घाना का अश्वेत हिन्दू परिवार

आज के हालात हैरान करने वाले हैं। भारत में हिन्दू धर्म वायरस कहलाता है, बीमारी कहलाता है और हिन्दू होना गंदी बात बन जाती है। वहीं दूर देशों में जूलिया रॉबर्ट्स से लेकर स्वामी घनानन्द तक हिन्दू धर्म को अपना रहे हैं। लंदन और उसके आसपास के इलाकों में श्वेत यूरोपीय लोग भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन होकर नृत्य करते दिखाई देते हैं। शायद वो दिन दूर नहीं जब भारत से लोग आकरा नाम के एक नये धाम पर तीर्थयात्रा के लिये निकला करेंगे।

हज़रत इब्राहिम को तीन धर्मों का जनक माना जाता है – यहूदी, ईसाई एवं इस्लाम। जबकि ईसाई एवं इस्लाम धर्म-परिवर्तन में गहरा विश्वास करते हैं और इसी माध्यम से इन दो धर्मों ने अपनी संख्या में बढ़ोतरी की है, यहूदी धर्म इस मामले में अलग सोच रखता है। यहूदी अन्य मज़हब के लोगों को धर्म परिवर्तन करके अपने मज़हब से नहीं जोड़ते हैं।
कुछ इसी ही तरह हिन्दू धर्म भी दूसरे धर्म के लोगों धर्म-परिवर्तन करवा के हिन्दू बनाने में विश्वास नहीं रखता था। हाँ स्वामी दयानंद सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से शुद्धि का तरीका ज़रूर ईजाद किया कि यदि कोई व्यक्ति हिन्दू धर्म छोड़ कर किसी अन्य धर्म को अपना लेता है और अगर वह अपने नये धर्म से ख़ुश नहीं है तो उस व्यक्ति को शुद्धि करवा के दोबारा हिन्दू बनाया जा सकता है।
भारत में, जब से विपक्षी दलों ने अपना गठबंधन बनाया है, सनातन धर्म और हिन्दू ग्रन्थ उनकी आलोचना का शिकार हो रहे हैं। कभी तमिलनाडु से निंदा का बाण छोड़ा जाता है तो कभी मौर्य वंशज उत्तर प्रदेश से गोस्वामी तुलसीदास और उनके महान ग्रन्थ रामचरित मानस पर सवालिया निशान लगा रहे हैं। बिहार और बंगाल भी पीछे रहने को तैयार नहीं हैं। बस एक ही शर्त है कि गरियाना हिन्दुओं को है तो गरियाने के एक्स्पर्ट आपको तत्काल मिल जाएंगे।
राम मंदिर के निर्माण और उसकी प्राण प्रतिष्ठा को लेकर जो विवाद खड़े हुए हैं वे अलग देश में तनाव उत्पन्न कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि शुभ मुहूरत केवल 84 सेकण्ड तक रहने वाला है – 12 बज कर 29 मिनट और आठ सेकण्ड 12 बज कर तीस मिनट बत्तीस सेकण्ड के बीच। इसी बीच प्राण प्रतिष्ठा होना आवश्यक है।
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, त्रिणमूल कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और कुछ शंकराचार्य भी भगवान राम को भारतीय जनता पार्टी का कैदी मान कर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम में शामिल होने से इन्कार कर रहे हैं। मैं वामपंथी दलों का नाम इसलिये नहीं ले रहा क्योंकि अब भारतीय राजनीति में उनका कोई महत्व बचा नहीं है।
स्वामी घनानन्द सरस्वती
जब भारत में यह सब हो रहा है तो यह जान कर हैरानी सी होती है कि हिन्दू धर्म का सूर्य अफ़्रीकी देशों में उदय होता दिखाई दे रहा है। विश्व के एकमात्र देश नेपाल में हिन्दू धर्म ख़तरे में दिखाई देने लगा है और अफ़्रीका के देश घाना में वहां के लोकल अश्वेत लोग धर्म परिवर्तन करके हिन्दू धर्म को अपना रहे हैं। इस पुण्य कार्य की शुरूआत स्वामी घनानन्द ने वहां हिन्दू मठ स्थापित करके की।
स्वामी घनानन्द घाना, अफ़्रीका में हिन्दू मठ के प्रणेता हैं। वे मूल अफ्रीकी हैं। उन्हें 1975 में भारत के स्वर्गीय स्वामी कृष्णानंद द्वारा स्वामी के रूप में दीक्षित किया गया था, और आकरा, घाना में अफ्रीका के हिंदू मठ के प्रमुख थे। स्वामी कृष्णानंद सरस्वती (25 अप्रैल 1922 – 23 नवंबर 2001) शिवानंद सरस्वती के शिष्य थे और 1958 से 2001 तक ऋषिकेश, भारत में डिवाइन लाइफ सोसाइटी के महासचिव के रूप में कार्य किया। 40 से अधिक ग्रंथों के लेखक, और व्यापक रूप से व्याख्यान, योग, धर्म और तत्वमीमांसा, कृष्णानंद एक विपुल धर्मशास्त्री, संत, योगी और दार्शनिक थे।
