होम कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कविता – हम भी परहित करना सीखें कविता त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कविता – हम भी परहित करना सीखें द्वारा त्रिलोक सिंह ठकुरेला - September 19, 2021 232 0 फेसबुक पर शेयर करें ट्विटर पर ट्वीट करें tweet सूरज अपनी नव-किरणों से बिखरा देता जग में लाली । बूँदों के मोती बिखराकर बादल फैलाता हरियाली ।। धरती के उपकार असीमित सबको दाना पानी देती । अपने आंचल के आश्रय में सबके सारे दुःख हर लेती ।। उपवन सदा सुगंध लुटाकर सबकी सांसें सुरभित करता । खग-कुल मिलकर गीत सुनाता सबके मन में खुशियां भरता ।। हम भी परहित करना सीखें, मिलकर सब पर नेह लुटायें । औरों के दुःख दर्द मिटाकर इस धरती को स्वर्ग बनायें ।। संबंधित लेखलेखक की और रचनाएं गांधी जयंती पर पद्मा मिश्रा की कविता हिंदी भाषा पर मधु शृंगी की कविता प्रीति रतूड़ी की कविताएँ कोई जवाब दें जवाब कैंसिल करें कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें! कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें आपने एक गलत ईमेल पता दर्ज किया है! कृपया अपना ईमेल पता यहाँ दर्ज करें Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. Δ This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.