होम कविता नेहा वर्तिका की कविता – है थका हुआ शहर मेरा कविता नेहा वर्तिका की कविता – है थका हुआ शहर मेरा द्वारा नेहा वर्तिका - June 5, 2022 34 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet है थका हुआ शहर मेरा सुकूँ भरी एक रात हो, शोर के पहरों से छुप कर ख़ामोशियों से बात हो l उजालों के लिबास से कुछ देर तो मुहं मोड़ लूँ, हो चांदनी से गुफ़्तगू शब-ए चुनर मैं ओढ़ लूँ l पानी ही पानी है, फिर भी हर नदी में प्यास है, दीदार-ए-चांद की उसे भी हर रोज़ ही तो आस है l महफ़िल-ए-शब सज ज़रा और चांदनी का रक़्स हो, इतरा रही हो हर नदी उसमें चांद का जो अक्स हो l कोई सिरफिरी ठंडी हवा पत्तों को आके चूम ले, नशे में जैसे चूर हो ये शज़र कभी तो झूम ले l कुछ ख्वाबों को दिन में ढूंढते सब चैन मेरा खो गया, शब से ज़रा मिली नज़र मैं थक कर के फिर से सो गया l उजालों के अपने ऐब हैं कुछ देर से आना सहर, चांद यूँ ही खिला रहे ऐ रात तू ज़रा ठहर ऐ रात तू ज़रा ठहर l संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं बिमल सहगल की कविता – एक निजी चित्रशाला तोषी अमृता की कविता – केवल तुम मनवीन कौर की कविता – मेरे पापा Leave a Reply Cancel reply This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.