स्वामी घनानन्द स्वयं एक ईसाई माता-पिता की संतान थे। बीबीसी से एक वार्ता में उन्होंने कहा था कि वे “बहुत कम उम्र से ही मैं ब्रह्मांड के रहस्यों के बारे में सोचते थे और धार्मिक ग्रंथों में उत्तर खोजने की कोशिश करता थे। लेकिन मैं असफल रहे।” अंततः उन्हें हिन्दू धर्म में बहुत से सवालों के उत्तर मिले। उनकी खोज उन्हें एक यात्रा पर ले गई जो उन्हें भारत के उत्तराखंड में ऋषिकेश और अंत में आकरा में मठ में ले गई। उनका कहना है कि ऋषिकेश में उनके गुरु ने उन्हें आकरा में मठ खोलने के लिए प्रेरित किया था।
स्वामी घनानन्द ने यह स्पष्ट किया कि उनका लक्ष्य लोगों को हिंदू धर्म में परिवर्तित करना नहीं था, बल्कि केवल सत्य की खोज करने वालों की सहायता करना था। मठ में इस्लाम सहित सभी धर्मों में जन्मे लोग एक साथ आते हैं। अपनी आस्था के कारण उन्हें स्वयं स्थानीय वर्गों के विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन मठ में आने वालों की संख्या बढ़ती चली गई।
घाना में हिन्दू धार्मिक अनुष्ठान
वर्ष 2020 में किये गये एक शोध के अनुसार 2050 तक विश्व में हिन्दू धर्म को मानने वालों की आबादी कुल आबादी का करीब 15 प्रतिशत होगी। अकेले भारत में ही हिन्दुओं की आबादी सवा अरब से कहीं अधिक होगी। वर्तमान में भी भारत में यह प्रतिशत के हिसाब से 79 प्रतिशत से अधिक है।
आबादी के हिसाब से नेपाल दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जिसमें हिन्दू बहुसंख्यक हैं। ऐसा माना जाता है कि इस समय वहां 3.8 करोड़ से अधिक हिन्दू रह रहे हैं। 2006 में नेपाल को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर दिया गया था मगर राजनीतिक कारणों से धर्म परिवर्तन के बहुत से मामले सामने आए हैं और नेपाल को भी भारत की तर्ज़ पर सेक्युलर देश में परिवर्तित कर दिया गया है।
इस घटना से एक सवाल मन में अवश्य उठता है कि किसी भी अन्य धर्म का पालन करने वाला अपने आप में कोई हीन भावना महसूस नहीं करता। ईसाई, मुसलमान, सिख, बौद्ध, पारसी सभी सहज ढंग से अपना धर्मा बताते हैं और उन्हें अपने-अपने पूजा स्थल पर जाने में कोई झिझक महसूस नहीं होती। वे कभी नहीं कहते कि धर्म निजी मामला है और अपने धर्म का सार्वजनिक प्रदर्शन में कोई अड़चन महसूस नहीं करते। यह समस्या केवल हिन्दुओं में ही पाई जाती है।
आबादी के हिसाब से तीसरे, चौथे और पाँचवें देश हैं – बांग्लादेश, पाकिस्तान और अमरीका कहे जाते हैं। यह भी देखा जा रहा है कि बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या कम हो रही है तो अमरीका में संख्या बढ़ रही है। 2050 तक अमरीका में 4.78 करोड़ हिन्दू होंगे।
ऐसे में घाना की राजधानी आकरा में अश्वेत लोगों के हिन्दू धर्म अपनाने पर एक सकारात्मक सी भावना तो महसूस होती ही है। वहां स्वामी घनानंद के अतिरिक्त इस्कॉन (हरे कृष्ण) समुदाय भी सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। आकरा में ही पाँच हिन्दू मंदिरों का निर्माण हो चुका है। इन मंदिरों की अदभुत बात ये है कि यहाँ शिव-पार्वती, गणेश, काली, राम और कृष्ण के साथ-साथ ईसा मसीह की तस्वीर भी रखी हुई है।
पूछने पर स्वामी घनानंद इसका दार्शनिक जवाब देते हैं, “हिंदू देवी देवताओं के साथ ईसा मसीह और मरियम की तस्वीर रखने में बुराई क्या है? समुद्र में जाओ तो वहाँ रेखाएँ खिंची नहीं मिलतीं। ये इंसानों ने ही बनाए हैं अटलांटिक महासागर और हिंद महासागर. ठीक वैसे ही ईश्वर एक है पर हम उसे अलग-अलग रूपों में पूजते हैं.” वैसे यह भी सच है कि ऐसी विशाल हृदय सोच एक हिन्दू ही रख सकता है।
आज के हालात हैरान करने वाले हैं। भारत में हिन्दू धर्म वायरस कहलाता है, बीमारी कहलाता है और हिन्दू होना गंदी बात बन जाती है। वहीं दूर देशों में जूलिया रॉबर्ट्स से लेकर स्वामी घनानन्द तक हिन्दू धर्म को अपना रहे हैं। लंदन और उसके आसपास के इलाकों में श्वेत यूरोपीय लोग भगवान कृष्ण की भक्ति में लीन होकर नृत्य करते दिखाई देते हैं। शायद वो दिन दूर नहीं जब भारत से लोग आकरा नाम के एक नये धाम पर तीर्थयात्रा के लिये निकला करेंगे।
लेखक वरिष्ठ साहित्यकार, कथा यूके के महासचिव और पुरवाई के संपादक हैं. लंदन में रहते हैं.

