Sunday, May 19, 2024
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कमलेश भट्ट कमल की रपट : ‘भारत: साहित्य एवं मीडिया महोत्सव’ अर्थात संवाद एवं अभिव्यक्ति का बहुआयामी उत्सव

काशी-वाराणसी विरासत फ़ाउन्डेशन ने अपना दूसरा ही आयोजन ‘भारत: साहित्य और मीडिया महोत्सव’ के नाम से देश की आर्थिक राजधानी मुंबई में 7-9 अक्टूबर 2023 को आयोजित करके जिस तरह से स्वयं को विस्तार दिया है,वह यह बताने के लिए पर्याप्त है कि उसकी भावी संभावनाऍं किस प्रकार की और कैसी हैं! यह कहना अप्रासंगिक न‌ होगा कि वाराणसी में 3-4-5 फरवरी 2023 को आयोजित पहले कार्यक्रम की तरह ही यह दूसरा कार्यक्रम भी राष्ट्रीय स्तर का तो था ही, इसने मराठी समेत अन्य क्षेत्रीय भाषाओं तथा मीडिया के साथ सह-अस्तित्व और विमर्श की जो पहल की है, उसके दूरगामी परिणाम निकल सकते हैं।

इस बार के आयोजन में फाउन्डेशन को केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, भारत सरकार आगरा; महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई और मुंबई मराठी पत्रकार संघ का जो सहयोग, समर्थन और सौजन्य प्राप्त हुआ है उसने फाउन्डेशन को अतिरिक्त शक्ति प्रदान की है। यह अनायास नहीं था कि कम से कम नौ राज्यों व केंद्र शासित क्षेत्रों की सहभागिता वाले महोत्सव के समापन सत्र में न केवल मुंबई में एक और ऐसा ही महोत्सव करने का प्रस्ताव मिला, अपितु त्रिवेंद्रम, वर्धा और धनबाद में भी ऐसे ही आयोजन करने के सक्षम लोगों के प्रस्ताव प्राप्त हुए। इस स्थिति ने नि:संदेह फाउन्डेशन का उत्साह-वर्धन किया है।
मराठी पत्रकारिता के अग्रदूत बालगंगाधर शास्त्री जांभेकर (1812-1846) तथा सुप्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार और ‘धर्मयुग’ जैसी बहुआयामी और लोकप्रिय साप्ताहिक पत्रिका के 27 वर्षों तक संपादक रहे धर्मवीर भारती (1926-1997) को समर्पित इस आयोजन को अभिव्यक्ति के महोत्सव के रूप में भी संकल्पित किया गया।
मुंबई महोत्सव की सबसे बड़ी उपलब्धि रही सिक्किम के राज्यपाल महामहिम लक्ष्मण प्रसाद आचार्य जी का विद्वतापूर्ण उद्बोधन। कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में ऑनलाइन जुड़कर 35 मिनट का उनका यह भाषण उपस्थित श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर गया। महामहिम के भाषण के दो महत्वपूर्ण अंश यहाॅं उद्धृत करना पाठकों को अवश्य ही गौरवान्वित करेगा-
 • किसी देश का साहित्य और मीडिया अपनी चेतना और अपने विचारों में जितने सुदृढ़ और समृद्ध होते हैं, वहाॅं का समाज भी उतना ही सुदृढ़ और समृद्ध बनता है।
 • इस मंच से हिंदी और मराठी भाषाऍं मिलकर जो अनुनाद करेंगी, उसकी गूॅंज पूरे देश में सुनाई देगी।

श्री रवींद्र किशोर सिन्हा , पूर्व राज्यसभा सांसद एवं अध्यक्ष काशी वाराणसी विरासत फाउंडेशन; डॉ.सुनील कुलकर्णी, निदेशक,केंद्रीय हिंदी संस्थान, भारत सरकार, आगरा ;डॉ. शीतला प्रसाद दुबे,अध्यक्ष, महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी, मुंबई, श्री कृपा शंकर सिंह,पूर्व गृह राज्य मंत्री महाराष्ट्र सरकार; श्री प्रभु सूरदास जी, चीफ़ मैनेजिंग ट्रस्टी , इस्कॉन, मुंबई ; श्री नरेंद्र वाबले अध्यक्ष, मुंबई मराठी पत्रकार संघ तथा डॉ.अत्रि भारद्वाज, अध्यक्ष काशी पत्रकार संघ व सुषमा अग्रवाल, समाज सेविका तथा प्रो. राममोहन पाठक, कार्यकारी अध्यक्ष काशी-वाराणसी विरासत फाउंडेशन जैसे विद्वानों- मनीषियों से सजे मंच पर मुंबई मराठी पत्रकार संघ भवन में महोत्सव का उद्घाटन देश के युवतम विधानसभा अध्यक्ष श्री राहुल नार्वेकर ने किया।
