने चुकायी। हालात जीत गये मगर उन्हें इश्क की जीत का मुलम्मा पहनाया गया। शिरोमणि अब खुर्रम कसूरी बन चुका था। खुर्रम खान या अंसारी नहीं बना, कसूरी ही बना क्योंकि गुल्लक सेठ का असली नाम गुल्बख्श कसूरी था। एक मजहब क्या बदला, सब कुछ बदल गया। उसका भविष्य इस बात की तस्दीक की बुनियाद पर खड़ा था कि उसने मुसलामन होना रेशमा के इश्क के सबब से कबूल किया था कि अपने हीरो बनने के सपनो को पूरा करने के लिये।
नतीजतन जरूरी और एहतियाती इस्लामी तौरतरीके सिखाये गये। कसूरी ने कलमा पढ़ना सीखा, नमाज पढ़ने की रवायत को अपनाया, रोजे रखे। उसने खास तौर से मुसलमानों वाली टोपियां और लुंगियां खरीदी। मुस्लिमों की तमाम मजलिस का हिस्सा बना, इस्लामी तकरीर सुनी उन्हें समझा और फिर दूसरों को भी समझाना शुरू कर दिया। पुजारी के बेटे को आत्मा ने फटकारा तो दुनियादारी के संस्कारों ने तसल्ली दी कि ईश्वर एक है सिर्फ पूजापाठ का तरीका बदला है।
गृहस्थी की गाड़ी चलने लगी और चलता रहा साथसाथ कसूरी का फिल्मी दुनिया का संघर्ष। गुल्लक सेठ मन ही मन कुढ़ते रहते थे उनका मास्टर स्ट्रोक बेकार चला गया था। वे कसूरी को अब भी गैर मुसलमान मानते थे और उन्हें इस हिन्दू पुजारी के बेटे पर हर्गिज यकीन था। उन्होंने अपनी खोली, रूपया पैसा और होटल रेशम के नाम कर दिया था। गुल्लक सेठ ने जमाना देखा था इश्क का भूत चढ़ते देखा था, हुस्न का रंग उतरते देखा था। उन्होंने एक कदम और आगे जाकर अपनी जायदाद का ऐसा इंतजाम किया कि रेशम और कसूरी जायदाद से गुजर बसर तो कर सकते थे, मगर रेशम जायदाद को बेच नहीं सकती थी ये हक उन्होंने रेशम के होने वाले बच्चों के नाम मुल्तवी कर दिया था बालिग होने तक।
गालिबन कल को कसूरी रेशम को कितना भी आइने में उतार ले तो भी वो प्रापर्टी बेच सके। रेशम भी मानती थी कि आखिर उसका शौहर जन्मजात तो हिन्दू ही था और हिन्दुओं के बारे में उसे अपनी शंकाओं से निर्मूल होना अभी बाकी था। सम्बन्धों की रस्साकस्सी चलती रही पांच वर्षों के दरम्यान रेशम ने दो बच्चे पैदा किये वो भी लड़कियां। परिवार के खर्चे बढ़े तो जिन्दगी डांवाडोल होने लगी। सिर्फ शाम को खुलने वाला होटल अब दिन निकलते ही खुल जाता था और देर रातरात तक आबाद रहता था।
गुल्लक सेठ होटल पर तो होते थे मगर करते कुछ थे। उन्हें एक हिन्दू के बच्चों को पालनेपोसने के लिये पसीना बहाना हर्गिज गवारा था। उनके दिल में इस बात की टीस थी कि उनकी बेटी ने उनसे दगा किया और एक गैरमुस्लिम से शादी कर ली। इसीलिये वो अपनी नातिनों से मन ही मन चिढ़ते थे कि कल को बड़ी होकर ये लड़कियां भी किसी हिन्दू से शादी ब्याह करें तो। सो गुल्लक सेठ अपनी संपति की हिफाजत करते, काम कोई करते और अपनी मेहनत की कमाई पर एक हिन्दू के फिल्मी सपने उन्हें हर्गिज कबूल