43 टिप्पणी

  1. घर का जोगी जोगड़ा आन गांव के सिद्ध बस यही सब है हिंदू धर्म !? आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी के संपादकीय में । देश विदेश में यह हिंदू धर्म और भारत ही है जो लोकतांत्रिक तरीके से अपनी पूर्ण मेजोरिटी होते हुए भी अपना हक न्यायालय या संवैधानिक तरीके से मांग रहा है।
    एक और व्यवहारिक और समीचीन संदर्भ को रेखांकित कर वैश्विक पटल पर उकेरता संपादकीय।
    बधाई हो जी।

  2. अत्यंत महत्वपूर्ण संपादकीय!!! यह स्थिति तो दुःखदायी है… मेरे मन में भी यह प्रश्न कई बार आया है… कि यह हमारा देश है किंतु हमें अपनी सुरक्षा हेतु आंदोलन करना पड़ता है…. ऐसा क्यों…! वर्तमान स्थिति यह है कि समस्त धर्म, शास्त्र, पुराण, नीति नियम से ऊर्ध्व राजनीति मुखर है…..। किंतु हमें इससे मुक्ति मिलेगी….
    कदाचित् यह संपादकीय पाठकों के ज्ञान चक्षु को आलोकित करे… धन्यवाद सर जी

    • अनिमा आप निरंतर पुरवाई संपादकीय पर। सार्थक एवं सार्गर्भित टिप्पणी करती हैं। हार्दिक आभार।

  3. इस विषय पर कलम चलाना आवश्यक था। अधिकांश साहित्यकार बचते है धर्म संबधी विषयो पर लेख लिखने से।
    उन्हे डर होता है कही वे अंधविश्वासी न समझे जाए।
    भारतीय संस्कृति व सनातन परम्परा पुनः धीरे धीरे संपूर्ण विश्व मे फैल रही है और भारत मे ही पश्चिमी सभ्यता से जूझ रही है। परंतु वर्तमान समय शुभ संकेत लेकर आया है। हिंदू धर्म पुष्ट होगा।

  4. आपने जो बातें आपने संपादकीय में लिखी हैं, वे निश्चित ही आपकी संवेदनशीलता की परिचायक हैं। दरअसल सनातन धर्म करुणा, दया, सहिषुणता की बात करता है। इस सनातन धर्म में समतामूलक विचारधारा वाले ऋषि मुनि संत हुए। भारत ऐसे ही हटकर मुल्क नहीं। इसके वावजूद तानशाही और अति किसी से भी जुड़ जाती है तो परिणाम सारभौमिक नहीं आते। आज भारत की दशा पर चिंता होती है। आदि गुरु शंकराचार्य के अनुयायियों ने जो हट ठान रखी है, वह भी उनके संतत्व को नहीं संसारी मनुषत्व को दर्शा रही है।

  5. तेजेन्द्र भाई: शशी थरूर ने अपनी पुस्तक Inglorious Empire – What the British did to India में बताया है कि भारत में दो सौ साल तक रहते हुये British ने Divide and Rule की पॉलिसी को अपनाते हुये भारतियों के बीच में जो दरार पैदा करदी थी, उस से भारतीय तो बुरी तरह से बंट गये लेकिन उन्हें राज करने में बहुत सहूलियत हो गई। 1947 में Transfer of power के बाद भी हमारे दो बड़े नेता नेहरू और गान्धी तो केवल नाम के ही हिन्दू थे। 1947 में कोई भी ऐसा नेता सामने नहीं आया जिस ने हिन्दुओं को इकठ्ठा करने की कोशीश की हो। उल्टा स्वतंत्र भारत में स्कूलों में मुस्लिम हिस्ट्री पढ़ाने का दौर शुरु हो गया। अपने ही देश में एक so called हिन्दू प्रधान मन्त्री ने भारत के राष्ट्रपति को सोमनाथ मन्दिर के उदघाटन पर जाने की भी रोक लगानी चाही। एक सच्चे सैनानी और देशभक्त राष्ट्रपति ने कहा कि मैं सोमनाथ एक राष्ट्रपति बनकर नहीं बल्कि एक हिन्दू के नाते जाऊंगा और वो वहाँ गये भी। यही पॉलिसि 1947 से 2014 तक नेहरू और उसके परिवार ने अपनाई और हिन्दू आपस में इतना बंट गया कि उसे सिवाय ‘मैं’ के और ‘मेरे’ के अपने सनातन धर्म की याद भी भूल गई। देश का चरित्र बनाया जाता है और इसके लिये सही नेता होना चाहिये। हमारे यहाँ तो अब तक तुष्टिकरण और वोटें समेटने का दौर चलता रहा। अभी तक मोदी के सिवा ढ़ँग का कोई नेता हुआ भी नहीं।
    राम मन्दिर को ले कर जो विपक्ष के ब्यान आरहे हैं वो इस बात की गवाही हैं कि हिन्दु कितना गिर चुका है। अपनी गद्दी को कायम रखने के लिये पॉलिटिशियन के साथ साथ आज शंक्राचार्य भी बिक चुके हैं। आजके यह शंक्राचार्य उन आदि शंक्राचार्य की देन हैं जिन्होने हिन्दु धर्म को बढ़ाने के लिये इन चारों की स्थापना की थी। अब जब बाढ़ ही खेत को खाने लगे और अपने ही घर में घर के रखवाले ऐसी हरकतें करेने लगें तो फिर अगर भारत में हिन्दू सनातन धर्म को वायरस, बीमारी या गंदगी कहा जाये तो कोई ग़लत नहीं कहा।
    कुछ तो हिन्दू धर्म में अच्छाई होगी जो दुनिया के लोग इस ओर खिंचे आरहे हैं। सारी दुनिया में जगह जगह हिन्दू विचारों को voluntarily क्यों अपनाया जारहा है, इसका की तो कोई रहस्य होगा। समय आगया है। अपने को पहचानो। गर्व से कहो कि हम हिन्दू हैं। यदि आप स्वयं अपनी respect नहीं करेंगे तो फिर दूसरा क्यों करेगा? Think about it.

