FILE PHOTO: Traffic moves along a highway shrouded in heavy smog in New Delhi, India, November 3, 2022. REUTERS/Adnan Abidi
धुआं है धुआं….
धुआं धुआं धुआं,
सारा आशियां है।
धुआं धुंआ धुंआ
सांस भी हो रही
धुआं धुंआ ।
सरसब्ज हो रही
खुदगर्ज़ी ,
सियासत सो रही
करके मनमर्ज़ी।
सियासत के रिश्तेदार,
घूम घूम कर रहे,
झूम झूम कर रहे,
हुआं हुआं बस
धुआं हुआं।
सांसों पर सांसत है,
चुनाव की सियासत है।
बात फिर करेंगे
सांसों की या फिर
उड़ गई सांसों की
डूबती सांसों की।
कहा ना कहा ना
सांसों की,,मुफ्त की
सांसों की।
‘सूर्य’ बात कौन करे
सांसों की।
अभी तो सियासत है
चुनावों की
अभी तो सियासत है
चुनावों की।
सियासत से प्रदूषण कैसे जुड़ा हुआ है? जनता गन्दगी फैलाती रहे। गाड़ियां खरीदती चलाती रहे। कूड़ा ढेर सारा, पॉलीथिन उससे ज्यादा। सुख चहिए हर तरह का नियंत्रण नहीं ज़रा सा। फ़ैशन है। ख़ुद की गलती का ज़िम्मा सरकार पर डालना। रचना शैली अच्छी है। कथ्य से सहमत नहीं।sorry
सियासत से प्रदूषण कैसे जुड़ा हुआ है? जनता गन्दगी फैलाती रहे। गाड़ियां खरीदती चलाती रहे। कूड़ा ढेर सारा, पॉलीथिन उससे ज्यादा। सुख चहिए हर तरह का नियंत्रण नहीं ज़रा सा। फ़ैशन है। ख़ुद की गलती का ज़िम्मा सरकार पर डालना। रचना शैली अच्छी है। कथ्य से सहमत नहीं।sorry