श्री नार्वेकर ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि बहुभाषी एवं बहु संस्कृति वाली मुंबई में इस आयोजन का महत्व कुछ हटकर और अलग है।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री रवींद्र किशोर सिन्हा ने कि कहा कि पत्रकारिता में दिन-प्रतिदिन की घटनाओं का ब्यौरा पेश करते हैं। लेकिन उनमें जो विचार पक्ष आता है वह शुद्ध साहित्य है। समाचार का विश्लेषण करते हुए जब समाज को कोई संदेश देना चाहते हैं तो वह साहित्य बन जाता है।
इससे पूर्व डॉ.सुनील कुलकर्णी, नरेंद्र वाबले ,डॉ.शीतला प्रसाद दुबे तथा डॉ. अजीत सैगल ने अतिथियों का स्वागत किया। उद्घाटन सत्र का संचालन प्रो. राममोहन पाठक ने तथा धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती सुषमा अग्रवाल व शरद कुमार त्रिपाठी ने किया।
उद्घाटन समारोह के मंच से आयोजन की स्मारिका ‘ साहित्य भारत’ (संपादक : नरेंद्र नाथ मिश्र) समेत कोई आधा दर्जन पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया। जिनमें डॉ. आर के सिन्हा की ‘विश्व पटल पर अपना देश’ तथा
‘कोरोना का प्रलयकाल’ , डाॅ. नीलम वर्मा की ‘ अमृता शेरगिल – पेंटिंग में कविता’ (हाइकु), ‘अंतरंगिनी’ (खंड काव्य) व ‘समयांतर'( हाइकु संग्रह) सम्मिलित हैं।
8 अक्टूबर के भारतीय साहित्य- साहित्यकार: वैश्विक संदर्भ (प्रेमचंद पुण्यतिथि प्रसंग) शीर्षक वाले प्रथम संवाद-सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्री रामदास आठवले, केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण राज्य मंत्री ने कहा कि समाज में जाति व्यवस्था नहीं, समानता होनी चाहिए। भारत को आगे ले जाने के लिए हिंदू-मुस्लिम, हिंदू-दलित तथा भाषाओं में विभेद के भाव समाप्त करने की आवश्यकता है।

इस सत्र में अपने विचार रखते हुए डॉ.सुनील कुलकर्णी ने कहा कि जब-जब समाज लड़खड़ाता है, राजनीति दिशाहीन हो जाती है, साहित्य ही पथ प्रदर्शन करता है। प्रेमचंद ने साहित्य की मुख्य धारा में दलितों-शूद्रों को सबसे पहले लाने काम किया। पहली बार आम आदमी को साहित्य का नायक प्रेमचंद ने बनाया। उन्होंने साहित्य को जासूसी ,ऐय्यारी तथा मनोरंजन से बाहर निकालकर उसे जनसाधारण से जोड़ने का काम किया।
सत्र के दौरान प्रेमचंद जन्मस्थली से दुर्गा प्रसाद श्रीवास्तव व ईश्वर चन्द्र पटेल ने आनलाइन जुड़कर प्रेमचंद स्मारक के दर्शन कराए।