    • विजय भाई आप तो स्वयं कनाडा में देखते महसूस करते होंगे। इस विस्तृत टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार।

  6. आदरणीय संपादक महोदय,
    आज के अत्यंत सामयिक संपादकीय के लिए बधाइयां
    भारत में पुरानी कहावत है ‘घर का जोगी झगड़ा गांव का सिद्ध’
    यही बात हमारे हिंदू धर्म पर सटीक बैठती है।जब यह धर्म विदेशी धरती पर भी फैल जाएगा तब भारत में भीआदरणीय हो जाएगा । सबसे दुखद बात तो यह है कि हमारी सनातन और प्राकृतिक जीवन पद्धति को ‘धर्म ‘का नाम देकर कलुषित किया गया है वास्तव में यह मात्र जीवन पद्धति है। जब यह विश्व में सबसे अधिक प्रसारित जीवन पद्धति होगी,तभी पृथ्वी पर मानव जीवन स्वस्थ, संतुलित और सुखी होगा ऐसा मेरा मानना है।
    सनातन पर सुंदर संपादकीय के लिए साधुवाद।

  7. नमस्कार
    सम्पादकीय ,धर्म आस्था के विश्व में बदलते हुए बौद्धिक चिंतन के बिंदुओं को रेखांकित कर रही है।
    भारत में भ्रम की स्थितियां निर्मित की गईं अतः विरोधाभास नज़र आ रहा है और युवाओं को सनातन संस्कृति के प्रति जागरूक करने के लिए धर्म को सही ढंग से परिभाषित किया जा रहा है।ये ही सार तत्व सम्पादकीय में भी है।साधुवाद
    Dr Prabha mishra

  8. संयोग ऐसा रहा कि आज आपका संपादकीय पढ़ा और एक दिन पहले “गर्व से कहो हम हिन्दू हैं” का नारा देने वाले स्वामी विवेकानंद की किताब “letters of swami Vivekananda” पढ़ी थी l ये किताब उनके द्वारा उनकी संस्था के श्री हरिदास बिहारी दास देसाई, श्री ब्रह्मानंद,बहन निवेदिता को लिखे गए पत्र हैं l यह किताब एक बानगी है उन संघर्षों की जो विवेकानंद जी को अपने जीवन काल में करने पड़े l आम आदमी ने तो उन्हें सहयोग दिया पर सबसे ज्यादा विरोध मठों और धनी, शक्तिशाली वर्ग ने किया l आज शंकराचार्यों की हठ कहीं ना कहीं उसे विरोध की अगली कड़ी नज़र आती है l ये क्षुद्र अहंकार सनातन परंपरा के मूल सिद्धांतों के ही विरुद्ध हैं l
    दूसरा मुद्दा जो आपने उठाया उससे भी सहमत हूँ कि साहित्य ने हमारे नायकों में अवगुण ढूँढने का काम किया l ऐसी किताबों को आलोचक हाथों हाथ लेते हैं l तो लेखक भी दोहरे चरित्र के हो गए l घर में राम किताब में वाम l जबकि “अवतार” शब्द की अवधारणा में ही निहित है कि धरती पर आए ईश्वर भी जन्म लेंगे तो देश, काल, समय के अनुसार ही आचरण करेंगे l हमने राम कथा को घर में बांचना बंद किया… हमारे परिवार टूटने लगे l नई पीढ़ी कोई तो नायक बनाएगी ही, राम कृष्ण नहीं हैरी पॉटर को बनाएगी, और मूल्यहीनता के आंतरिक खालीपन से जूझेगी l युवाओं में बढ़ते अवसाद और आत्महत्याओं के आँकड़े किसी से छिपे नहीं हैं l दुखद है ये हमने ही किया है l
    किसी भी धर्म के नाम पर दूसरों के शोषण और अत्याचार से कोई भी संवेदनशील व्यक्ति सहमत नहीं हो सकता, लेकिन खुद में हीन भावना ले आना भी उचित नहीं l आकरा के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा l कितना अच्छा हो हम गर्व और सम्मान के साथ अपने धर्म का पालन करते हुए, सभी धर्मों के बारे में जाने, पढ़ें, जो अच्छा लगे उसे ग्रहण करे l घनानंद के शब्दों में समुद्र में कोई ऐसी रेखा नहीं है l असली धर्मनिरपेक्षता यही तो है l
    विचार शृंखला को परिमार्जित करते इस सुंदर संपादकीय के लिए बधाई सर

    • वंदना जी, आपने संपादकीय को गहराई से पढ़ते हुए स्वामी विवेकानंद से जोड़ कर देखा है। आपकी टिप्पणी न केवल सार्गर्भित है बल्कि संपादकीय के दृष्टिकोण की व्याख्या भी करती है। हार्दिक आभार।

  9. वंदना जी, आपने संपादकीय को गहराई से पढ़ते हुए स्वामी विवेकानंद से जोड़ कर देखा है। आपकी टिप्पणी न केवल सार्गर्भित है बल्कि संपादकीय के दृष्टिकोण की व्याख्या भी करती है। हार्दिक आभार।

  10. प्रिय भाई तेजेंद्र जी,
    आपका पूरा संपादकीय पढ़ गया। बड़ा ही अद्भुत, भावपूर्ण और विचारोत्तेजक संपादकीय है यह। अंदर से झिंझोड़ने वाला। साथ ही, बिना किसी पूर्वाग्रह के हिंदू अस्मिता और हिंदू धर्म की समूची विकास-यात्रा पर फिर से विचार करने के लिए ललकारता हुआ। बहुत सी बातें खुद मेरे लिए नई थीं और विस्मयकारी भी, खासकर घनानंद जी के अद्भुत सामंजस्यपूर्ण व्यक्तित्व और‌ उनके कामों से जुड़ी जानकारी। इसके लिए आपका शुक्रगुजार हूं।

    अंत में इस सुंदर और‌ सारगर्भित संपादकीय के लिए आपका और ‘पुरवाई’ पत्रिका का साधुवाद, जिसे पढ़ते हुए बार-बार मुझे विवेकानंद याद आ रहे थे, और अब भी याद आ रहे हैं!

