Saturday, July 27, 2024
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कुसुम पालीवाल की कविता – निष्पक्ष हो कर बोलो

स्त्री ने कभी नहीं चाहा
कि तुम
हमेशा उसके पक्ष में ही बोलो
या बात रखो उसके ही मन की
उसने बस
इतना ही चाहा, कि
जब भी बोलो
निष्पक्ष हो कर बोलो …
वो सहती रही
अनेक तरह के ज़ुल्म
ज़ुल्म सिर्फ़ चाकू या कुल्हाड़ी से ही नहीं होते
कभी -कभी शाब्दिक और व्यवहारिक ज़ुल्म
कुल्हाड़ी से ज़्यादा घातक
और गहरा घाव देते हैं ….
घाव जो सीधे मन पर करता है प्रहार
एक ऐसा गहरा प्रहार , जो
हाथ -पैरों और पूरे अस्तित्व को
कर देता है जड़
एक ही जगह पर ..
बिना चाकू और कुल्हाड़ी के
कर बैठता है वो अनजाने ही इस कार्य को
या शायद जानबूझकर
किसी  भी स्त्री की हत्या …..
मर कर भी स्त्री
समझ नहीं पाती वो
कि उसे किस बात पर मारा गया है
उसको किस बात पर
प्रताड़ित किया गया है …
पूछती है प्रश्न वो आज विधाता से
क्या साँसों पर सिर्फ़ पुरुष का अधिकार है
या आज के समय में फिर
स्त्री को देनी पड़ेगी
अपने मन की आहुति …
ये कल्पना रूपी पंख
जो तुमने बाँटें है समस्त प्राणियों में
क्या वो पुरुष जाति के लिए ही थे
या फिर स्त्रियों को तुमने
कुतरे , छिछले, कुचले पंखों के साथ भेजा था ….
क्यों  डराता है पुरुष
अपने दंभ भरे भावनात्मक कुंठित व्यवहार से
या फिर वो नाटक करता है
डराने का एक स्त्री को ….
तुम तो विधाता हो
जवाब दो
लेकिन ! तुम क्या जानो
एक स्त्री मन की परिभाषा को
स्त्री आज असंतुष्ट है तुमसे
बेशक तुमने
रूप लिया होगा अर्धनारीश्वर का ….
नारी जिसने जन्म दिया तुमको
और नाम दिया राम – कृष्ण का
तुमने भी क्या किया
दुख ही दिया स्त्री जाति को
वो फिर दुख झेलती
माँ देवकी हो या हो माता सुमित्रा
द्रौपदी हो या हो सीता….
अब वो विधि का विधान था
या जनता -समाज की ख़ातिर था
ये कह कर पीछा मत छुड़ाना तुम हमसे
आज बहुत प्रश्न हैं स्त्री मन के
जो करने हैं तुमसे
क्योंकि तुम भी तो पुरुष ही हो …..
सुनें..!
पहले तो एक स्त्री
प्रश्न करने से कतराती है
कतराने की मंशा का अर्थ जान लो , कि
उसका उसमें डर बिल्कुल नहीं है
ये समझो कि वो बात बढ़ाना नहीं चाहती ….
एक स्त्री जब प्रश्न करने पर आती है
तो फिर पीछे नहीं मुड़ना चाहती
शायद वही प्रश्न बन जाते हैं
एक पुरुष के गले की फाँस …
और ये ही पुरुष चुप कराने की मंशा में
कर बैठते हैं उस पर
शाब्दिक या फिर व्यवहारिक अत्याचार
क्योंकि  पुरुष
ये कभी भूलना ही नहीं चाहते हैं
कि वो पुरुष हैं…
ओ पुरुष दल
जिस दिन तुम
एक स्त्री की तरह सोचना शुरु कर दोगे
उस दिन ही
छूट जायेगा तुमसे  ये अत्याचारी व्यवहार ….
किसी को मन से मार कर
तुम अपनी जीत
कभी हासिल कर नहीं सकते
जो मन को जीतना जाने
जीत उसी की होती है …
मन जीतने का पर्याय
पैसा, उपहार या शारीरिक बंधन
कभी नहीं हो सकता
एक स्त्री मन
पुरुष के भीतर
निर्मल -कोमल मन और पवित्रता चाहता है
सहनशील और व्यवहारिक मन चाहता है….
एक स्त्री मन किसी भी व्यवहार में
सिर्फ प्रेम  की उम्मीद करता है
बस वो एक निष्पक्ष व्यवहार चाहता है
फिर वो रिश्ता कोई भी
क्यों  न  हो ….॥
कुसुम पालीवाल
कुसुम पालीवाल
शिक्षा - एम. ए. प्रकाशित पुस्तकें— चार काव्य संग्रह, दो कहानी संग्रह. संपर्क - [email protected]
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