होम कविता फागुन विशेष : महिमा श्री की कविता – अनुबंधों के दिन हैं... कविता फागुन विशेष : महिमा श्री की कविता – अनुबंधों के दिन हैं आये द्वारा Editor - March 23, 2019 219 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet महिमा श्री अनुबंधों के दिन हैं आये रंगों के दिन हैं आये भूल के अपने राग-द्वेष को गलबहियों के दिन हैं आये तू क्यों रुठा-रुठा सा है क्या कुछ टूटा-टूटा सा है। नाहक इतना शोक मनाये ! पतझड़ के दिन गये बावरें चमन का हर रंग बुला रहा है। टेसू फिर खिला खिला रहा है। नीला—पीला रंग–रंगीला फागुन लगता छैल-छबीला आ.. अंतरघट तक तुझे भीगो दूं ! हिय के सारे संताप मैं हर लूँ शिव सा चलो हम धूनी रमाये प्रीत के रंग में यूं रंग जाये अनुबंधों के दिन हैं आये फागुन है सबसे नशीला कहाँ मौसम ऐसा सजीला धर्म-जाति के भेद भुलाये अंनुबंधों के दिन हैं आये इंद्रधनुषी सपनों का मेला पंचम सुर में गाये कोकिला कुह कुह कर सब कह जाये अनुबंधो के दिन हैं आये.. संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं रश्मि विभा त्रिपाठी की कविता – फुदकती चिड़िया कुसुम पालीवाल की कविता – चाँद को देखूँ या देखूँ रोटियाँ ज़मीन पर सरोजिनी पाण्डेय की कविता – फागुनी धूप कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.