    मेरा बहुत-बहुत स्नेह,
    प्रकाश मनु

    • भाई प्रकाश मनु जी, मेरा प्रयास रहता है कि हर बार पाठकों को कुछ नया दूं। आपको संपादकीय ने भीतर तक छुआ, यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है। हार्दिक आभार।

  11. Your Editorial of today gives us important and heartwarming information about an African group converting to Hinduism and professing it openly.
    Here you also bring forth a peculiar feature of some Indian Hindus.
    We are with you when you regret that some Hindus feel self- conscious and even apologetic about professing they are Hindus while most people belonging to other religions profess their religion openly and proudly.
    Certainly your Editorial will make them rethink and change their ways.
    Warm regards
    Deepak Sharma

  12. सदैव ही सत्य को रेखांकित करता रहा है आपका सम्पादकीय।इस संक्रांति काल में जब भारत में हिन्दू सभ्यता अपने गौरव को पुनः प्राप्त करने की ओर अग्रसर है,हिन्दू जनमानस को झिंझोड़ने का कार्य करना ही होगा।वर्षों धर्म निरपेक्षता की अफीम मात्र हिंदुओं को ही सुंघाई गई वो भी इतनी मात्रा में कि उनको स्वयं को हिन्दू कहने में लज्जा आने लगी।आईना दिखाने वाले इस संपादकीय हेतु अंतर्मन से आभार।

  13. आकरा – घाना वहाँ पहले से ही बिहारी लोग अधिक गए हुए है, वे भी हिन्दू से ही सम्बन्धित है .. आपका लेख अच्छा लगा.. हिन्दू होना अचरज नहीं.. न ही हिन्दूऔ का फैलना आश्चर्यजनक..

    • आभार निर्मल जी। वैसे संपादकीय स्वामी घनानन्द जी के बारे में है और उनकी मुहिम के बारे में।

  14. दुनिया में हिंदू धर्म (सनातन) ही एकमात्र ऐसा धर्म है जो अपनी सहजता सरलता और लचीलापन के फलस्वरुप विभिन्न स्रोतों से बहती हुई नद-नदियों को अपने में विलीन कर एकाकार स्वरूप प्रदान करता है। यहां ना कोई जोर है ना जबरदस्ती है। फिर भी तथाकथित राजनीति की रोटी सेकने वाले और जाति-धर्म की दुकान चलाने वाले लोग इस पर प्रहार करते रहते हैं ताकि इसकी नींव डगमगा जाए। लेकिन इस सनातन की जड़े बड़ी मजबूत है और जैसा कि आपने बताया इसकी जड़े अब इतनी फैल चुकी है कि इन तथाकथित लोगों के लाख कोशिश करने के बावजूद भी यह टस से मस होने वाला नहीं है।

    • पुष्पा जी आपकी टिप्पणी वर्तमान स्थितियों का सही चित्र पेश करती है। हार्दिक आभार।

  15. सत्य है कि सनातन धर्म के लचीलेपन के कारण ऐसे मूर्ख लोग सनातन धर्म को गाली देने का अधिकार हासिल कर लेते हैं। हमें ऐसे लोगों के विरुद्ध अभियान छेड़ना होगा और सनातन संस्कृति की आलोचना करने वालों को मुँहतोड़ जवाब देना होगा, तभी ऐसी सोच खत्म होगी। आपने सही कहा कि विश्व में हिंदू धर्म तेजी से फैल रहा है, इसके पीछे सनातन धर्म की वैज्ञानिकता और सहजता है। मुझे लगता है कि बाइसवीं शताब्दी में विश्व सनातन धर्म में पूरी तरह से रंग जाएगा और निंदकों को इतिहास कूडे के ढेर में दफन कर देगा। उत्कृष्ट संपादकीय के लिए आपको बधाई।

    • आपकी टिप्पणी एक साहित्यिक आलोचक की टिप्पणी है। सत्य से ओतप्रोत! हार्दिक आभार।

  16. हमें शर्म आती है कि हम ही राम, राम जन्मभूमि, प्राण प्रतिष्ठा पर विवाद उठा रहे है और दूसरे धर्मों से ये बात उठे तो सोचा जा सकता है। यहाँ तो हिन्दुओं ने ही इसे भाजपा का चुनाव एजेंडा घोषित कर दिया है।
    इस संपादकीय को हर बार की तरक्ष प्रिंट मीडिया और फेसबुक पर भी डालिए। हमें शर्म आती है कि उनमें से कुछ हमारे मित्र भी हैं लेकिन मूर्ख बन कर शांत रहना सही है। तर्कपूर्ण एवं निष्पक्ष विचार आपको और श्रेष्ठ विचारक सिद्ध करती है।

