ज़िन्दगी की फसलों को लहलहाता है,
अन्न उगाता है,अन्नदाता है।
धरती से जुड़ा वजूद उसका
किसान,हलधर कहलाता है!
खुद भूखा रहकर भी,
औरों का पेट वह भरता है,
क़र्ज़ तले दबा रहकर
न जाने क्या मूल्य चुकाता है?
माटी का मोल चुकाने को
मिट्टी से सोना उपजाने को,
वह दीन हीन रहकर
जीवन भर ऋण चुकाता है।
समय के साथ सब कुछ बदला,
न बदला है उसका जीवन,
वह अब भी’गोदान’का होरी है,
रहती ख़ाली उसकी झोरी है।
हर मौसम लगे उसे एक समान,
नीचे धरती उपर आसमान,
परिश्रम ही रही उसकी पहचान,
दुखों भरी है उसकी दास्तान।
सियासतदानों,उसे आम न समझो,
सिर्फ़ मामूली इंसान न समझो,
उम्मीदों के दीपक जलने दो,
सपने उसके भी पलने दो।
हर हाल में रहता मिट्टी से जुड़ा,
न वो कभी असमानों में उड़ा,
कर्तव्य से वह कभी मुख न मोड़ेगा,
धरती से न नाता तोड़ेगा,
किसी हाल में अन्न उगाना न छोड़ेगा।
सुनो लो अब उसकी गुहार,
बनने न दो उसे आर्तनाद।
इस देश का किसान
उस दिन होगा महान,
जिस दिन देश का शिक्षित नौजवान,
गर्व से बनना चाहेगा किसान।