एक जैसे ढर्रे पर चलता जीवन, ठहरा हुआ लगने लगता है। ऐसी ही ठहरी-सी जीवनचर्या की निरंतरता से बाहर निकलने में हमारा सामाजिक तानाबाना, महत्वपूर्ण भुमिका निभाता है। गाहे-बगाहे आने वाले उत्सव, इस ठहरे, रूके-से जीवन में चटख रंग भर देते हैं। यही शोख रंग जीवन जीने का सबब बनते हैं। 
पारिवारिक उत्सव हों या सामाजिक समारोह, एक खांचे में ढ़ले, नापतौल वाले दिन-रात की सीमाओं को तोड़कर थोड़ा उत्साह, थोड़ी उमंग ले आते हैं। रिश्तों में घुले कुछ खट्टे, कुछ मीठे स्वाद भोजन और बातचीत के साथ जीभ से होते हुए मन में उतरने लगते हैं। अलग-अलग रंग और स्वाद, अतिआधुनिक जीवन में इंसान को रोबोट बनने से बचा लेते हैं।
आयोजनों का उत्साह और बहुरंगी पहनावों में सजे थोड़े परिचित, कुछ अपरिचित लोगों को देखना, उनसे मिलना अच्छा लगता है। कुछ जानी कुछ अनजानी बातें करना, सुनना, जानना कभी सुख देता है तो कभी अपनी समझ का आकार बढ़ने पर चौंकाता भी है। ऐसी मुलाक़ातों में होने वाले मेल-मिलाप, हंसी-मजाक और शिकवे-शिकायतें ही जीवन का हासिल हैं। यही सामाजिक जीवन की नींव हैं। 
खुदको तकलीफ देने का कोई जरिया अपने नजदीक ना आने दें। आप खुद भी अपने लिए सजाएं मुकर्रर मत कीजिए। खुद को खुश रखने, जीवंत बने रहने के सारे प्रयास करते रहिए। अकेलेपन से मन के उकताने का इंतज़ार ना करें। बोरियत इतनी ना हो जाए कि मर्ज ही बन जाए! खुद को लगातार अपने-आप से बाहर निकालिए। पारिवारिक उत्सवों, आयोजनों में भागीदारी बढ़ाते रहिए जिससे मन में उर्जा बनी रहे। जीवन जीने की चाह बनी रहे। मन उत्सवमयी बनाए रखिए जिससे हर पल खुशनुमा रहे।
एक मंत्र मुट्ठी में बाँध लीजिए – ‘यह जीवन मेरा है और इसे सुंदरतम बनाने की जिम्मेदारी सिर्फ मेरी है।’ इस मंत्र को हर समय याद रखें। कुछ ही समय में ऐसा होगा कि आपके बदले व्यवहार से आसपास का माहौल भी बदलने लगेगा। सकारात्मकता अपना दायरा विस्तृत करने लगेगी। आप महसूस करेंगे कि जीवन सुंदर बन रहा है।

8 टिप्पणी

  1. लेखिका वंदना यादव जी की बात से पूर्ण रूप से सहमत हूँ।
    एक जैसे ढर्रे पर चलता जीवन, ठहरा हुआ लगने लगता है यह ठीक इसी प्रकार होता जैसे- लंबे समय से तरह ठहरा हुआ पानी सड़ने लगता है । सो हमारे जीवन को भी सुंदरतम बनाने की जिम्मेदारी हमारी हुई।
    सुन्दर प्रेरक लेख के लिए
    लेखिका वंदना यादव जी को बधाई

  2. वंदना जी ने बहुत ही सहज ढंग से जीवन के असहज पहलुओं को न केवल स्पर्श किया है अपितु ऐसा समाधान भी दे दिया है, जो सराहनीय है l विषय को बहुत ही संजीदगी से आपने निखारा है l

    • कुसुम जी इस कॉलम का उद्देश्य भी यही है कि असहज स्थितियों पर हम सहजता के साथ कैसे सफलता पाएं।
      अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करवाने के लिए आपका आभार।

  3. किस्मत बदलने का इंतजार नहीं किया
    कर्म के तूफान से खोल दिया
    सफलता का दरवाजा
    अपनी मेहनत से सफलता पाई है
    मंजिल पाने के लिए की है मेहनत
    अपने कारवां को अपनी मंजिल बनाया
    सफल होकर बदला है खुद का वक्त
    बहुत-बहुत मुबारक हो । सुंदर लेख के लिए।
    लेखिका वंदना यादव जी बहुत-बहुत बधाई हो।

  4. खुदको तकलीफ देने का कोई जरिया अपने नजदीक ना आने दें। आप खुद भी अपने लिए सजाएं मुकर्रर मत कीजिए। खुद को खुश रखने, जीवंत बने रहने के सारे प्रयास करते रहिए। अकेलेपन से मन के उकताने का इंतज़ार ना करें। बोरियत इतनी ना हो जाए कि मर्ज ही बन जाए! खुद को लगातार अपने-आप से बाहर निकालिए। पारिवारिक उत्सवों, आयोजनों में भागीदारी बढ़ाते रहिए जिससे मन में उर्जा बनी रहे। जीवन जीने की चाह बनी रहे। मन उत्सवमयी बनाए रखिए जिससे हर पल खुशनुमा रहे। । सुंदर लेख के लिए बहुत-बहुत बधाई हो l

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