  17. आदरणीय तेजेन्द्र जी!
    संपादकीय के शीर्षक को पढ़कर एक मुहावरा याद आया- “घर की मुर्गी दाल बराबर”
    पर सच पूछा जाए तो धर्म का इस तरह मजाक बनते हुए देखकर दुख ही होता है।
    ईश्वर मजाक की वस्तु बन कर ही रह गए हैं। कभी-कभी लगता है कि ईश्वर की लाठी में आवाज नहीं होती है। लोगों को लगता है कि भगवान सामने दिख तो रहा नहीं है और न ही वह अपना विरोध करने के लिए सामने आ रहा है। तो फिर डर कैसा? आप क्या सोच रहे हैं? आप क्या कह रहे हैं? आप क्या कर रहे हैं? इससे भगवान को कोई भी फर्क नहीं पड़ता। पर इन सब चीजों से आपको फर्क अवश्य ही पड़ेगा।
    वास्तव में हिंदू धर्म या सनातन धर्म कर्तव्य के प्रति प्रतिबद्ध है,कर्म के प्रति प्रतिबद्ध है।
    आप भगवान के मंदिर ना भी जाएंँ लेकिन अगर आप मानवतावादी सोच रखते हैं, परोपकार करते हैं, आपके मन में सबके प्रति दया और मानवीयता का भाव है, और इसी भाव से आप किसी जरूरतमंद की मदद करते हैं,सोचते हैं उसके हित के बारे में तब भी आप भगवान के भक्त हैं। और आप भगवान की सेवा करते हैं
    लोगों को समझ में आ रहा है कि वास्तव में हिंदू धर्म ही वास्तविक धर्म है।उसके महत्व को समझ रहे हैं ,मानवता को समझ रहे हैं इसलिए हिंदू धर्म के प्रति उनका आकर्षण स्वाभाविक है। जैसे गुलाब के फूलों की खुशबू पहले अपनी सुगंध से ही दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करती है। और फिर पास जाकर लोग उसके सौंदर्य से परिचित होते हैं। इसी तरह दुनिया के अन्य लोगों को युद्ध, लड़ाई- झगड़ा, नफरत द्वेष में व्याप्त वितृष्णा, की अशांति के मध्य अहिंसा, प्रेम, दया और करुणा के साथ ही शांति की अपेक्षा और महत्व समझ में आने लगा है वे उसके महत्व को समझने लगे हैं; इसीलिए उन्हें हिंदू धर्म अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। अन्य धर्म के मुकाबले हमारा धर्म अधिक सह्रदय हैं हम ऐसा नहीं कह रहे। हर धर्म का संस्थापक, चाहे वे ईसा मसीह हों या मोहम्मद साहब हों या साईं बाबा! उतने ही सह्रदय रहे जितने हमारे संत।
    पर कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ ऐसा है जो भ्रमित करता है और हमें जिस विषय पर जिस तरह से सोचना चाहिए उस पर उस तरह से हम सोच नहीं पाते। आजकल भारतीयों को पाश्चात्य संस्कृति पर अधिक विश्वास हो चला है और वे उनकी नकल करने पर तुले हुए हैं। इसलिए हमारे ही देश में हमारा धर्म अपमानित है।हमें हमारी भाषा हमारा पहनावा सब कुछ छोटा लगता है।
    पहले लोग जो ज्ञान प्राप्त करते थे उससे सोचते ,सीखते और समझते थे।सारे संस्कार उन्हें परिवार से मिल जाया करते थे। आजकल नैतिक शिक्षा किताबों में पढ़कर भी नहीं सीख पा रहे और परिवारों में भी संस्कार पिछड़ते जा रहे हैं।
    लोगों ने धर्म को राजनीतिक मुद्दा बना लिया है।
    जहाँ तक राम और अयोध्या की बात है। जो हो रहा है वह खुशी की बात है, होना भी चाहिए था। बाकी विवाद तो हर जगह है लेकिन राम-राम कहने में और जय श्री राम कहने में भावनात्मक अंतर आ जाता है जब आप राम-राम कहते हैं तो वह अभिवादन होता है, उसमें विनम्रता होती है, भक्ति भी समाहित होती है। पर वर्तमान के संदर्भ में जब जय श्री राम सुनाई देता है तो उसमें जोश होता है, उन्माद होता है, आक्रोश होता है और उसमें भक्ति दबी हुई सी महसूस होती है। राजनीतिक रूप से देखें तो रामायण का वह प्रसंग याद आता है जब जय श्री राम का नारा लगाते हुए राम जी की सेना लंका की ओर आक्रमण के लिए निकलती है।
    विरोध का मुद्दा बस यहीं पर महसूस होता है।
    हमारा व्यक्तिगत रूप से यह मानना है सर्व शक्तिमान एक ही है और जिसके प्रति आपकी श्रद्धा है आप उसे उस रूप में अपने इष्ट को देख सकते हैं।भाव के बिना भक्ति कभी नहीं होती जैसे सोचने से पेट नहीं भरता,भूख नहीं मरती।
    ईश्वर को आप जब भी, जहांँ से भी, जिस भी अवस्था में, कातर होकर पुकारेंगे वह अवश्य सुनेगा। बस आपकी सोच, कर्म और भाव पवित्र होना चाहिए।
    राजेश्वरानंद जी प्रसिद्ध रामकथा वाचक थे।कम लोग यह जानते होंगे कि वे मुसलमान थे पहले राजेश मोहम्मद रामायणी नाम से राम कथा करते थे। हमारे होशंगाबाद में कई बार आए इसी नाम से आए।बाद में राजेश्वरानंद हो गए। यूट्यूब पर हनुमान चालीसा की एक- एक पंक्ति का विवेचन उनके मुंँह से सुनकर आप आत्मविभोर हो जाएंँगे। एक-एक चौपाई पर घंटों बोलने का और एक-एक चौपाई की अनेक व्याख्या राम के प्रति आपको आश्वस्त करेगी,आप सुनकर अवश्य चकित रह जाएंँगे।
    यूट्यूब पर उनके सारे वीडियो आपको मिलेंगे आप सुन सकते हैं।
    हमारा धर्म भले ही यह प्रावधान नहीं रखता कि किसी का धर्म परिवर्तित करवाया जाए, लेकिन हमारा धर्म किसी इंसान को अस्वीकार भी नहीं करता। वह मानता है कि किसी भी धर्म से ऊपर इंसानियत का धर्म है। भगवान कृष्ण ने भी भगवत् गीता में धर्म की बेहतरीन व्याख्या की है। उसमें वह कहते हैं कि धर्म वास्तव में कर्तव्य ही है। और हर व्यक्ति का धर्म अलग-अलग होता है। वह आपके कर्म और आपकी सोच पर निर्भर करता है। समय के अनुसार, स्थिति के अनुसार वह परिवर्तित होता रहता है।
    कर्म की प्रायोरिटी के हिसाब से कर्तव्य या धर्म परिवर्तित हो जाते हैं। एक सामान्य सा उदाहरण है कि आप अपने ऑफिस के लिए लेट हो रहे हैं। आपको तत्काल ऑफिस पहुंँचना ही है। बॉस नाराज होगा, लेट होने पर हो सकता है आपको नौकरी से भी निकाल दे, किंतु आप उसकी परवाह नहीं करते जब आप देखते हैं कि कोई एक्सीडेंट हो गया है और घायल को अस्पताल पहुंँचाना ज्यादा जरूरी है और आप ऑफिस को छोड़कर पहले उसे अस्पताल पहुंँचाते हैं; तो यह वास्तव में आपका कर्तव्य था। यहांँ आपका धर्म परिवर्तित हो गया क्योंकि आपकी सोच परिवर्तित हुई।आप अपना कर्तव्य समझ ऑफिस-धर्म भूलकर सेवा धर्म में जुटे। आपने उस काम को ज्यादा महत्व दिया जो उस समय आपने जरूरी समझा।जो वास्तव में महत्वपूर्ण था।

