तुम न हरदम
मेरे सामने रहा करो
ज़िन्दगी अचानक से
अच्छी लगने लगती है
ज़िन्दगी सी लगने लगती है
वक़्त झूम झूमके
गुनगुनाने लगता है
मस्ती भरे तराने
कतरा कतरा
शहनाई सी बजने लगती है
तुम न हरदम
यूँ ही मुझे देखते रहा करो
सूरत अपनी खुद को ही
लुभाने लगती है
आँखों से आँखें जो मिलें
पसंद नापसंद तुम्हारी
अपनी सी लगती है
लफ़्ज़ों की दरकार कहाँ तब
चुप्पी भी सुहानी लगती है
क़िस्मत का न कुछ
भरोसा नहीं होता
कल परायी तो आज
अपनी लगने लगती है
बनती हुई बात बिगड़ती है गर
बिगड़ती हुई बात बनने लगती है
सोचने जैसी कोई बात नहीं
अपनी मर्ज़ी से चलती है तो
अपनी मर्ज़ी से रुकने लगती है
तुम न बस मुस्कुराते रहा करो
क़िस्मत सँवरने लगती है ….
तारीफ़ सुनकर तुमसे अपनी
धड़कने रुकने सी लगती हैं
धड़कते दिल से दिल तक
कविता कोई रचने लगती हैं
एक मौन सा रिश्ता जन्मता है
एक मौन सी कहानी
हमारी बनने लगती है
तुम न अनकहे शब्द
मेरे बन जाया करो
बात अपनी बनने लगती है
तुम न हरदम
मेरे सामने रहा करो
ज़िन्दगी अचानक से
अच्छी लगने लगती है …..