1 – हे माटी अमेरिका
हे माटी अमेरिका
क्यों न तुझे मैं शीश माथे लगाऊँ
तूने मुझे अपनाया प्यार से
क्यों न तुझे मैं भी अपनाऊँ,
मेरे दुःख-सुख बाँट लिए थे
क्यों न तेरे दुःख-सुख अब मैं भी अपनाऊँ !
कभी अनिश्चित आई थी तेरी जमीं पर
बिछड़ अपनों से तेरे आँचल में
मन का आँगन सूना था परदेस में
सिकुड़ गए थे अरमान शीत ऋतु में
चार बजे अँधेरा और दुबक जाते सभी घरों में
गाड़ियाँ बहुत थी सड़क पर, लोग कम थे
बड़े स्टोर्स ,सब्जी-सामानों के ढेर
ख़रीददार कम , स्टोर्स बेरौनक लगते थे ………
पहली बर्फ पड़ी तब जाना कितनी सुंदर है तू
सड़क पर चलते मुस्कराते चहेरों में दिखे कई रंग
कुछ मेरे रंग से ,कुछ उजले ,कुछ गहरे से
कई रंगों की आँखें हरी-नीली ,सुनहरी-कत्थई ,काली
कई भाषाएँ पड़ी कानों में लेकिन अंग्रेज़ी सबकी
सभी हिलमिल रहते हैं यहाँ पर
मन को यह बहुत भाता है।
धीरे-धीरे मौसम बदला
आ गया बसंत कई रंगों में
बहुत खिल गई थी तू
तेरे आँगन में घूम-घूम जाना
बहती नदियाँ-झरने, ऊँचे पहाड़ ,समुंदर
हरियाली से लबालब , तू प्रकृति की अद्भुत कृति है
रिमझिम वर्षा, उमड़ते बादल ,कुलाचें भरते मृग ,
पंछियों की अनगिनत प्रजातियाँ
गाते गीत मधुर गूँजें चारों ओर
दिखे थे पहली बार कई जीव तेरी धरती पर
यहाँ फूलों का सौंदर्य मादक कर जाता
तू शबनम के गीलेपन से भीगी शर्माती है सुबहों में
धूप में तेरा मस्तीभरा यौवन चमक-दमक जाता
रात में शांत सौंधी खुशबू से महक जाती तू।
रेत पर नंगे पाँव चलते-चलते
अठखेलियाँ करती लहरों को देख
मन खिल जाता है बिना फ़िक्र
मानचित्र पर देखा था विशाल लगती थी
अब जाना तू है विशाल और मजबूत हौसलों वाली
तेरी मिट्टी, तेरी भाषा का सौंधापन रास आने लगा
तेरी गोद में भी माँ का दुलार महसूस होता !
अचानक उस दिन पहाड़ों पर बैठी थी तन्हाई में
देखा मैंने ऊँचे उड़ते श्वेत बादल एक दिशा में
विपरीत दिशा से उड़ते आ रहे थे अश्वेत बादल
एक ही आसमान और दो दिशाओं से आते बादल
विस्मयकारी नज़ारा देख कौतुहल बढ़ने लगा
मन में कुछ खटका, अंदेशा हुआ किस दिशा बह रही हवा
मौसम बदल रहा था, सोचा बादलों के मिल जाने से
जमकर होगी मीठी वर्षा पहाड़ों पर मचलती
अफ़सोस बादल चल दिए अपने-अपने रास्ते
बेआस कर उनकी मिठास से बिना भिगोए तुझे
तेरा दर्द समझ में आया !
ऐसा ही दर्द है भारत माँ को धर्मभेद ,नस्लभेद
एक ही आसमान में बढ़ता फ़ासला बादलों का
उड़ जाते अपनी-अपनी दिशा प्यार बिना बरसाए. …….
मेरा विश्वास है प्रबल
एक दिन तेरे आसमान में फिर से
मित्रता कर लेंगे बादल, हवा दिशा बदलेगी
सद्भावना की फुहार बहेगी, मिठास बरसेगी
अब तेरे दुःख-सुख मैं भी अपनाऊँ, मैं पास हूँ तेरे
तिरंगे संग अब तारों, धारियों वाला नीला-लाल
झंडा भी मन के आँगन में लहराता है
देवकी संग यशोदा पर भी प्यार आता है
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2 – झुका झंडा
वह चलते थे हर रोज़ उसी सड़क पर
रौनक बाज़ार में ,ऊँची इमारतें ,आलिशान रेस्टोरेंट
जगमगाते साइनबोर्ड ,ऑफिस ,मनोहारी शोरूम
चमचमाती सड़क ,कतार में ऊँचे पेड़ पहरेदार मानो
चौराहे पर पानी के फुव्वारे ,छोटा-सा एक प्ले ग्राउंड
चकरी-झूलों पर झूलते , हरी घास पर दौड़ते बच्चे
रोज़ का यह मनभावन दृश्य , यह सुकून भरी ज़िन्दगी।
वह अँगुली पकड़े सुकून से चलता आसमान को ताकता
आसमान के छोटे-छोटे टुकड़ों के मध्य झाँकता ऊँचा झंडा
लहराता हवा में झूमता ,चूमता आसमान को गर्व से
इमारतों के मद्य से झाँकता था
गर्व से पिता उस झंडे से रोज़ करवाते पहचान।
आज वह झंडा झुका है आधा …….
वह प्रश्न करता है
यह झंडा क्यों झुका है आधा ?
उस झंडे को देख रहो हो कहते पिता
सिर नीचे कर झुका है आधा
कल खड़ा था तनकर गर्व से
दशकों से कई युद्ध जीतकर
हजारों सौनिकों की कुर्बानियों के बाद !
कोई सौनिक अपने जीवन की कुर्बानी देता
यह गर्व से लिपट जाता है उसके सीने से।
यही झंडा तय करता है विशालता इस देश की
आज झुका है दुःख से ,पीड़ा से, हताश होकर …..
किसी अपने ने आक्रोश में उठा बंदूक दाग दिया
छोटे बच्चों को ,शिक्षकों को , निर्दोष जानों को।
उस आज़ादी के आक्रोश में जिसे इस झंडे ने दिया था
कुछ लोभी रसूकदारों को जो अपनी मर्ज़ी से कानून को
बनवाते हैं स्वार्थ में, अपना अधिकार समझ
मानते हैं इसे न्याय अपनी रक्षा के लिए।
यह झंडा न्याय और अन्याय के भार से लटक
बहुत सुंदर
मिट्टी तो हर जगह जीवन देनी वाली है वह जीवन है कहीं भी है नमन योग्य है।
बहुत बहुत बधाई