Friday, October 11, 2024
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विनोद सिल्ला की कविता – उजाला

नहीं मोहताज
मेरे जीवन का उजाला
किसी दीपक का
किसी सूरज का
किसी रोशनी का
जो चमकता है
अपनी प्रतिभा से
अपने ही नूर से
जो चमकता है
अंधेरे में भी
मुझे उजाला
नहीं मिला विरासत में
मुझे उजाला
नहीं मिला राजभवनों से
मुझे उजाला
नहीं मिला धर्म-स्थलों से
मुझे उजाला
नहीं मिला बाजार से
मैंने सीखा है
अपना दीपक
स्वयं बनना
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