थे। शिरोमणि को परिवार चलाने के खर्चे कम पडे़ तो दिन में भी होटल खुला। इस तरह उसका सिनेमा को लेकर करने वाला संघर्ष धीरेधीरे खत्म हो गया। इन्हीं दिनों विश्वव्यापी मंदी ने हिन्दी फिल्मोद्योग को अपने लपेटे में लिया। बहुत से छोटे मझोले प्रोडक्शन हाउस बंद हो गये और बडे़बडे़ सितारों को भी काम मिलना मुश्किल हो गया। जब बडे़बडे़ सितारों को काम मिलने के लाले थे तो एकस्ट्रा कलाकारों की क्या बिसात थी। 
रंगबिरंगे आयोजन और प्रोडक्शन हाउस बंद हुये तो जोगेश्वरी की सड़कें सूनी हो गयीं। ये दोहरी मार कसूरी पर पड़ी। अव्वल तो उसका छिटपुट सिनेमा का रोजगार जाता रहा दूसरे जब स्ट्रगलर नहीं रहे तो होटल का धंधा भी बंदी की कगार पर पहंुच गया। ये बेहद कड़की के दिन थे, कसूरी और उसकी परिवार बैठकर रोटियां तोड़ रहे थे। ये मोहभंग का भी समय था क्योंकि परिवार की आमदनी घटती जा रही थी और खर्चे बढ़ते जा रहे थे। गुल्लक सेठ पत्ते नहीं खोल रहे थे जिस परिवार में रोज सालन की खशबू उड़ा करती थी वहां पर अब सूखी सब्जियों के भी लाले थे।
हारकर रेशम ने जैनब के प्रस्ताव पर उसके सिलाई कारखाने में काम करना कुबूल कर लिया। मंदी की मार ऐसे पड़ी कि पगार मिलने पर कसूरी के होटल के सब कारीगर चलते बने। कसूरी को कुछ खास नहीं आता था सिर्फ चाय और बड़ा पाव बनाना आता था। सो गली के अन्दर का होटल बन्द करके सड़क पर एक ठेले पर रोजगार शुरू करके जिन्दगी की जंग लड़ने लगा। समय पंख लगाकर उड़ता गया इधर आठ वर्षों में रेशम तीन बार गर्भवती हुई एक लड़के की उम्मीद से। मगर मंहगाई और गुल्लक सेठ के निर्देश पर अल्ट्रासाउण्ड के जरिये पता लगाकर रेशमा की अजन्मी बेटियों को मार दिया गया।
आठ वर्षों में चाय और बड़ा पाव बेचने वाले कसूरी की रंगत भी जाती रही और सपने भी। फिर इण्डस्ट्री की रौनक लौटी मगर कसूरी की रौनक तब तक जा चुकी थी। ये मायावी उद्योग या तो नये चेहरों पर दांव लगाता है या कामयाब और कसूरी तो नया था ना कामयाब। तीन गर्भपात के बात गुल्लक सेठ ने ये बात जान ली थी कि कोमोसोम्स एक्स वाई का मुआमला क्या है। ये बात उन्होंने रेशम को भी समझा दी थी कि जन्मेंअजन्मे पांच संतानों से अगर कसूरी लड़का नहीं पैदा कर सका तो अब कभी कसूरी के जरिये रेशम लड़के की मां नहीं बन सकती। रेशम को एक लड़के की मां बनना था। उसके भी सपने धराशायी हुये थे। फिल्मी हीरो के बजाय ठेले वाले की पत्नी बनकर वो बहुत आहत थी।
गुल्लक सेठ रेशम को मुसलसल उकसाते रहे और रेशम के क्रोधाग्नि में घी डालते रहे। इन घावों पर फैजन सहानभूति के मल्हम लगाता रहा वक्त बे वक्त। किशोरवस्था में कभी रेशम और फैजन एक दूसरे पर आकर्षित थे मगर बीच में कसूरी के जाने से सारी तासीर बदल गयी थी। वहीं किशोरावस्था का दबाछिपा इश्क बेकारी के इन दिनों में लड़के की उम्मीद से खादपानी पाकर खिल उठा। चाय और बडा पाव बेच रहे कसूरी को जब तक इसकी भनक लगी तब तक बहुत देर हो चुकी थी। उनके इश्क के चर्चे खूब उड़ रहे थे। इस चर्चे और फैजन को शह दे रहे थे गुल्लक सेठ।
