Saturday, July 27, 2024
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परवीन कुमारी की कविता – स्त्री

स्त्री

मैं एक स्त्री हूँ

तुम्हारे मन को

मैं नहीं जानती,

ऐसा तो तुम नहीं मानते

आखिर……………

मैं एक स्त्री हूँ।

यह वरदान है

स्वीकार करो

चाहे कल,

जीवन न रहे

मैं न रहूँ

फिर भी ……

मेरे पास दर्शन

अभी कुछ नहीं

एक आस्था मात्र है,

कुछ श्रद्धा है, और

सीखने की, सहने की

और किचिंत दे सकने की लगन है।

तुम्हारे प्रणय के कारण

मुझे प्रतीत होता है कि,

मैं चारों ओर बहते

और ………..

अजरुा प्रवाह में

खड़ी हूँ

एक नगण्य पूँज

अस्तित्व के जैसे।

अनन्य प्रणय में

बाँधे जीवन को

मुक्ति की

आवश्यकता है।

क्योंकि ……….

विपुल राग में ही

मुक्ति का गान छुपा है।

मैं तुम्हारे प्रणय में

स्वयं को मिटाकर

अपनी अद्वितीयता

प्रमाणित कर सकती

और……..

किसी भाँति कुछ करके

अगर 

मैं तुम्हारी वेदनाओं के 

घावों को भर सकती

तो..

शायद

स्वयं के जीवन को

सफल और सार्थक मानती

क्योंकि मैं एक स्त्री हूँ।

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