रात भर आरजुओं के जलते अलाव के बाद
सुबह
मखमली रेत पर
सूरज की किरणों का स्नेहिल स्पर्श ..
बिलकुल तुम्हारी उस मुस्कराहट जैसा
जो छू जाती है मुझे
सुबह की पहली चाय के साथ
टकराती अंगुलियों के पोरो के संग …
देवदार के दरख्तो में बसे
कुहासे के हलके निशान
पत्तो से लिपटी
ओस के महीन अंश …
जैसे तुम्हारी बाहें फैली हुयी
मेरे इर्द गिर्द
और माथे पे पसीने की हलकी बूँदें …
हल्का हल्का
सर्द ठिठुरन सा
फ़िज़ा में फैला हुआ
रौशनी सा तुम्हारा प्यार ….
अलग सी रोशनाई में नहाया
फिज़ाओ और हवाओ में
रात के चाँद
और सुबह के सूरज
के एहसास में डूबा
खिड़की के किसी कोने से
झांकता
सिमटा हुआ लिपटा हुआ एक पल
जो इन नज़ारो में घुल सा गया है
सिर्फ हमारा होकर …
जीव-विज्ञान की पूर्व अध्यापिका. वर्तमान में गृहिणी. कविता-ग़ज़ल लेखन में गहरी रुचि. संपर्क - aanshi.words.neer@gmail.com

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