इस बार जब रेशम हामला हुई तो फिर लिंग की जांच हुई सरकारी पाबन्दी के बावजूद लिंग जांच का ये गुनाह होता रहा। जो कि उम्मीद से उतर इस बार गर्भ में लड़का था। गुल्लक सेठ ने ये खबर सुनी तो बल्लियों उछल पडे़। फैजन और रेशम का, इश्क जिस तथाकथित भट्ठी में पक रहा था उसमें उन्होंने मानो पेट्रोल डाल दिया हो। उन्होंने रेशम से औलाद का जेनुइन वालिद पूछा तो उसने सर झुका लिया। गुल्लक सेठ की आंखे जुगनुओं की मानिंद चमक उठीं। उनका दिमाग बड़ी तेजी से कामकर रहा था उनके ही कुनबे का कश्मीरी खून जैनब और वो भी मुसलमान तुर्रा ये कि तलाकशुदा, बेऔलाद और कमाऊ और सबसे मुफीद बात ये कि उनकी बेटी के इश्क में था। गुल्लक सेठ ने फैजन से बात की। फैजन ने अपनी गल्ती मानी तो मगर उसने कहीं कहीं अपना शक गुल्लक सेठ से जाहिर कर दिया कि शायद ये औलाद कसूरी की ही हो। गुल्लक सेठ ने अपनी शेखी बघारी कि कैसे उनको एक्स और वाई का मामला मालूम है खुर्रम एक्स ही एक्स है इसलिये ये औलाद फैजन की है। फैजन निरूŸार हो गया।
गुल्लक सेठ ने कहा कि अगर वो रेशम से निकाह कर ले तो वो अपनी खोली, होटल, बैंकबैलेंस उन दोनों के नाम कर देंगे, वो अपनी वसीयत बदल देंगे और खुर्रम को धक्के देकर बाहर कर देंगे। फैजन ने पूछा और रेशम, क्या वो खुर्रम को तलाक देगी। गुल्लक सेठ ने काह ‘‘वो सब इंतजाम मैं कर लूंगा। वक्त के साथ सब अपनी चालेंपैंतरे चलते रहे। कुछ महीने बाद रेशम ने एक लड़के को जन्म दिया। इस दरम्यान कसूरी की लाख कोशिशों के बावजूद रेशम चुप ही रही उसने कोई आश्वासन दिया और फिर एक सुबह गुल्लक सेठ और फैजन की मौजूदगी में रेशम ने तीन तलाक कह कर कसूरी को जमीन संुघा दी। तब से कसूरी मौलाना और वकीलों के चक्कर लगा रहे हैं कि एक बार में तीन तलाक गैर कानूनी है लेकिन उन्हें कुछ खास सफलता नहीं मिली है। लोग उन्हें तसल्ली देते हैं कि रेशम का गैर मर्द से ताल्लुक और एक बारगी का तलाक गैर कानूनी भी है और सामाजिक रूप से भी गलत। इस चक्कर में महीनों बीत रहे हैं, कसूरी को दुकान, घर और रेशम और उनके बच्चों के जीवन से निकलवा दिया है गुल्लक सेठ ने। अफवाह है कि रेशम की इद्दत पूरी होने वाली है, अब वो निकाह करेगी फैजन से। गुल्लक सेठ जब तक कसूरी को शिरोमणि कहकर धमकते रहते हैं कि वो यूपी की टेª से गोरखपुर लौट जाये वरना वे उसे या तो जेल करवा देंगे या मरवा देंगे। कसूरी अब बेहद परेशान है क्योंकि उसके बच्चे भी उसको अब शिरोमणि अंकल कहकर पुकारते हैं।       
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