Saturday, July 27, 2024
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ऋषभ गुप्ता की कविता – सफर ज़िंदगी का

ख़ुशियाँ कम उलझने बहुत हैं
ज़िंदगी के इम्तिहानो से
परेशान बहुत हैं
कोई सफलता की सीढ़ी चढ़ गया
और कोई निराशाओ से घिरा है
ज़िंदगी के इस सफर में हर श़ख्स
आगे बढ़ने में मशरूफ है
शान सा लगता है सब दूर से
क़रीब से देखो तो सब वीरान है
ढूँढते है सुकून थक कर
कमरे की चार दीवारों में
ज़मीन से पाँव उठते नहीं
और ख़्वाहिशें आसमान की है
ज़िंदगी के इस सफर में ज़रूरत
सुकून तलाशने की है
यहाँ सच से हर कोई अंजान है
झूठ के पर्दों में सबकी पहचान है
ठगते है लोगों को अपना कह कर
बारिश में भी मखौटे बरकरार है
सच है ये ज़माने का
जीवन की ये एक पहचान है
हवाओं से लिपट आगे बढ़ता
मुसाफिर रास्तों से अंजान है
ज़िंदगी के इस सफर में
इंतज़ार
उस चाँद की चाँदनी का
और परिंदो से चहचहाते
खुले आसमान का है 
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