निरंतर तीन दिन तक चले संवाद -सत्रों में उक्त के अतिरिक्त वैश्वीकरण और विश्व साहित्य, साहित्य संप्रेषण के आयाम और संचार माध्यम – ई साहित्य, साहित्य और युवा, सागर तीरे- प्रकृति और साहित्य, कृत्रिम मेधा और साहित्य, राष्ट्रीय प्रश्न,मुद्दे और सोशल मीडिया , कृत्रिम मेधा और साहित्य जैसे सत्रों में गहन विचार-विमर्श और मंथन हुआ। इन सत्रों में डाॅ. रवीन्द्र किशोर सिन्हा,प्रो. राम मोहन पाठक,डाॅ. सुनील कुलकर्णी, हरीश पाठक , डाॅ. राम सुधार सिंह, प्रो. अशोक भास्करन, डॉ.अत्रि भारद्वाज, श्रीमती पुष्पा एल ,ओमप्रकाश त्रिपाठी , डॉ. किंशुक पाठक, डॉ. अलीम मोहम्मद, खान, षीला जी, डॉ. आकाश शाॅ, डॉ.संतेश्वर मिश्र , मनीष खत्री, प्रा.हेमंत सुधाकर सामंत, जय प्रकाश नागला, आर्या झा आदि की सक्रिय सहभागिता रही। इन सत्रों का संचालन संजीव पांडेय तथा कमलेश भट्ट कमल ने किया।
समारोह में विशेष सहयोग के लिए भारत नागर की उपस्थिति को रेखांकित गया। आयोजन में धर्मेंद्र जोरे, अरविंद राही, अमितांशु पाठक, दिनेश पांचाल, रास बिहारी पांडेय, आभा गुप्ता , राय श्रवण कुमार अग्रवाल, श्रेय अग्रवाल, शांतम् अग्रवाल , प्रमिला शर्मा, डॉ. मार्कंडेय त्रिपाठी, सरिता अग्रवाल,अमर नाथ प्रसाद,श्रीमती गीता त्रिपाठी,नवरतन सिंह,पंकज त्रिपाठी व अन्य मीडियाकर्मियों , साहित्यकारों तथा बुद्धिजीवियों की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।
कविता पाठ के विशेष सत्र में डॉ.नीलम वर्मा की अध्यक्षता में सर्वश्री अजय कुमार पांडेय, जय प्रकाश नागला, डॉ.अरुण कुमार वर्मा, नूतन अग्रवाल, डॉ.ममता बैनर्जी, डॉ.अत्रि भारद्वाज, सुषमा केरकट्टा, संध्या चौधरी ने प्रभावपूर्ण काव्य प्रस्तुतियाॅं दीं।
आयोजन में राजदीप सिंह राठौर, अर्नब मित्रा, सुब्रत कुमार स्वैन, प्रियजित माइटी,श्रिया समद्दार और परिमिता पाल ने अपने शोध सारांश प्रस्तुत किए।
समापन-सत्र में श्री रवींद्र किशोर सिन्हा, अध्यक्ष; कृपा शंकर सिंह, मुख्य अतिथि; डॉ.शीतला प्रसाद दुबे, विशिष्ट अतिथि, नरेंद्र बावले विशिष्ट अतिथि के साथ-साथ महेश अग्रवाल, डॉ.रामसुधार सिंह, डॉ. अत्रि भारद्वाज, डॉ.अजीत सैगल की विशेष उपस्थिति रही। प्रो.राम मोहन पाठक द्वारा संचालित इस सत्र में
कृपा शंकर सिंह ने अन्य नदियों की तरह शीघ्र ही मुंबई में सिंधु -पूजन का आरंभ किए जाने की जानकारी दी और कहा कि यह कार्यक्रम का समापन नहीं बल्कि प्रारंभ है। डॉ. शीतला प्रसाद दुबे ने कहा कि साहित्यकार, पत्रकार, राजभाषा अधिकारी सभी इस मंच पर इकट्ठे होकर संवाद कर रहे हैं। भाषा को लेकर मराठी में कोई विभेद नहीं है,किसी दूसरी भाषा में भी नहीं है। हम एकता की भावना लेकर आगे बढ़ें यही बेहतर है।
अपने अध्यक्षीय भाषण में डा. रवीन्द्र किशोर सिन्हा ने कहा कि आज सबसे ज्यादा पर्यावरण पर संकट आया है। यदि इस पर रोक नहीं लगाई गई तो पंजाब, हरियाणा आज और आगे उत्तर प्रदेश व बिहार का नंबर आएगा, ये सब जैसलमेर बन जाएंगे! ऐसे में जरूरी है कि अपने आहार-विहार और आचार में परिवर्तन लाऍं।
भारत सरकार के प्रकाशन विभाग, साहित्य अकादेमी तथा नेशनल बुक ट्रस्ट के साथ-साथ आर. के. पब्लिकेशन (मुंबई),गीता प्रेस (गोरखपुर), राजकमल प्रकाशन (दिल्ली) और प्रभात प्रकाशन (दिल्ली) के स्टालों पर उपलब्ध साहित्य ने पुस्तकों का साहचर्य उपलब्ध कराया, जिससे आयोजन में एक अलग तरह की सकारात्मकता का समावेश बना रहा।
कमलेश भट्ट कमल
1512, कारनेशन-2, गौड़ सौन्दर्यम,
ग्रेटर नोएडा वेस्ट, गौतमबुद्ध नगर, उत्तर प्रदेश -201318, भारत
मो. 9968296694.
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