वृक्ष ने कहा, सुनो पवन,
तुम अब स्वतंत्र हो ।
नहीं रोकेंगे तुम्हें,
मेरे परिवार जन ।
कट चुके हैं सभी ,
नहीं रहे जीवंत ।
अपनी भारी, बोझिल देह को,
हवा ने सम्भाला ।
दीर्घ साँस ली और थोड़ा विचारा ।
बोली, अब नहीं रह  गयी हूँ,
मैं प्राणवायु ,
बिन तुम्हारे घट रही है,
मेरी आयु ।
धुएँ और प्रदूषण से,
मेरा दम घुटता है ,
कहाँ गए सभी प्रिय वृक्ष
सम्भालो मुझे,
मेरा अस्तित्व मिटता है ।
पर्वत झर रहे हैं,
सागर  भी उफन  रहा ।
तांडव नृत्य कर रहा ,
बवंडर यहाँ-वहाँ।
नदिया बहन,
थम सी गयी है ,हो विषैली ।
अश्रु उसके नहीं थमते,
रह गयी अकेली ।
बदल रहीं हैं ऋतुएँ भी,
सारी की सारी ,
इतना कष्ट पर्यावरण को ?
पड़ रहा मानव को भारी ।
आओ सजाएँ फिर से,
नन्ही फुलवारी ,
संवार लें अपनी धरा ,
ये प्यारी, प्यारी ।

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