अल्हड़ कुंवारी कविताएं…
कितनी बड़ी विवशता होगी,
जब तुम
देखोगी किसी पत्रिका में
मेरी कविता…
पढ़ोगी
और हो जाओगी… ख़ामोश!
और फिर
कहोगी अपनी सहेलियों से
देखो… कितनी मंजुल कल्पना है
फिर होगा तुम्हें अहसास
यह कल्पना
उसकी नहीं, तुम्हारी अपनी है
इसको तुमने सजाया है
अपने ही रंगों में…
इसे महकाया है
तुम्हारी गर्म साँसों की
ख़ुशबू ने…
इसमें तुम हो…
केवल तुम

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.