कितनी बड़ी विवशता होगी, जब तुम देखोगी किसी पत्रिका में मेरी कविता… पढ़ोगी और हो जाओगी… ख़ामोश!
और फिर कहोगी अपनी सहेलियों से देखो… कितनी मंजुल कल्पना है फिर होगा तुम्हें अहसास यह कल्पना उसकी नहीं, तुम्हारी अपनी है इसको तुमने सजाया है अपने ही रंगों में…