    अपनी पढ़ी हुई एक पौराणिक कहानी याद आ रही है। इस कहानी को पढ़कर आप सब समझ पाएंँगे कि अगर हम मानवीय कर्तव्यों के प्रति सचेत रहते हैं। तब भी हम भगवान की भक्ति करते हैं और ऐसी भक्ति भगवान को अधिक पसंद आती है।
    एक ब्राह्मण परिवार था उनका इकलौता बेटा था वृद्धावस्था में प्राप्त पुत्र जब थोड़ा युवा हुआ उसके मन में तपस्या करने का ख्याल आया माता-पिता ने बहुत समझाया किंतु वह न माना और जंगल में जाकर तपस्या करने लगा। तपस्या करते हुए उसे कुछ वर्ष व्यतीत हो गए जब अपनी घोर तपस्या के बाद उसने आंँखें खोलीं ,उसी समय उस वृक्ष के ऊपर ( जिस वृक्ष के नीचे उसने तपस्या की थी) बैठे एक पक्षी ने उसके ऊपर बीट कर दी! उसे बड़ा क्रोध आया। क्रोध से उसने ऊपर की ओर देखा और वह पक्षी उसकी नजर पड़ते ही क्रोधाग्नि से भस्म हो गया। यह सोचकर उसे अपने तपस्या के फल पर अभिमान हो गया। वह उठकर भिक्षा मांँगने निकल जाता है।
    पहले ब्राह्मण लोग भिक्षा मांँग कर ही जीवन यापन करते थे।
    वह जब पहले ही घर में पहुंँचता है और भिक्षाम् देही की आवाज लगाता है तब गृहिणी की आवाज अंदर से आती है कि वह अभी आ रही है। कुछ समय इंतजार करें।
    किंतु उसे कुछ ज्यादा ही देर हो जाती है। जब वह भिक्षा लेकर बाहर आती है तो वह ब्राह्मण युवा ग्रहिणी को क्रोध से देखता है।
    यह देखकर ग्रहिणी मुस्कुराते हुए उस ब्राह्मण से कहती है-“ब्राह्मण देवता! इस तरह क्रोध से न देखें। मैं उस पक्षी की तरह नहीं हूंँ जो आपके क्रोध से देखने पर जलकर भस्म हो जाऊंँगी।”
    ब्राह्मण को बहुत आश्चर्य होता है कि एकांत जंगल में घटी उस घटना का पता इसे कैसे चल गया? जबकि मैं वहांँ से सीधा इसके ही घर पर आया हूंँ।
    वह ग्रहिणी से यह प्रश्न करना ही चाहता है कि उस घटना का पता उसे कैसे चला और वह पहले ही बोल उठती है कि, “आपको आश्चर्य हो रहा है ना कि मुझे यह सब कैसे पता चला?”उसके हाँ कहने पर वह एक गांँव का पता बताते हुए उसे उस गांँव में जाने के लिए कहती है। साथ ही यह भी कहती है कि ,”उस गांँव में अमुक- अमुक जगह पर एक मांँस बेचने वाले की दुकान है। उसकी दुकान पर जाना और उससे पूछना तो वह तुम्हें इसका रहस्य बताएगा।”
    आश्चर्य से भरा हुआ वह युवा ब्राह्मण वहांँ से चल देता है और उस बताए गए गांँव में पहुंँचता है।
    गृहिणी द्वारा बताए हुए स्थान पर जब वह पहुंँचता है तो वह देखता है कि दुकान पर ग्राहकों की भीड़ है।पर दुकानदार की नजर जैसे ही उस पर पड़ती है वह उसकी और उन्मुख होता है और पूछता है कि,” क्या तुम्हें उस- उस गांँव से उस ग्रहिणी ने भेजा है?”
    ब्राह्मण का आश्चर्य दुगना हो जाता है कि इसको यह कैसे पता चला कि मुझे यहांँ किसने भेजा है?
    वह ब्राह्मण को थोड़ी देर इंतजार करने के लिए कहता है कि तब तक वह अपने ग्राहकों को निपटा दे।
    ग्राहकों को विदा करने के बाद वह अपनी दुकान बंद करता है और उसे अपने घर ले जाते हुए रास्ते में उसे बताता है कि,”वास्तव में जिस ग्रहिणी ने तुम्हें मेरे पास भेजा है वह ग्रहिणी पतिव्रता है जिस समय तुम उसके दरवाजे पर भिक्षा मांँगने गए थे उसके पति भोजन कर रहे थे, वह उन्हें परोस रही थी। वह पतिव्रता स्त्री है ।पति की सेवा करना उसका पहला धर्म था पति को भोजन करवाने के बाद वह तुम्हें भिक्षा देने आई उसके पतिव्रत के (सतित्व) प्रभाव से ही, तुम्हारे बिना बताए भी जंगल में हुई उस घटना को वह जान गई थी।
    तुम्हें आश्चर्य हो रहा होगा कि मुझे यह बात कैसे पता चली?”
    वह आगे कहता है,”मैं अपने माता-पिता का भक्त हूंँ।अभी मेरा विवाह नहीं हुआ है। मेरे माता-पिता बहुत ही अधिक वृद्ध हैं। उन्हें ठीक से दिखता भी नहीं है।मैं उनकी सेवा करता हूंँ ।उनके सारे काम स्वयं करता हूंँ। उन्हें नहलाता धुलाता हूंँ। भोजन बनाता हूंँ।अपने हाथ से उन्हें भोजन कराता हूंँ। और उसके बाद अपने काम करता हूँ। अपने माता-पिता की सेवा के कारण मुझे यह शक्ति स्वयं ही प्राप्त है कि बिना बताए भी मुझे सब पता चल जाता है।”
    वह आगे कहता है,”तुम्हारे माता-पिता वृद्ध थे। तुम्हारा पहला कर्तव्य था कि तुम उनकी सेवा करते, किंतु तुमने उनकी सेवा नहीं की और उनके मना करने पर भी अपने वृद्ध माता-पिता को असहाय अवस्था में छोड़कर तुम वन में तपस्या करने चले गए।
    इसलिए तपस्या का जो फल तुम्हें वास्तव में मिलना चाहिए था वह फल तुम्हें नहीं मिला।
    उस युवक को अपनी भूल का एहसास होता है और वह सब कुछ छोड़कर अपने माता-पिता की सेवा के लिए घर चला जाता है।

