‘आमार सोनार बांग्ला’ है आज मात्र एक स्वप्न-लोक – तैरते हैं जहां लहरों पर रवींद्र–संगीत के राजहंस, छिटकी है चारों ओर शांति निकेतन शीतल शांतिदा चांदनी, गूंजती है सुर–लहरियों में रविशंकर की सितार, अली अकबर खान के संतूर की मनोरम जुगलबंदी, थिरकता है कण-कण में चैतन्य महाप्रभु की महा–चेतना का नृत्य, गमकती है परमहंस की मूर्त-अमूर्त होती देवी मां की परिकल्पना, भासित हैं कोलकाता से न्यूयॉर्क तक विवेकानंद के अध्यात्म और मानवता के अमूल्य रत्न, स्पंदित है माटी में बंकिम का वंदे मातरम ,अरविंदो का दिव्य दर्शन...
एक दु:स्वप्न है आज का बंगाल — सरस स्वर- लहरियों , झंकृत वाद्ययंत्रों को निगलते बमों,बंदूकों के कर्णभेदी विस्फोट, निरीह स्त्रियों के गगनभेदी आर्तनाद, धुएं, बारूद केकफ़न में लिपटता जा रहा पूरा भूखंड, ‘सिटी ऑफ सौरो’ में तब्दील होता ‘सिटी ऑफ जॉय’!
ऐ मेरे बंगाल के बच्चे, ऐ मेरे बंगाल के युवा, तुम कभी नहीं जान पाओगे तुमने क्या-क्या खोया और कितना वंचित हुआ न सिर्फ बंगाल यह समूचा जंबूद्वीप !
कोई दयार ना ऐसे उजड़े जैसे उजड़ा आमार सोनार बांग्ला!