मैं गृहिणी हूँ
गढ़ती हूँ रोटियां, रचाती हूँ विचार भी
कागज के खाली कोनों में
अपनी अभिव्यक्ति लिखती और शब्दो को काटती मैं
अपने पसंद की कुछ पंक्तियां सहेजती हूँ
बच्चो की अधभरी कापी में जिनका वे उपयोग नहीं करते
कहते हैं कि स्त्री को समझना आसान नहीं
मुझको जानना है तो खोजो मेरी लिखी डायरियां
और देखो अलमारी में रखी पुरानी पुस्तकें और उनके बीच में रखे मुड़े कागज के फूहड़ पन्ने
मेरे मन के सारे रहस्य वही उजागर होंगे
मैं कवयित्री नहीं हूँ
मैने कभी मंचों पर काव्य पाठ नहीं किया
और ना ही न्यूज पेपर पर अपनी प्रकाशित कविता पढ़ी
दुख में, सुख में अपनी अभिव्यक्ति को रचती हूँ
कविताओ के माध्यम से
मैं लेखिका नहीं हूँ
परन्तु नित्य ही कुछ विचार छपते हैं मन के पटल पर
मैं भी बुनती हूँ नवीन कहानियाँ
मैं गृहिणी हूँ
रोज नया गढ़ती हूँ
bahut sunder