    हम नहीं जानते कि यह कहानी कितनी सच्ची है या झूठी है पर हम यह जरूर समझते हैं कि कर्तव्यबद्धता महत्वपूर्ण है
    अपने कर्तव्यों का या दायित्वों का उचित निर्वाह करना भी भगवान को पूजने से कम नहीं है।
    आप मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च! चाहे कहीं भी जाइए! बहुत अच्छी बात है, वह ईश्वर का घर है, किंतु आप नहीं जाते हैं या नहीं जा पाते हैं तो भी पाप नहीं है। आप मानवीय कर्तव्यों द्वारा भी ईश्वर को प्राप्त कर सकते हैं।
    वास्तविक धर्म तो सन्मार्ग पर चलना ही है बस इतनी सी बात कोई समझ नहीं पाता।
    हम तो ऐसा ही सोचते हैं।
    धर्म के लिए मार-काट, हिंसा, सांप्रदायिक दंगे, अधिकार की लड़ाइयांँ, अहंकार और वर्चस्व के लिये मारा -मारी!!!! किस धर्म- ग्रंथ में लिखा है बस यही बात हमें आज तक समझ में नहीं आई। ऐसा न तो मोहम्मद साहब ने कहा, न ही ईसा मसीह या किसी भी अन्य ने । पर सब कर रहे हैं।
    राम और रामायण बहुत कुछ सिखाती है अगर रामायण में मर्यादाओं और रिश्तों के प्रति उत्तरदायित्व व संवेदनशीलता की शिक्षा हमें दी गई है तो गीता हमें ज्ञान और कर्म के बारे में बताती है।कोई कुछ भी पूजा-पाठ न भी करे लेकिन अगर एक अच्छा इंसान बन पाए तो ही मानव जीवन सफल और सार्थक है और दुनिया स्वर्ग बन जाए।
    हमारे धर्म ग्रंथों की यही खूबियांँ सबको अपनी और आकर्षित कर रही हैं। किंतु हमारे अपने ही लोग राजनीतिक भ्रष्टाचार के चलते या फिर जातीय स्तर की निकृष्ट भावना के कारण, सामंतवादी सोच या जातीय अहम् के चलते भी भेदभाव करते हैं।
    इन सब बातों के मध्य यह भी ध्यान देना जरूरी है कि हम अपना विवेक जाग्रत रखें साथ ही अंधश्रद्धा और अंधभक्ति से बचें।
    हमें यह कभी भी नहीं भूलना चाहिए कि संसार में कोई भी व्यक्ति चाहे वह पंडित हो, मौलवी हो, पादरी हो या कोई भी शंकराचार्य… ईश्वर द्वारा नियत धर्माधिकारी नहीं है।

    इस बार भी आपके संपादकीय से बहुत सी बातों का पता चला। प्रबुद्ध हुए।आपका संपादकीय निश्चित रूप से समृद्ध करता है। शुक्रिया बहुत-बहुत तेजेन्द्र सर!
    आभार पुरवाई।

    • नीलिमा जी आप पुरवाई के प्रत्येक संपादकीय पर विस्तृत औरअतिरिक्त जानकारी से परिपूर्ण टिप्पणी लिखती हैं। आपकी टिप्पणी पुरवाई के पाठकों को संपादकीय की पूरी व्याख्या कर देती है। हार्दिक आभार।

  18. हिन्दू और हिन्दू धर्म सबसे धैर्यवान सहिष्णु है न. इसलिए सब सह लेता है… विजातियों का भी, अपनों का भी।
    जरा दूसरे धर्म पर थोड़ी सी ऊँगली टेढ़ी कर के तो देखें.

    हमारे धर्म से विदेशी सदा से जुड़ते रहे हैं… अच्छा संपादकीय

  19. हिन्दू धर्म सदा से ही सहिष्णु रहा है लेकिन जब उसकी सहिष्णुता को उसकी कमजोरी समझ लिया जाए तो फिर उसे अपना तेज दिखाना ही पड़ता है और इसलिए अनेक लोग हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित हो रहे हैं।….समग्र विवेचन के साथ प्रासंगिक सम्पादकीय

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